नई दिल्ली: भारत में कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave Corona) आने की आहट और कयासों के बीच वैक्सीनेशन अभियान लगातार ट्रेंड कर रहा है. जागरूकता बढ़ी तो टीकाकरण अभियान में जबरदस्त तेजी आई है. इसी दौरान कोरोना वैक्सीन (Corona Vaccine) की दोनों डोज लेने के बाद लोगों में अपनी एंटीबॉडीज की जांच कराने का चलन बढ़ा है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ऐसा क्यों हुआ इसके जवाब में एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर किसी के शरीर में टीका लगवाने के बावजूद एंटीबॉडीज नहीं बनीं, तो इसका मतलब ये नहीं है कि टीका बेअसर हो गया. दरअसल टीके का असर जानने के लिए एंटीबॉडीज की जांच कराना महज एक जरिया है. टीके का असर जानने के लिए कई अन्य जांच भी कराई जा सकती हैं. 


डरने की जरूरत नहीं:एक्सपर्ट


हाल में नीति आयोग (Niti Ayog) के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल (Dr VK Paul) ने भी एक्सपर्ट के इस दावे की पुष्टि करते हुये कहा था कि एंटीबॉडीज (Antibodies) नहीं बनी हैं तो यह मतलब नहीं है कि टीके ने काम नहीं किया. बॉडी की कोशिकाओं की जांच से भी इसका अनुमान लगाया जा सकता है. क्योंकि वैक्सीनेशन होने के बाद कोशिकाओं में प्रतिरोधक क्षमता आ जाती है. यानी जब दोबारा वायरस आता है तो यह उसे पहचान लेती हैं और उनके एक्टिव होने से आगे संक्रमण नहीं फैलता.


ये भी पढ़ें- कोरोना होने के 30 दिन के भीतर हुई मौत को माना जाएगा Covid Death, सरकार ने जारी की नई गाइडलाइन


उड़ीसा में सामने आये कई मामले


भुवनेश्वर स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ लाइफ साइंस (ILS) ने कहा है कि ओडिशा में कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके करीब 20% लोगों में सार्स-सीओवी2 के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं बन पायी. संस्थान के मुताबिक इन लोगों को आगे बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है. संस्थान के डायरेक्टर डॉ. अजय परिदा ने कहा, 'ओडिशा (Odisha) में अब तक 61.32 लाख से अधिक लोग कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके हैं ऐसे 10 लाख लोग भुवनेश्वर में हैं. इनमें अगर कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं बनी तो सभी को बूस्टर डोज की आवश्यकता हो सकती है.'


जीनोम स्टडी से खुलासा


कोविड एक्सपर्ट डॉरक्टर परीदा के मुताबिक, 'कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीके की प्रभावशीलता 70 से 80 % है. टीके की दो डोज लेने के बावजूद एंटीबॉडी बनाने में सक्षम न होना आनुवंशिक क्रम में व्यक्तिगत अंतर के कारण हो सकता है. ये खुलासा एंटीबॉडी जीनोम अनुक्रमण स्टडी के दौरान हुआ.'


डॉ. परिदा ने कहा कि 0 से 18 वर्षीय आयु वाले बच्चों और टीनेजर्स के अलावा टीके की दोनों डोज ले चुके ये 20% वयस्क भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आने के लिहाज से संवेदनशील हैं. उन्हें कोरोना महामारी की संभावित तीसरी लहर (Third wave corona pandemic) के दौरान अतिरिक्त सावधान रहने की आवश्यकता है. आपको बता दें कि भुवनेश्वर स्थित ILS, इंडियन सार्स-सीओवी2 जीनोम कंसोर्टियम का हिस्सा है जो देशभर में फैली 28 प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है.


ये भी पढ़ें- Mongolia में डेल्टा वेरिएंट की दहशत, 7 उदबिलाव कोरोना संक्रमित, हैरान रह गये कोविड एक्सपर्ट


अमेरिका संस्था ने किया था दावा


हाल ही में अमेरिकी जांच संस्था यूएस एफडीए (US FDA) ने भी कहा था कि एंटीबॉडीज की जांच कराने का मकसद ये जानने के लिए होना चाहिए कि किसी शख्स को पहले कोरोना संक्रमण हुआ है या नहीं. यह इम्यूनिटी तय करने का अंतिम मापदंड नहीं हो सकता है. 


(भाषा इनपुट के साथ)


VIDEO-