जम्मू: जम्मू कश्मीर (J&K) से अनुच्छेद 370 हटने के बाद प्रदेश में जिला विकास परिषद (DDC) के चुनाव हो रहे हैं. इन चुनाव के अब तक 8 चरणों में से 2 चरण पूरे हो चुके हैं. इन दो चरणों में ही जनता के जोश और उत्साह ने इसकी कामयाबी की इबारत लिख दी है.


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जम्मू कश्मीर में दो चरणों की हो चुकी है वोटिंग
प्रदेश में 28 नवंबर को पहले चरण के लिए 43 सीटों पर करीब 52 प्रतिशत मतदान हुआ. दूसरे चरण के लिए 43 सीटों पर करीब 49 प्रतिशत वोट डाले गए. कभी चुनावों के बहिष्कार को ही राजनीति का धर्म मानने वाला कश्मीर आज वोटिंग के लिए ज्यादा और ज्यादा वक्त की मांग कर रहा है. 


DDC चुनावों में उमड़ रही है मतदाताओं की भीड़
सुरक्षा की वजह से मतदान के लिए सुबह 7 बजे से दोपहर 2 बजे तक का वक्त निर्धारित है. लेकिन लोगों की मांग है कि आने वाले चरणों में इस समय को ओर बढ़ाया जाए. कड़ाके की ठंड में इन चुनावों में लोगों की भागीदारी ने रिकॉर्ड बनाया है. 


अनुच्छेद 370 की वजह से आज तक नहीं हो पाए थे चुनाव
जम्मू कश्मीर के अनुच्छेद 370 लागू होने की वजह से आज तक DDC के चुनाव नहीं हो पाए थे. जिससे वहां के लोग देश के बाकी क्षेत्रों की तरह स्थानीय स्वशासन से महरूम थे. पिछले साल जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद DDC चुनावों का रास्ता साफ हुआ. जिसके बाद लोग जमकर इन निकाय चुनावों में भागीदारी कर रहे हैं.


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IPS इम्तियाज हुसैन ने शेयर किया DDC चुनावों का वीडियो
जम्मू कश्मीर के IPS इम्तियाज हुसैन ने DDC चुनाव में भागीदारी करने पर लोगों की खुशी का एक वीडियो ट्वीट किया है. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि कश्मीर घाटी में चुनाव प्रचार के लिए जुलूस निकल रहा है और उस भीड़ में शामिल लोग जमकर थिरक रहे हैं. IPS इम्तियाज हुसैन ने लिखा कि यह किसी एक की नहीं बल्कि लोकतंत्र की जीत है. काफी समय बाद लोगों के चेहरे पर खुशी देखकर अच्छा लग रहा है. 


देखें वीडियो- 



गुपकार गठबंधन को है अनुच्छेद 370 हटने का भारी मलाल
बता दें कि जम्मू कश्मीर में वर्षों से राज करने वाले परिवार को अनुच्छेद 370 हटने का भारी मलाल है. इससे उनकी पारिवारिक सत्ता उनसे हमेशा के लिए छिन गई है. कभी एक-दूसरे के गले की फांस बनने वाली पार्टियां भी 370 की बहाली के लिए अब गले मिल रही हैं. बौखलाहट का आलम तो ये है कि उन्हें तिरंगा उठाने पर भी ऐतराज है. 


सत्ता को पारिवारिक जागीर समझने वाले दल नाराज
महबूबा की ये बेचैनी यूं ही नहीं है. किसी का काला सच अगर सामने आये तो ऐसा आक्रोश लाजमी है. सत्ता को परिवार की जागीर समझने वाले अगर ज़मीन पर आ जाएं तो ये गुस्सा लाजमी है. क्योंकि सच कितना भी पर्दानशीं क्यों ना हो, वक्त की ठोकर उसे बेपर्दा कर ही देती है. 


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