नई दिल्ली: कच्चे तेल (Crude Oil) के प्रोडक्शन में कमी के बाद भारत और सऊदी अरब (Saudi Arab) के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है. जिसके चलते अब भारत ने पब्लिक सेक्टर की पेट्रोलियम कंपनियों से प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए कहा है. इसके साथ ही वेस्ट एशियन देशों से कच्चे तेल की खरीद के करार की समीक्षा करने के भी निर्देश दिए गए हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इतना ही नहीं, तेल उत्पादकों के अलाएंस को तोड़ने और कीमतों की शर्तों को अनुकूल करने के लिए भारत सरकार ने इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन (IOC) और हिंदुस्तान पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लि. (HPCL) से भी बातचीत की है. सरकार ने कंपनियों से वेस्ट एशिया के बाहर से कच्चे तेल की सप्लाई पाने का प्रयास करने, और सामूहिक रूप से अधिक अनुकूल शर्तों के लिए कहा है. 


भारत के आग्रह को किया नजरअंदाज


गौरतलब है कि भारत जरूरत के 85 प्रतिशत कच्चे तेल के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब तेल की सप्लाई और कीमतों में उतार-चढ़ाव होता है तो भारत पर भी असर पड़ता है. फरवरी में कच्चे तेल के दाम फिर बढ़ने शुरू हुए थे. उस समय भारत ने सऊदी अरब से प्रोडक्शन कंट्रोल पर कुछ राहत देने के लिए कहा था, लेकिन उसने भारत के आग्रह को नजरअंदाज कर दिया. उसी के बाद भारत अपनी सप्लाई के विविधीकरण (Diversification) कर प्रयास कर रहा है.


VIDEO



ये भी पढ़ें:- मास्टरमाइंड अपराधी की इस होटल ने क्यों बनाई मूर्ति? 'बिकनी किलर' नाम से था मशहूर


तेल की कीमत तय करना सप्लायर का हक


अधिकारी ने कहा, 'परंपरागत रूप से सऊदी अरब और पेट्रोलियम एक्सपोर्ट देशों के संगठन (OPEC) के उत्पादक हमारे मुख्य सप्लाईकर्ता है. लेकिन उनकी शर्तें सामान्य तौर पर खरीदारों के खिलाफ होती हैं. इसलिए भारतीय कंपनियां अपनी दो-तिहाई परचेज टर्म या निश्चित सालाना कांट्रेक्ट के आधार पर करती हैं. इन करार में इंपोर्ट की मात्रा तय होती है, लेकिन कीमतें और अन्य शर्तें सप्लायर के पक्ष में झुकी होती हैं.


ये भी पढ़ें:- 5 राज्यों में आतंक फैलाने वाले शार्प शूटर्स दिल्ली में गिरफ्तार, इस खतरनाक गैंग से है संबंध


OPEC के फैसले की कीमत ग्राहक क्यों चुकाए?


अधिकारी ने बताया कि खरीदार को निर्धारित मात्रा में खरीद करनी होती है. लेकिन OPEC द्वारा कीमतों को बढ़ाने के लिए प्रोडक्शन को आर्टिफिशियल फॉर्म से कम करने का फैसला किए जाने के बाद सऊदी अरब और अन्य उत्पादकों के पास सप्लाई घटाने का विकल्प होता है. ऐसे में OPEC के फैसले की कीमत ग्राहक क्यों चुकाए? यदि हम उठाव के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो उन्हें भी सप्लाई पूरी करनी चाहिए, चाहे स्थिति कैसी भी हो. एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि खरीदार को किसी भी महीने सालाना कांट्रेक्ट में निर्धारित मात्रा में से जो तेल उठाना होता है उसकी सूचना कम से कम 6 सप्ताह पहले देनी होती है. जबकि खरीदार को मैन्युफैक्चरर द्वारा घोषित औसत आधिकारिक दर पर भुगतान करना पड़ता है.


LIVE TV