संस्कार और भजन-कीर्तन से दूर हो सकता है Depression, JNU अध्ययन का दावा
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का संस्कृत अध्ययन संस्थान के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि बच्चों को दिए गए संस्कार और भजन-कीर्तन डिप्रेशन सहित दिमाग से संबंधित अन्य समस्याओं को दूर कर सकते हैं.
नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय का संस्कृत अध्ययन संस्थान के एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि बच्चों को दिए गए संस्कार और भजन-कीर्तन डिप्रेशन सहित दिमाग से संबंधित अन्य समस्याओं को दूर कर सकते हैं. ये विकल्प दवाइयों से बेहतर है, क्योंकि मनोचिकित्सा और दवाएं मरीजों की स्थिति को और बिगाड़ रही हैं. छोटी उम्र से ही भजन-कीर्तन सुनना स्ट्रेस बस्टर के रूप में काम करेगा. DNA में प्रकाशित खबर के मुताबिक, जेएनयू में वैदिक शास्त्र के प्रोफेसर सुधीर कुमार आर्य ने कहा कि इस तरह का शोध कार्य पहली बार किया गया है. उन्होंने कहा कि, भागवत पुराण और अग्नि पुराण पर आधारित अध्ययन में सामने आया कि प्रारंभिक अवस्था में सिखाए गए नैतिक मूल्यों से चिंता, तनाव, अवसाद या अन्य मानसिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ेगा.
योग भी इस समस्या से जूझने में काफी मददगार साबित होता है. रिसर्च में कहा गया कि न्यूक्लियर फैमिली और परिवार में एक ही बच्चा होने जैसी अवधारणाएं भी युवाओं में अवसाद और तनाव का कारण बन रहे हैं. इन समस्याओं के लिए उपलब्ध चिकित्सा उपचार केवल शारीरिक समस्याओं का इलाज कर सकते हैं लेकिन मानसिक समस्याओं का नहीं.
अवसाद खत्म करने वाली दवाएं बन सकती हैं जान की दुश्मन
रिसर्च करने वाली नंदिनी दास ने कहा, कि इस तरह की समस्याएं पुराने जमाने से ज्यादा आधुनिक युग में देखने को मिल रही हैं. हम आमतौर पर दिमाग से जुड़ी समस्याओं को विदेशी अवधारणा मानते हैं, लेकिन हमारे पुराणों और वेदों तक में इसका जिक्र मिलता है.
अच्छी सेहत के लिए आध्यात्मिक कार्यों की महत्ता पर बात करते हुए नंदिनी ने कहा कि, रिसर्च करते हुए हमने पाया कि भजन और कीर्तन सुनने से स्ट्रेस जैसी समस्याएं नहीं होती. इसे छोटी उम्र में ही हमारी जीवनशैली का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.
तनाव और अवसाद को रोकने में मददगार हैं ये फूड्स!
प्रोफेसर सुधीर कुमार आर्य ने कहा कि, हमारे समाज में मानसिक समस्याओं को पागलपन से जोड़ा जाता है. ऐसे में उन्हें मनोचिकित्सक के यहां ले जाया जाता है. लेकिन इलाज के रूप में वे सिर्फ दवाइयां देते हैं, जो नुकसनादेह है. न्यूक्लियर फैमिली के बढ़ते चलन पर प्रोफेसर आर्य ने कहा कि, इसके कारण युवाओं में अवसाद जैसी समस्याएं ज्यादा देखने को मिलती हैं, क्योंकि उनमें अनुशासित जीवन जीने की आदत नहीं होती, जिससे वे अपने नैतिक भावना पर नियंत्रण खो देते हैं.