नई दिल्ली: भारत को विविधता में एकता (Unity in diversity) का देश कहा जाता है. हमारा देश इतना विराट और विशाल है जिसके बारे में ये भी कहा जाता है कि कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी. यानी यहां दूरी के हिसाब से बोली और भाषा के साथ इलाके का पानी भी बदलता रहा है. हमारी संस्कृति, विचार, खान-पान और रहन-सहन बाकी दुनिया से काफी अलग है.


नहीं होती दुल्हन की विदाई


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ऐसे में क्या आपने कभी ऐसे गांव या समुदाय के बारे में सुना है जहां शादी होने के बाद दुल्हन, दूल्हे के घर नहीं जाती बल्कि दूल्हा, दुल्हन के घर पर आकर रहता हो. हमारे देश में एक कोना ऐसा भी है, जहां शादी के बाद लड़कियां ससुराल नहीं जाती बल्कि दामाद ही लड़की के घर आकर रह जाता है. यहां बात उत्तरप्रदेश के कौशांबी जिले स्थित हिंगुलपुर गांव के बारे में, जिसे दामादों का पुरवा यानी दामादों के गांव के तौर पर भी जाना जाता है.


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रोजगार दिलाते हैं ससुराल वाले


इस गांव में शादी के बाद दूल्हे को घर जमाई बनकर रहना पड़ता है. ससुराल वालों की तरफ से दामाद को रोजगार अथवा रोजगार के साधन मुहैया कराए जाते हैं. दरअसल काफी समय पहले ये गांव कन्या भ्रूण हत्या और दहेज हत्या में बहुत आगे था, लेकिन आज के समय में इस गांव ने अपने बेटियों को बचाने के लिए अनूठा तरीका अपनाया है. 


देश में कई गांव है ऐसे 


भारत में ऐसे कई गांव हैं जहां इस तरह की परंपरा है. मेघालय में खासी जनजाति में भी ऐसी ही परंपरा है. खासी समुदाय महिला अधिकारों का सबसे अच्छा उदाहरण माना जाता है. इस राज्य की लगभग 25 फीसदी आबादी इसी समुदाय से ताल्लुक रखती है और ये सभी समुदाय मातृसत्तात्मक हैं. इस समुदाय की महिलाएं भी अपनी इच्छा पर किसी भी वक्त अपनी शादी को तोड़ सकती हैं. यहां भी शादी के बाद दूल्हा, ससुराल में जा कर रहता है. 


मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिला मुख्यालय के पास भी ऐसा ही एक गांव है, जहां दामाद आकर रहने लगते हैं. यहां का बीतली नामक गांव जमाइयों के गांव के नाम से मशहूर है.


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