नई दिल्‍ली: गौमूत्र (Cow Urine) पर पहली बार सरकार ने साइंटिफिक रिसर्च के डेटा सामने रखे हैं. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय स्वास्थ मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने CSIR से संबंधित लखनऊ के सेंट्रल इंCentral Institute of Medicinal and Aromatic Plants की देसी गाय पर की गई रिसर्च Bio Enhancing Properties के आधार पर बताया, "डिस्टिलेशन से तैयार किया गौमूत्र अर्क की थोड़ी मात्रा Rifampicin और Ampicillin की एक्टविटी ग्राम पॉजिटिव और ग्राम नेगेटिव बैक्‍टीरिया के प्रति बढ़ा देती है. इसके अलावा एंटी कैंसर टैक्सॉल (Paclitaxel) की एक्टिविटी भी गौमूत्र अर्क से बढ़ जाती है. इस बारे में तीन इंटरनेशनल पेटेंट भी हासिल किये गए हैं."


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

डॉ हर्षवर्धन ने ये भी बताया कि विज्ञान एंड टेक्नोलॉजी मंत्रालय के तहत डिपार्टमेंट ऑफ साइंस, डिपार्टमेंट ऑफ बायो टेक्नोलॉजी, काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR-IVRI), इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR), इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR), मिनिस्ट्री ऑफ न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी (MNRE) और आयुष मंत्रालय एक साथ मिल कर देसी गाय के प्रोडक्ट पर खास रिसर्च कर रहे हैं. इस रिसर्च प्रोजेक्ट का नाम सूत्रा-पिक इंडिया प्रोग्राम (Scientific Utilisation through Research Augmentation Prime Products from Indigenous Cows) है.


इस प्रोग्राम के तहत स्वास्थ्य कृषि और पोषण और मेडिसिनल उपयोग के लिए गाय के प्रोडक्ट और रिसर्च करना शामिल है जिससे कि गाय से संबंधित प्रोडक्ट्स के लिए वैज्ञानिक आधार और सर्टिफिकेट प्राप्त हो सके. इसमें गोबर, गौमूत्र पर रिसर्च भी शामिल है.


इस प्रोग्राम में डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी नोडल एजेंसी के तौर पर काम कर रहा है जबकि आईआईटी दिल्ली इसके कोऑर्डिनेटर इंस्टिट्यूट के तौर पर काम कर रहा है वहीं 50 साइंटिफिक लैबोरेट्रीज काम कर रही हैं जो क्वालिटी कंट्रोल के लिए ध्यान में रखती हैं. इस बारे में रिसर्च और विकास के लिए एनजीओ की सेवाएं भी ली जा रही हैं ताकि वह लोकल लेवल पर वैज्ञानिकों और प्रोडक्ट उपयोगकर्ताओं के बीच में लिंक के तौर पर काम कर सकें.


सूत्रा-पिक की आलोचना
हालांकि सरकार को सूत्रा-पिक (SUTRA-PIC) इंडिया प्रोग्राम के बारे में कई वैज्ञानिकों की तरफ से अपील भी मिली कि इस तरह के प्रोग्राम के लिए फंड देना ठीक नहीं लेकिन सरकार ने उन वैज्ञानिकों की चिंताओं का जवाब भी दिया है.


वैज्ञानिकों ने पूछा था कि इस प्रोजेक्ट के लिए फंड क्यों दिया जा रहा है जब देसी गाय की ब्रीड क्लीयर उपलब्ध नहीं है. इस पर सरकार का जवाब आया कि देसी गाय में रोगों के प्रति प्रतिरोधकता है. वह ताप और सूखा सहन कर सकती है. देसी वातावरण में अच्छे से जीवित रह सकती हैं. स्‍वच्‍छ ऊर्जा का स्रोत हैं. लोगों को पोषण भी प्रदान करती हैं. रोजगार मिलता है. एग्रीकल्चर को ऑर्गेनिक बनाने में काम आती है ,ऐसा कहा जाता है कि ये A-2 प्रकार का दूध देती है जो की कई तरह के रोगों से लड़ने में शक्ति देता है इसकी पड़ताल करने की जरूरत है.


वैज्ञानिकों को लगा कि ये कहीं सरकार का एजेंडा तो नहीं इसलिए सवाल उठाया कि गाय पर ही रिसर्च क्यों? इस भी जवाब मिला कि गाय के प्रोडक्ट परंपरागत रूप से हमारे मेडिसिन के तौर पर उपयोग किये जाते रहे हैं. इसे तर्कसंगत ढंग से देखना होगा. हालांकि प्रोग्राम ओपन एंडेड है एजेंडा नहीं, आईसीएआर के संस्थान बहुत से जानवरों पर रिसर्च कर रहे हैं पर डेडिकेटेड रिसर्च सेंटर भी हैं लेकिन देसी गाय के लिए ऐसा स्पेसिफिक सेंटर नहीं था इसलिए ये जरूरी हो गया.