Jharkhand Politics: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में भाग लेने के लिए लगभग 2.60 करोड़ मतदाता तैयार हैं. वहीं, झारखंड में सत्ता पक्ष यानी इंडिया गठबंधन और विपक्षी एनडीए गठबंधन के बीच प्रचार को लेकर घमासान छिड़ा हुआ है. इस बीच, बीते चार बार हुए विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलने के कयास लगाए जा रहे हैं. वहीं, यह सवाल भी सुर्खियों में है कि आखिर क्यों झारखंड में अब तक किसी भी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया है?


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झारखंड बनने के बाद से 4 बार विधानसभा चुनाव, 3 बार राष्ट्रपति शासन


बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य के गठन के बाद से 2005 से 2019 तक चार बार हुए विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने किसी एक दल को पूर्ण बहुमत नहीं दिया. सभी दल अलग-अलग बहुमत के आंकड़े से दूर रहे. इसलिए, झारखंड में हमेशा गठबंधन की ही सरकार बनी है. दलों के बीच सियासी खटपट और सरकार बनने में देरी को लेकर झारखंड में अब तक तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगाया जा चुका है.


81 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 41 सीटों का जादुई आंकड़ा


झारखंड में कुल 81 सदस्यीय विधानसभा में किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत के लिए 41 सीटों का जादुई आंकड़ा हासिल करने की जरूरत पड़ती है. तमाम सर्वे और राजनीतिक चर्चाओं में मौजूदा चुनाव में भी बीते चार बार के चुनाव के इतिहास को दोहराए जाने की संभावना जताई जा रही है. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, झारखंड में इंडिया गठबंधन और एनडीए गठबंधन में शामिल किसी भी एक राजनीतिक दल को पूर्ण बहुमत का आंकड़ा मिलता नहीं दिख रहा है. 


झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन बनाम एनडीए का मुकाबला


झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में कांग्रेस, राजद और लेफ्ट समेत कुछ स्थानीय पार्टी शामिल हैं. वहीं, भाजपा नीत एनडीए में आजसू, जदयू, लोजपा वगैरह शामिल हैं. दोनों गठबंधनों में सबसे बड़े दल झामुमो और भाजपा ही बहुमत के लायक सीटों पर लड़ रही है. इस लिए राज्य के दोनों प्रमुख गठबंधनों के प्रमुख दलों की स्थिति अकेले बहुमत पाने लायक नहीं दिख रही है.


सबसे अधिक 68 सीटों पर लड़ रही भाजपा, 41 सीटें मिलने पर सवाल क्यों?


केंद्र में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी के बाद भी भाजपा झारखंड में अकेले अपनी ताकत बहुत ज्यादा नहीं बढ़ा पाई है. झारखंड में भाजपा इकलौती प्रमुख पार्टी है जो सबसे ज्यादा 68 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. इसके बावजूद भाजपा के रणनीतिकार ही खुलेआम स्वीकार कर चुके हैं कि भाजपा इन 68 में से 41 सीटें शायद ही निकाल सके. टिकट बंटवारे के बाद भाजपा में दलबदलुओं के मुद्दे पर अंदरूनी कलह भी परवान पर है.


इंडिया गठबंधन में किसी दल को 41 सीटें मिलने की चर्चा भी बेमतलब कैसे?


दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन का अगुवा झामुमो पिछली बार 41 सीटों पर ही चुनाव लड़ा था. गठबंधन में सीटों के समझौते के तहत उसकी एक-दो सीटें घट भी सकती हैं. ऐसा नहीं भी हुआ तो इस बार झामुमो 41 सीटों से ज्यादा तो लड़ नहीं पाएगी. हेमंत सोरेन पर भ्रष्टाचार का मामला, चंपई सोरेन समेत कई दिग्गजों के बागी होने और एंटी इनकंबेंसी की मौजूदा स्थिति में झामुमो के लिए अकेले बहुमत के लिए जरूरी 41 सीटों का आंकड़ा पूरा करना लगभग असंभव ही कहा जा सकता है.


