नई दिल्ली: कर्नाटक में शनिवार को बहुमत साबित करने के लिए बी.एस येदियुरप्पा को फ्लोर टेस्ट देना होगा. शाम चार बजे होने वाला ये टेस्ट ये फैसला करेगा कि कर्नाटक की सत्ता किसके हाथ में जाएगी. यदि बहुमत नहीं मिलता है तो येदियुरप्पा सबसे कम समय तक मुख्यमंत्री पद पर रहने के अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ देंगे. भारत की राजनीति में ऐसे कई मौके आए जब फ्लोर टेस्ट ने सत्ता बदलकर रख दी.


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एक वोट से गिर गई थी वाजपेयी सरकार
साल 1998 में हुए लोकसभा चुनावों में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को अन्नाद्रमुक का साथ मिला और अटल बिहारी वाजपेयी केंद्र में अपनी सरकार बनाई. लेकिन 13 महीनों में ही अन्नाद्रमुक ने अपना समर्थन वापस ले लिया. वाजपेयी सरकार अल्पमत में आ गई, जिसके बाद विपक्ष की मांग पर राष्ट्रपति ने सरकार को अपना बहुमत साबित करने को कहा. फ्लोर टेस्ट में वाजपेयी सरकार बहुमत नहीं पा सकी और सिर्फ एक वोट के अंतर से सरकार गिर गई, जिसके बाद वाजपेयी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.


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मायावती ने करवाया फ्लोर टेस्ट
साल 1993 में यूपी में विवादित ढांचा ध्वस्त होने के बाद जन्में हालातों को देखते हुए तत्कालीन सत्तारूढ़ कल्याण सिंह की सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. इसके बाद चुनाव हुए और समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी ने गठबंधन से सरकार बनाई. लेकिन पूरा कार्यकाल होने से पहले ही बसपा ने समर्थन वापस ले लिया. विधानसभा में फ्लोर टेस्ट हुआ जिसमें बसपा, बीजेपी के समर्थन से बहुमत पाने में कामयाब रही. इसके बाद राज्य की सत्ता की बागडोर मायावती के हाथों में चली गई.


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चंद्रशेखर सरकार से कांग्रेस ने वापस लिया समर्थन और गिर गई सरकार
जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने समाजवादी जनता पार्टी का गठन किया. साल 1990 के नवंबर में चुनाव हुए तो उनकी पार्टी को 64 वोट मिले. फ्लोर टेस्ट हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें सपोर्ट दिया. उस समय विपक्ष के नेता राजीव गांधी थे. चंद्रशेखर ने पीएम पद की शपथ ली. लेकिन कुछ ही महीने बीते थे कि राजीव गांधी के घर के बाहर से दो पुलिसकर्मी गिरफ्तार किए गए जिन्होंने जासूसी की बात स्वीकारी. कहा जाता है कि इस मामले में चंद्रशेखर सरकार की भूमिका पाई गई, जिसके बाद कांग्रेस ने सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया. आखिरी समय तक चंद्रशेखर ने बहुमत जुटाने की कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. फ्लोर टेस्ट होने ही वाला था कि चंद्रशेखर ने अपना इस्तीफा सौंप दिया.


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रथ रुका और गिर गई केंद्र सरकार
वीपी सिंह जनता दल के अध्यक्ष चुने गए तो उनकी अगुवाई में साल 1989 के चुनावों में चुनौती पेश करने के लिए कई क्षेत्रीय दल एक साथ आए, जिसके बाद नेशनल फ्रंट का गठन हुआ. चुनाव में फ्रंट ने मजबूती से उभर कर आई लेकिन उसे बहुमत बनाने जितनी सीटें नहीं मिलीं. नेशनल फ्रंट ने भाजपा और वाम पार्टियों का समर्थन पाया और केंद्र में सरकार बनाई. वीपी सिंह पीएम बने. 1990 में भाजपा राम मंदिर मुद्दे को लेकर रथ यात्रा लेकर निकली. यह यात्रा जब बिहार पहुंची तो तत्कालीन सीएम व जनता दल के सदस्य लालू प्रसाद यादव ने रथ के पहियों को रुकवा दिया. उन्होंने इसकी इजाजत नहीं दी और लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया गया. ऐसा होने पर नाराज भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. संसद में बहुमत पेश नहीं कर पाने के बाद सिंह ने इस्तीफा दे दिया.


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फ्लोर टेस्ट से पहले कांग्रेस के कारण गिरी सरकार
जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने. लेकिन पार्टी में अंदरूनी कलह के चलते ये सरकार टिक नहीं पाई. 28 जुलाई 1979 को कांग्रेस और सीपीआई की मदद से चरण सिंह पीएम बने. राष्ट्रपति ने उन्हें 20 अगस्त तक बहुमत साबित करने का वक्त दिया. लेकिन फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले ही कांग्रेस ने अपना समर्थन वापस ले लिया, जिसके बाद चरण सिंह ने इस्तीफा दे दिया.