Jayant Chaudhary: `बात निकली है तो दूर तक जाएगी`...क्या बीजेपी से समर्थन वापस ले सकते हैं जयंत चौधरी?
Kanwar-Nameplate Controversy: पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम रालोद के परंपरागत वोटर रहे हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वो वोटबैंक छिटक गया लेकिन 2022 के बाद से फिर से जयंत चौधरी अपने खोई हुई सियासी जमीन पाने में कुछ हद तक कामयाब रहे. उनका विरोध उसी पृष्ठभूमि में जोड़कर देखा जा रहा है.
UP Politics: लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद यूपी बीजेपी के भीतर ही जहां राज्य सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं वहीं इस बीच सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने भी कांवड़ यात्रा के मसले पर सवाल उठा दिया है. जयंत चौधरी के बयान को 10 विधानसभा सीटों पर होने जा आगामी उपचुनावों पर उनकी नई पोजीशनिंग से जोड़कर देखा जा रहा है. केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित भोजनालय के मालिकों के नाम उनकी दुकानों पर प्रदर्शित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश की आलोचना करते हुए इसे वापस लेने की रविवार को मांग की.
बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल रालोद के राज्यसभा सदस्य चौधरी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, ''ऐसा लगता है कि यह आदेश बिना सोचे-समझे लिया गया है और सरकार इस पर इसलिए अड़ी हुई है क्योंकि निर्णय हो चुका है. कभी-कभी सरकार में ऐसी चीजें हो जाती हैं.''
ये भी पढे़ं- UP में कांवड़ रूट पर नेमप्लेट लगाने के आदेश पर 'सुप्रीम' रोक, SC से तीन राज्यों को झटका
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री ने कहा, ''कांवड़ की सेवा सभी करते हैं. कांवड़ की पहचान कोई नहीं करता और न ही कांवड़ सेवा करने वालों की पहचान धर्म या जाति से की जाती है.'' सरकार के फैसले का विरोध करते हुए चौधरी ने कहा कि उप्र सरकार ने यह फैसला बहुत सोच समझकर नहीं लिया है. उन्होंने कहा कि इस मामले को धर्म और जाति से नहीं जोड़ा जाना चाहिए.
केंद्रीय मंत्री ने राज्य सरकार के फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा, ''सब अपनी दुकानों पर नाम लिख रहे हैं पर 'मैकडॉनल्ड' और 'बर्गर किंग' क्या लिखेगा?'' उन्होंने कहा, ''कहां-कहां नाम लिखें, क्या अब कुर्ते पर भी नाम लिखना शुरू कर दें, ताकि देख कर ये तय किया जा सके कि हाथ मिलाना है या गले लगाना है.''
इससे पहले सहयोगी जनता दल (एस) की नेता अनुप्रिया पटेल ने भी आरक्षण के मसले पर सवाल उठाकर सरकार पर हमला बोला था. उसके बाद उन्होंने मिर्जापुर में टोल प्लाजा को लेकर पत्र लिखा. सहयोगी दलों की तरफ से उठ रहे इस तरह के सवालों को सियासी हलकों में इस नजरिये से देखा जा रहा है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ जब से पार्टी के भीतर से आवाजें मुखर हो रही हैं उसी की अगली कड़ी में सहयोगी दलों को भी आलोचना करने का मौका मिल रहा है.
इधर अमित शाह महाराष्ट्र में थे...उधर अजित पवार ने साथ छोड़ने का क्या बना लिया मन?
रालोद का वोटबैंक
वैसे जहां तक जयंत चौधरी की बात है तो लोकसभा चुनावों से पहले रालोद का गठबंधन सपा के साथ था और जयंत चौधरी विपक्षी इंडिया गठबंधन का हिस्सा थे लेकिन लोकसभा चुनाव से ऐन पहले एनडीए सरकार ने चौधरी चरण सिंह को जब भारत रत्न देने का ऐलान किया तो उसके बाद जयंत चौधरी ने एनडीए का दामन थाम लिया. एनडीए के तीसरी बार सत्ता में आने के बाद वो केंद्रीय राज्य मंत्री बने और यूपी में उनकी पार्टी के नेताओं को मंत्री बनाया गया. लेकिन लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन के बाद से खासतौर पर पश्चिम यूपी में सियासी परिस्थितियां बदल रही हैं. ऐसा इसलिए भी क्योंकि पश्चिमी यूपी में जाट और मुस्लिम रालोद के परंपरागत वोटर रहे हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद वो वोटबैंक छिटक गया लेकिन 2022 के बाद से फिर से जयंत चौधरी अपने खोई हुई सियासी जमीन पाने में कुछ हद तक कामयाब रहे. उनका विरोध उसी पृष्ठभूमि में जोड़कर देखा जा रहा है.
इस तरह बीजेपी के अंदरखाने और सहयोगी दलों की तरफ से उठ रहे सवालों के बीच हैरानी की बात ये है कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने कोई टिप्पणी कहीं नहीं की है और वो चुपचाप सरकार के कामकाज में जुटे हैं. जानकार इससे भी ज्यादा इस बात को लेकर आश्चर्य जता रहे हैं कि बीजेपी के अंदरखाने से बढ़ते विरोध के बावजूद संगठन की तरफ से कहीं सख्ती दिखाने वाली बात नजर नहीं आ रही है. इन सबको देखते हुए विश्लेषकों का कहना है कि बहुत संभव है कि बीजेपी 10 सीटों पर होने जा रहे उपचुनावों तक संभवतया चुप्पी साधे रहेगी और पार्टी के भीतर और सहयोगियों की तरफ से उठते सवालों के जवाब उपचुनाव के नतीजे तय करेंगे.