China’s Belt and Road Initiative: इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी शनिवार (27 जुलाई) से चीन की अपनी पांच दिवसीय आधिकारिक यात्रा पर हैं. पीएम बनने के बाद मेलोनी की यह पहली चीन यात्रा है. इसके अलावा पिछले साल चीन के एक मेगा प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) से इटली के अलग होने के बाद भी मेलोनी पहली बार चीन पहुंची हैं. उनकी इस यात्रा पर भारत समेत दुनिया भर की निगाहें हैं.


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इटली की पीएम के बाद राष्ट्रपति भी जाएंगे चीन, क्या है टॉप एजेंडा?


चीन की सरकारी मीडिया सीजीटीएल ने वीबो सोशल नेटवर्क पर एक पोस्ट में कहा कि पांच दिवसीय यात्रा पर बीजिंग पहुंची इटली की पीएम जॉर्जिया मेलोनी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और प्रधानमंत्री ली कियांग से मुलाकात करेंगी.  इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देना और रूस- यूक्रेन युद्ध को खत्म करवाने पर बातचीत टॉप एजेंडा है. इटली के राष्ट्रपति सर्जियो मटेरेला भी इसी साल अक्टूबर में चीन की यात्रा करने की योजना बना रहे हैं.


इटली के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से फिर से जुड़ने की चर्चा तेज


मेलोनी की चीन यात्रा पर जाने से इटली के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से फिर से जुड़ने की चर्चा भी सुर्खियों में बनी हुई है. क्योंकि अलग होने से पहले इटली चीन के इस प्रोजेक्ट में शामिल होने वाला जी-7 का इकलौता सदस्य देश था. प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने से पहले मेलोनी ने चीन के प्रोजेक्ट में शामिल होने को इटली की एक गलती करार दिया था. उन्होंने बीआरआई को विदेशों में चीन के प्रभाव को बढ़ाने की शी जिनपिंग की एक अहम कोशिश बताया था.


बीआरआई से बाहर आने के बाद चीन से संबंध सुधारने में जुटीं मेलोनी


इसके बाद अटली और चीन के संबंधों को ठंडा माना जाने लगा था. इसके साथ ही इटली के रिश्ते भारत के साथ गर्मजोशी के साथ मजबूत होते जा रहे हैं. हालांकि, मेलोनी की चीन की यात्रा को लेकर विश्लेषकों का कहना है कि इससे बीआरआई से निकलने के बाद चीन से बिगड़े संबंधों को सुधारा जा सकता है. इस बात को लेकर भारत चिंतित तो नहीं, लेकिन सावधान जरूर है. आइए, जानते हैं कि चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव क्या है और भारत क्यों इससे सावधान है?


चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना क्या है? 


चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय सहयोग और आर्थिक रणनीति है. इसे वन बेल्ट वन रोड, सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट, 21वीं सदी का समुद्री सिल्क रोड और न्यू सिल्क रोड के नाम से भी दुनिया के सामने रखा जाता है. इसका चीनी नाम यू दई यू लू है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दुनिया के साथ चीन के संपर्क को मजबूत करने के लिए नई और पुरानी परियोजनाओं को जोड़कर यह प्रमुख विदेश नीति परियोजना की शुरुआत की है. 


चीन सरकार की ओर से इस परियोजना के जरिए एशिया को अफ्रीका और यूरोप से जोड़ने के लिए एक विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र को कवर करने के साथ हार्ड इंफ्रास्ट्रक्चर, सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर और लोगों के बीच संबंधों को मजबूत करने की बात कही जाती है. चीन किसी भी कीमत पर जल्द से जल्द इस बीआरआई प्रोजेक्ट को पूरा करना चाहता है.


चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से भारत क्यों सावधान है?


अमेरिका स्थित थिंक टैंक, कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की भारतीय शाखा, कार्नेगी इंडिया के दर्शन बरुआ के एक नए पेपर में इस बारे में विस्तार से बताया गया है. इसमें कहा गया है कि भारत को चीन की भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से सावधान रहना चाहिए, जो उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के जरिए प्रसारित हो रही हैं. क्योंकि चीन दक्षिण एशिया में अपनी मौजूदगी और प्रोफाइल का विस्तार करना चाहता है. 


पेपर में सुझाव दिया गया है कि भारत के साथ चीन के रणनीतिक हितों का टकराव अपरिहार्य है. इसका एक उदाहरण मैरीटाइम सिल्क रोड है, जो बेल्ट एंड रोड पहल का समुद्र आधारित घटक है. यह चीन और बाकी दुनिया के बीच बेहतर तटीय कनेक्टिविटी स्थापित करने की कोशिश कर रहा है.


हिंद महासागर में बंदरगाहों में तेजी से निवेश कर रहा चीन, श्रीलंका में चालाकी


पश्चिम एशिया से ऊर्जा आयात को सुरक्षित करने के लिए चीन हिंद महासागर में बंदरगाहों में तेजी से निवेश कर रहा है. चीन निर्मित बंदरगाहों में बढ़त से भारत के लिए नौसैनिक सुरक्षा संबंधी चिंताएं बढ़ गई हैं. क्योंकि इन बंदरगाहों को भविष्य में नौसैनिक अड्डों में आसानी से बदला जा सकता है. इसका एक बड़ा उदाहरण श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह है. इसे चीन के कर्ज से बनाया गया था और श्रीलंकाई सरकार द्वारा अपना कर्ज चुका पाने में नाकाम रहने के बाद इसे 99 वर्षों के लिए चीन को पट्टे पर दे दिया गया था.


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चीनी नेतृत्व वाले कनेक्टिविटी गलियारों का विकल्प बनाने में जुटा भारत


इसलिए भारत भी अपने बुनियादी ढांचे के निर्माण और विकास के लिए दूसरे सहयोगियों के साथ संबंधों को गहरा करने में जुटा है. भारत भी चीनी नेतृत्व वाले कनेक्टिविटी गलियारों का विकल्प बनाने के लिए बड़े कदम उठा रहा है. साथ ही चीन के लिए प्रतिक्रियाशील नीति से दूर रहते हुए क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को सुरक्षित करने के लिए एक सुसंगत नीति और इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर रहा है.


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