झारखंड में 2005 से 2019 तक विधानसभा चुनाव के नतीजे कैसे रहे?


झारखंड में अब तक हुए विधानसभा के चार चुनावों के नतीजे देखें तो यह सियासी अंकगणित समझना और ज्यादा आसान हो सकता है. साल 2005 में झारखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भाजपा अकेले 30 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. वहीं, दूसरे नंबर पर रहे झामुमो को 17, कांग्रेस को नौ और आजसू को दो सीटें मिली थी. विधानसभा चुनाव 2009 के नतीजे देखें तो भाजपा और झामुमो दोनों महज 18-18 सीटों पर सिमट गई थी. वहीं, कांग्रेस को 14 और आजसू को पांच सीटें मिली थी.


विधानसभा चुनाव 2014 में भाजपा को सबसे अधिक 37 सीटें मिली थी. फिर भी वह अकेले बहुमत से दूर रह गई. वहीं, झामुमो को 19, कांग्रेस को 6 और आजसू को पांच सीटें मिली थी. पिछली बार यानी विधानसभा चुनाव 2019 में झामुमो सबसे अधिक 30 सीटें मिली थी. भाजपा 25, कांग्रेस 16 और आजसू को महज दो सीटें मिल सकी थी. इस तरह झामुमो गठबंधन ने हेमंत सोरेन की अगुवाई में सरकार का गठन कर लिया था.


झारखंड में तीन-तीन बार क्यों महीनों तक लगाना पड़ा राष्ट्रपति शासन?


झारखंड में तीन बार ऐसे राजनीतिक संकट भी सामने आए, जब कई सियासी पार्टी आपस में मिलने के बावजूद सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा सकीं. गठबंधन भी फेल हो गए, जिसकी वजह से राज्य में तीन बार राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. झारखंड में पहली बार 19 जनवरी 2009 से 29 दिसंबर 2009 लगभग एक साल तक, दूसरी बार एक जनवरी 2010 से 10 सितंबर 2010 लगभग नौ महीने तक और तीसरी बार 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक लगभग छह महीने तक राष्ट्रपति शासन लागू रहा. हालांकि, हर बार जोड़-तोड़ के बाद सरकार बनने के बाद राष्ट्रपति शासन हटा और फिर से विधानसभा चुनाव की नौबत नहीं आई.


झारखंड में अब तक क्यों किसी भी सियासी दल को अकेले नहीं मिला बहुमत?


झारखंड की भौगोलिक और डेमोग्राफिक विविधता इस सवाल का बड़ा जवाब है. आदिवासी बहुल झारखंड राज्य भौगोलिक और राजनीतिक तौर पर कई क्षेत्रों में बंटा हुआ है और इनमें स्थानीय क्षत्रपों का बोलबाला है. इनका अलग-अलग समय पर अलग अलग राजनीतिक दलों के साथ जुड़ाव हो जाता है. वहीं, राज्य में प्रमुख दलों के अलावा कई छोटी-छोटी सियासी पार्टियां भी असर रखती हैं, जो इक्का-दुक्का सीटें निकाल कर भी बड़ी पार्टियों का खेल खराब कर देती हैं. बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्यों से लगती सीमा में वहां के दलीय प्रभाव भी कई बार सीटों का समीकरण बनाती और बिगाड़ती है.


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झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में क्या है मौजूदा स्थिति और सियासी समीकरण?
 
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा और झामुमो ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है. भाजपा ने 68 में 66 नामों की सूची जारी कर दी, वहीं, झामुमो ने 35 उम्मीदवारों के नाम जारी किए हैं. दोनों ही दलों टिकट बंटवारे के बाद नेताओं का असंतोष बढ़ गया है. झारखंड विधानसभा चुनाव के लिए दो चरणों में 13 और 20 नवंबर को मतदान होगा. वहीं, 23 नवंबर को मतगणना के बाद नतीजे जारी किए जाएंगे.


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