Nuclear Test: आज (11 मई) ही के दिन राजस्थान (Rajasthan) के एक छोटे से गांव पोखरण (Pokhran) में दोपहर तीन बजकर 45 मिनट पर परमाणु परीक्षण किया गया था. उस समय भारत में हुए परमाणु परीक्षण की गूंज ने कई देशों को हिला दिया था और ये देश हैरान थे कि भारत (India) ने ये कैसे मुमकिन कर दिखाया. तब पश्चिमी देशों ने भारत के इस कदम को दुस्साहस माना था.


अमेरिका ने भारत पर लगाए थे कड़े प्रतिबंध


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इसके बाद अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे और यूरोप ने भी परमाणु परीक्षण के लिए भारत की आलोचना की थी. लेकिन भारत ने इन सभी आलोचनाओं को किनारे रखते हुए 13 मई को फिर से पोखरण में दो और परमाणु परीक्षण किए. और इस तरह 11 मई से 13 मई के बीच कुल 5 परमाणु परीक्षण पोखरण की धरती पर किए गए और भारत दुनिया का छठा Nuclear Power वाला देश बन गया.


भारत पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगे थे


विरोध करने वाले इन देशों में सबसे ऊपर अमेरिका था. अमेरिका ने उस समय भारत पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए थे. इसके अलावा अमेरिका ने दुनिया के बाकी देशों पर भी भारत पर प्रतिबंध लगाने के लिए दबाव बनाया, जिसके बाद ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, जापान और स्वीडन जैसे देशों ने अमेरिका की तरह भारत पर सीमित आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए.


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ऑस्ट्रेलिया और जापान ने भी नहीं दिया था भारत का साथ


बड़ी बात ये है कि इनमें जर्मनी जैसा देश भी है, जहां हाल ही में प्रधानमंत्री का शानदार स्वागत हुआ था. इसके अलावा Nordic देश स्वीडन में भी प्रधानमंत्री का स्वागत हुआ. इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया और जापान QUAD का हिस्सा हैं.



इसके अलावा चीन और पाकिस्तान ने भी भारत के परमाणु कार्यक्रम का विरोध किया था और संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने भी इसे दुनिया की शांति के लिए खतरनाक बताते हुए भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पास किया था. आप कह सकते हैं कि ये सारे देश और अंतरराष्ट्रीय संस्था भारत के खिलाफ जाकर खड़ी हो गई थीं.


जबकि रूस उस समय भी भारत के साथ था. रूस ने ना तो भारत पर किसी तरह का कोई प्रतिबंध लगाया और ना ही अमेरिका जैसे देशों की धमकी के बाद हमारे परमाणु कार्यक्रम की निंदा की. इसी तरह NATO का सदस्य देश होते हुए भी फ्रांस ने तब भारत पर ना सिर्फ प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया था बल्कि 1998 में ही फ्रांस की सरकार ने भारत को अपना Strategic Partner घोषित कर दिया था. फ्रांस के अलावा ब्रिटेन ने भी भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने से इनकार कर दिया. हालांकि उसकी तरफ से भारत के परमाणु कार्यक्रम की निंदा की गई थी.


बड़ी बात ये है कि अमेरिका ने भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अलग-थलग करने की कोशिश की, लेकिन वो इसमें कामयाब नहीं हुआ और पोखरण परीक्षण के 10 साल बाद वर्ष 2008 में इसी अमेरिका ने भारत के साथ एक Civilian Nuclear Deal साइन की, जिसके तहत उसने भारत पर लगाए सभी प्रतिबंध हटा लिए थे.


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इससे पता चलता है कि जो देश आत्मनिर्भर होता है, जिसे खुद पर भरोसा रखता है और जिस देश में स्थिरता होती है, उस देश को ऐसे प्रतिबंध भी नहीं झुका पाते. जबकि जो देश दूसरे देशों पर निर्भर होते हैं और खुद से कोई फैसला नहीं ले पाते, वो ऐसे संकट में ज्यादा देर तक नहीं टिक पाते और हार जाते हैं. उदाहरण के लिए भारत के साथ ही पाकिस्तान ने भी परमाणु परीक्षण किया था. लेकिन वो आज तक अमेरिका के साथ भारत की तरह Civilian Nuclear Deal साइन नहीं कर पाया है.


