जम्मू-कश्मीर: अलगाव से भागीदारी तक.. हुर्रियत नेताओं की चुनाव में वापसी; लोकतंत्र की ताकत
Hurriyat Leaders: सलीम गिलानी ने कहा कि मैं मुख्यधारा में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि हम लोगों के बारे में बात कर सकते हैं और मेरा मानना है कि हिंसा समाधान नहीं है, किसी को भी नहीं मारा जाना चाहिए. मैंने पीडीपी को इसलिए चुना क्योंकि यह जम्मू कश्मीर मुद्दे के की बात करती है.
Jammu Kashmir Vidhansabha Chunav: यह बात तो तय है कि जम्मू कश्मीर में धीरे-धीरे ही सही डेमोक्रेसी स्थापित हो रही है. इसी कड़ी में अब तो जम्मू-कश्मीर चुनाव में भी अप्रत्याशित मोड़ देखे जा रहे हैं. अलगाववाद की राह पर चलने और चार दशकों तक चुनाव बहिष्कार की राजनीति करने के बाद, हुर्रियत नेता और जमात के सदस्य भारतीय लोकतंत्र में विश्वास दिखा रहे हैं.
सैयद सलीम गिलानी मुख्यधारा में शामिल
असल में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के प्रमुख नेता सैयद सलीम गिलानी मुख्यधारा में शामिल हो गए और पीडीपी का हिस्सा बन गए, जो जम्मू कश्मीर में दशकों से हुर्रियत द्वारा किए जा रहे कामों के बिल्कुल विपरीत है, यहां तक कि हुर्रियत ने इस बार हो रहे चुनावों के खिलाफ कोई बहिष्कार का आह्वान भी नहीं किया है, क्योंकि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जमीनी हालात में बदलाव आया है.
पीडीपी को इसलिए चुना क्योंकि ..
सलीम गिलानी ने कहा कि मैं मुख्यधारा में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि हम लोगों के बारे में बात कर सकते हैं और मेरा मानना है कि हिंसा समाधान नहीं है, किसी को भी नहीं मारा जाना चाहिए, मैंने पीडीपी को इसलिए चुना क्योंकि यह जम्मू कश्मीर मुद्दे के की बात करती है. सलीम गिलानी ने कहा कि मैं इसे बदलाव नहीं कहूंगा, यह एक निरंतरता है, हर कोई देखता है कि रास्ता कहां है. हमने देखा कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अलावा भी लोगों के पास मुद्दे और कठिनाइयां हैं, मुझे लगा कि मैं यहां आकर लोगों के लिए बेहतर तरीके से काम कर सकता हूं क्योंकि हम लोगों के लिए सब कुछ करते हैं.
पार्टी की तर्ज पर काम करूंगा..
उन्होंने कहा कि पीडीपी की खूबसूरती यह है कि वे बातचीत की बात करते हैं, वे सुलह की बात करते हैं, ये वो चीजें हैं जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को छूती हैं. लोगों के प्रशासनिक मामले इसी तरह से हल हो सकते हैं, जब आप इस धारा में आएंगे, तो आप चुनावों के जरिए उनका प्रतिनिधित्व करेंगे, फिर आप विधानसभा में जाएंगे, यह एक वास्तविकता है. मैं कहूंगा कि अगर सही प्रतिनिधि होगा, तो वह कश्मीर मुद्दे को सही तरीके से उठाएगा. मैं पीडीपी का सदस्य हूं और पीडीपी पार्टी की तर्ज पर काम करूंगा. मुझे चुनाव लड़ने का जनादेश मिला था लेकिन मैं पूरे जम्मू-कश्मीर में पीडीपी का अभियान चलाऊंगा जब हम एक-दूसरे की बात सुनेंगे तभी हमें समाधान मिलेगा.
कश्मीर में सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है
केवल हुर्रियत ही नहीं चुनाव प्रक्रिया को अपना रही है और इनके कई सदय मुख्यधारा में शामिल हो रहे है बल्कि कट्टर पाकिस्तान समर्थक संगठन जमात-ए-इस्लामी जम्मू और कश्मीर ने भी चुनावों में शामिल होने की घोषणा की है कि यदि केंद्र प्रतिबंध हटाता है. इसने कश्मीर में सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है और कश्मीर में अलगाववाद की विचारधारा पर सेंध लगाई है.
मुख्यधारा के राजनीतिक दल विचारधारा में इस बदलाव का स्वागत कर रहे हैं और उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह दर्शाता है कि अलगाववादी विचारधारा में उनका परिवर्तन और सोफ्ट अलगाववाद के लिए जानी जाने वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी उन्हें इस उम्मीद के साथ पार्टी में इनको जगह दे रही है कि इससे उन्हें कश्मीर में अपनी जमीन फिर से हासिल करने में मदद मिलेगी. पीडीपी ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि जमात ए इस्लामी ने पहले उनकी पार्टी से संपर्क किया होता तो वे उन्हें टिकट देते.
लोकतंत्र में विश्वास तो हुआ
उमर अब्दुल्ला ने कहा "चुनाव आ गए हैं, वे लड़ने के लिए तैयार हैं. अब तक जब भी हमने चुनाव लड़ा है, उन्होंने चुनाव बहिष्कार के नारे लगाए हैं. अब वे खुद चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं. कहीं न कहीं उनकी विचारधारा बदल गई है और हमने जो कहा वह सही साबित हुआ है. हम 90 के दशक से कह रहे हैं कि यहां के हालात खराब होंगे लेकिन हमें निशाना बनाया गया. लेकिन आज वे जिस भी पार्टी में वो शामिल हुए हैं, कम से कम उनका लोकतंत्र में विश्वास तो हुआ है, यह हमारे लिए सफलता है.
वाहिद पारा {पीडीपी युवा अध्यक्ष} ने कहा "अगर हमें पता होता कि जमात-ए-इस्लामी चुनाव लड़ेगी, तो पीडीपी ने उन्हें अपना निर्वाचन क्षेत्र भी दे दिया होता. हम उन्हें टिकट भी देते. हम उनके खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारते. उन्होंने बहुत कुछ सहा है. हम उनके लिए भी जगह बनाते, लेकिन उन्होंने हमें नहीं बताया.