Supreme Court Hearing: कर्नाटक के शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब बैन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के 2 जजों ने अलग-अलग फैसला दिया है. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज किया और स्कूलों हिजाब पर रोक के कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. वहीं जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को रद्द किया. कुल 209 पेज के फैसले में  जस्टिस हेमंत गुप्ता 133 पेज का और जस्टिस सुधांशु धूलिया का 73 पेज का फैसला है.


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आइए जानते हैं कि लिखित फैसले में दोनों जजों ने क्या-क्या कहा है


-जस्टिस हेमंत गुप्ता के फैसले की मुख्य बातें:-


जस्टिस हेमंत गुप्ता  का फैसला 133 पेज का है. उन्होंने कहा:-


-  धर्म एक निजी विषय है. सरकार की  ओर से संचालित धर्मनिरपेक्ष स्कूल में धर्म का कोई मतलब नहीं है. छात्र क्लास रूम के बाहर अपने धर्म/ धार्मिक परम्पराओं पर अमल के लिए स्वतंत्र है. क्लास  के अंदर धार्मिक पहचान को पीछे छोड़ देना चाहिए.


-धर्मनिरपेक्षता सब पर लागू होती है, इसलिए किसी एक  धार्मिक समुदाय को धार्मिक पोशाक पहनने की इजाज़त देना धर्मनिरपेक्षता के उसूलों के खिलाफ होगा. इसलिए सरकार का  आदेश धर्मनिरपेक्षता के सिद्धान्त  और कर्नाटक एजुकेशन एक्ट के उद्देश्य के खिलाफ नहीं है.


-अगर एक  धर्म को मानने वाले छात्र अपनी धार्मिक पोशाक पहनने पर अड़े रहते है तो ऐसी सूरत में दूसरे धर्म के लोगों को इससे रोकना मुश्किल होगा जो स्कूल के माहौल के लिए ठीक नहीं होगा.


-स्कूल की ड्रेस छात्रों के बीच तमाम धार्मिक / आर्थिक हैसियत के अंतर   खत्म कर एकरूपता और समानता की भावना को बढ़ावा देती है. स्कूली छात्रों से अनुशासन की उम्मीद की जाती है और स्कूल की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो ऐसी बुनियाद खड़ी कर जिसके चलते छात्र आगे चलकर जिम्मेदार नागरिक बन सके.


-सरकारी आदेश का मकसद छात्रों के बीच एकरूपता  और स्कूलों  में धर्मनिरपेक्ष माहौल को बढ़ावा देना था.


- सिखों की पगड़ी के हवाला देने की दलील को खारिज करते हुए जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि पंजाब हरियाणा  कोर्ट की फूल बेंच के फैसले के मुताबिक  कृपाण, केश सिख का अनिवार्य हिस्सा रहा है.  उस फैसले को कहीं और चुनौती नहीं दी गई. सिखों द्वारा  अनिवार्य धार्मिक परम्परा का निर्वहन इस्लाम के अनुनायियों के लिए हिजाब की इजाज़त का आधार नहीं हो सकता.


जस्टिस सुधांशु धूलिया के फैसले की अहम बातें


जस्टिस धुलिया ने कहा:-


- हमारे संवैधानिक ढांचे के मुताबिक हिजाब का पहनना सिर्फ व्यक्तिगत पसंद का मसला होना चाहिए. ये भले ही इस्लाम का अनिवार्य हिस्सा न हो, लेकिन इसके  बावजूद ये पसंद, विवेक का मसला है.


-अगर छात्रा   क्लास रूम में हिजाब पहनती  है तो उन्हें इससे रोका नहीं जा सकता क्योंकि हो सकता है कि हिजाब ही उस छात्रा के लिए एकमात्र जरिया हो जिसके जरिये रूढ़िवादी परिवार से उसे स्कूल जाने की इजाज़त मिली हो.


-एक लड़की के लिए अभी भी शिक्षा के लिए स्कूल तक पहुंचना आसान नहीं है. हिजाब बैन  जैसे प्रतिबंध उन्हें शिक्षा से वंचित कर देंगे. कोर्ट के सामने  सवाल ये है कि  क्या हिजाब पहनने के चलते पढ़ाई से वंचित करके हम लड़कियों की जिंदगी बेहतर कर रहे है?


-स्कूल में एंट्री से पहले हिजाब को उतरवाना छात्राओं की निजता, गरिमा पर हमला है, आखिरकार उन्हें शिक्षा से वंचित करना है. ये संविधान के  19(1)(a), आर्टिकल 21 और आर्टिकल 25 (1)के तहत दिये मूल अधिकारों का हनन है.


-स्कूल प्रशासन और सरकार को ये सोचना चाहिए कि लड़कियों के लिए शिक्षा ज़रूरी है या ड्रेस कोड.


-निजता और गरिमा का अधिकार सिर्फ स्कूल के बाहर ही नहीं, क्लासरूम में भी लागू होता है. एक लड़की को घर के अंदर, घर के बाहर हिजाब पहनने का अधिकार है और ये अधिकार स्कूल गेट पर जाकर खत्म नहीं हो जाता.


-सभी याचिकाकर्ता हिजाब की मांग कर रहे है. क्या लोकतंत्र में इस मांग को पूरा करना मुश्किल है. क्या ये (मूल अधिकारों पर वाजिब प्रतिबन्धों के आधार ) नैतिकता, स्वास्थ्य और पब्लिक आर्डर के खिलाफ है?


- कर्नाटक HC के 15 मार्च 2022 के आदेश को खारिज किया.


-5 फरवरी के सरकारी आदेश निरस्त किया जाता है.


-कर्नाटक में स्कूल/ कॉलेजो में हिजाब पर कोई बैन नहीं रहेगा.



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