उस समय हमारे देश की कई पार्टियों और नेताओं ने भी देश का साथ नहीं दिया था. उस समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि असली शक्ति संयम में है ना कि शक्ति के प्रदर्शन में है. सोनिया गांधी का ये बयान वाजपेयी सरकार पर सीधा हमला था क्योंकि उस समय परमाणु परीक्षण को सरकार ने ऑपरेशन शक्ति नाम दिया था.


इसके अलावा वामपंथी दलों यानी लेफ्ट Parties ने तत्कालीन भारत सरकार से परमाणु कार्यक्रम को बिना देरी के रोकने की मांग की थी. CPI-ML के एक नेता ने तो इसे हिंदू बम बता दिया था. सोचिए उस समय परमाणु कार्यक्रम का भी साम्प्रदायिकरण कर दिया गया था.


इससे ये पता चलता है कि भारत ने जब-जब दुनिया को अपनी शक्ति दिखाई है या कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की है, तब-तब हमारे ही देश के विपक्षी दलों के नेताओं ने दुश्मन देशों का साथ दिया है और हमारा विरोध किया है. फिर वो चाहे वो चीन का मामला हो या परमाणु परीक्षण का मामला हो.


हालांकि बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा, जिन्हें दुनिया शांति का दूत मानती है, उन्होंने उस समय वाजपेयी सरकार को पत्र लिख कर उसका समर्थन किया था. उनका कहना था कि कुछ देश परमाणु हथियार रखें और कुछ नहीं. ये सही नहीं है. ये अलोकतांत्रिक है.


पोखरण परीक्षण के समय भारत आत्मविश्वास से भरा हुआ था और इसे आप तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के इस भाषण से समझ सकते हैं, जो उन्होंने परमाणु परीक्षण के कुछ दिन बाद संसद में दिया था.


भारत के लिए परमाणु शक्ति बनना आसान नहीं था क्योंकि इससे पहले वर्ष 1995 में अमेरिका को भारत के परमाणु परीक्षण कार्यक्रम की भनक लग गई थी और उसने भारत को ऐसा करने से रोक दिया था, इसीलिए वर्ष 1998 में इसे लेकर अलग रणनीति अपनाई गई.


उस समय तय हुआ कि सभी वैज्ञानिक और इंजीनियर परीक्षण वाली जगह पर सेना की वर्दी में ही जाएंगे. दिलचस्प बात ये है कि उस समय जिन वैज्ञानिक का वजन ज्यादा था या जो काफी अनफिट या उम्रदराज दिखते थे, उन्हें वहां नहीं भेजने का फैसला किया गया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि वैज्ञानिकों को जवानों के बीच आसानी से पहचाना ना जा सके और इसका असर परमाणु कार्यक्रम पर ना पड़े.


इस दौरान जब आर. चिदंबरम, डॉक्टर ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और दूसरे न्यूक्लियर साइंटिस्ट पोखरण जाते थे तो उन्हें भी सेना की वर्दी पहननी होती थी. वो बंकरों में रह कर योजना पर काम करते थे. इसी तरह अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA के सैटेलाइट से बचने के लिए तब वैज्ञानिकों ने अद्भुत रणनीति बनाई थी. जिसका जिक्र डॉक्टर कलाम ने अपनी पुस्तक, Wings of Fire में किया था. इसमें बताया गया है कि भारत के वैज्ञानिकों ने उस समय ये जानकारी जुटा ली थी कि किस समय अमेरिका का सैटेलाइट भारत पर नजर रख रहा होता है. इसलिए दिन के समय वैज्ञानिक सेना के जवानों की तरह रहते थे और रात के समय परमाणु परीक्षण में जुट जाते थे.


इन तमाम कोशिशों के बाद ही 11 मई और 13 मई को हमारा देश पोखरण में परमाणु परीक्षण कर पाया था. यहां एक दिलचस्प जानकारी ये है कि उस समय भी पश्चिमी मीडिया दिल्ली की सड़कों पर घूम रहा था और तब उन्हें ऐसे लोगों की तलाश थी जो इस परमाणु परीक्षण के विरोध में प्रदर्शन करें. लेकिन तब पश्चिमी मीडिया को इसमें कामयाबी नहीं मिली थी.