इंदिरा गांधी को नहीं मालूम थे इमरजेंसी के `कायदे-कानून` : प्रणब मुखर्जी
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि 1975 में जो आपातकाल लगाया था, उसके सिलसिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसकी अनुमति देने वाले संवैधानिक प्रावधानों से वाकिफ नहीं थी तथा सिद्धार्थ शंकर राय के सुझाव पर उन्होंने यह निर्णय लिया था।
नई दिल्ली : राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि 1975 में जो आपातकाल लगाया था, उसके सिलसिले में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसकी अनुमति देने वाले संवैधानिक प्रावधानों से वाकिफ नहीं थी तथा सिद्धार्थ शंकर राय के सुझाव पर उन्होंने यह निर्णय लिया था।
मुखर्जी के मुताबिक लेकिन बड़ी विडंबना रही कि यह पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री राय ही थे जिन्होंने शाह आयोग के समक्ष आपातकाल लगाने में अपनी भूमिका से पलटी मार ली। आपातकाल के दौरान की ज्यादतियों की इस आयोग ने जांच की थी। ये सारी बातें राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक (द ड्रैमेटिक डिकेड) द इंदिरा गांधी इयर्स’ में कही हैं। पुस्तक अभी हाल ही में जारी हुई है।
मुखर्जी ने पुस्तक में लिखा है, ‘माना जाता है कि सिद्धार्थ शंकर राय ने आपातकाल घोषित कराने में अहम भूमिका निभायी: यह उन्हीं का सुझाव था और इंदिरा गांधी ने फिर उस पर कदम उठाया। ’ उन्होंने लिखा है, ‘दरअसल, इंदिरा गांधी ने मुझसे बाद में कहा कि अंदरूनी गड़बड़ी के आधार पर आपातकाल की घोषणा की अनुमति देने वाले संवैधानिक प्रावधानों से तो वह वाकिफ भी नहीं थीं खासकर ऐसी स्थिति में जब 1971 के भारत पाकिस्तान लड़ाई के फलस्वरूप आपातकाल लगायी जा चुकी थी। ’
पुस्तक के अनुसार यह दिलचस्प पर आश्चर्यजनक बात नहीं थी कि जब आपातकाल घोषित हो गयी तब कई लोगों ने दावा कि उसके सूत्रधार तो वे ही हैं। लेकिन यह भी आश्चर्य की बात नहीं थी कि ये ही लोग शाह आयोग के समक्ष पलट गए। मुखर्जी ने पुस्तक में लिखा है, ‘न केवल उन्होंने अपनी भूमिका से इनकार किया बल्कि उन्होंने खुद को निर्दोष बताते हुए सारा दोष इंदिरा गांधी पर मढ़ दिया। सिद्धार्थ बाबू कोई अपवाद नहीं थे।
शाह आयोग के सामने पेशी के दौरान आयोग के हाल में वह इंदिरा गांधी के पास गए जो गहरी लाल साड़ी में थीं और उनसे कहा, आज आप बहुत अच्छी लग रही है।’ मुखर्जी के अनुसार, रूखे शब्दों में इंदिरा ने जवाब में कहा, ‘आपके प्रयास के बावजूद’। राष्ट्रपति द्वारा लिखी गयी 321 पृष्ठों की इस पुस्तक में बांग्लादेश की मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के विभिन्न घटनाक्रमों पर कई अध्याय हैं।