नई दिल्ली: कर्नाटक लोकसभा चुनाव में सत्तारूढ़ कांग्रेस-जद(एस) गठबंधन के लिए अपने अपने मत हस्तांतरित कराना एक चुनौती होगी क्योंकि दोनों ने राज्य विधानसभा चुनाव एक-दूसरे के खिलाफ लड़े थे. मैसूर क्षेत्र में यह और भी अधिक चुनौतीपूर्ण होने वाला है जहां दोनों दलों को धुर विरोधी माना जाता है और दोनों दशकों से एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं.


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कांग्रेस और जद(एस) ने मई 2018 के विधानसभा चुनावों में एक-दूसरे के खिलाफ काफी कुछ बोला था. त्रिशंकु नतीजे आने और भाजपा के अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनने लेकिन आवश्यक मत हासिल ना करने की स्थिति को ध्यान में रखते हुए, कांग्रेस और जद (एस) ने चुनाव के बाद गठबंधन कर लिया.


कई सप्ताह तक चले विचार-विमर्श के बाद बुधवार को दोनों दलों के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत कांग्रेस 20 और जद(एस) आठ लोकसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी. गठबंधन के भाजपा के विपक्षी के रूप में उभरने और अधिक संख्या में सीटें जीतने के लिए कांग्रेस को अपने मत जद (एस) को और जद (एस) को अपने वोट कांग्रेस को हस्तांतरित करना आवश्यक होगा.


मतों के हस्तांतरण को 'बड़ी चुनौती' मानते हुए जद(एस) के वरिष्ठ नेता वाय एस वी दत्ता ने कहा कि पुराने मैसूरू क्षेत्र में अधिक चुनौती है क्योंकि कांग्रेस और उनकी पार्टी वहां बड़े विरोधी हैं और भाजपा का वहां कोई अस्तित्व नहीं है. 


उन्होंने कहा, 'हम लगातार कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ते रहे हैं. अब अचानक कांग्रेस कार्यकर्ताओं को हमारे उम्मीदवारों का समर्थन करना और हमारे समर्थकों का कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन करना थोड़ा अजीब होगा'.


जद (एस) की अभियान समिति के प्रमुख दत्ता ने कहा कि यह स्थानीय चुनाव नहीं है इसलिए वह दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच उस तरह की प्रतिस्पर्धा की उम्मीद नहीं करते. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और विधायक रामलिंगा रेड्डी ने सच्चाई को किसी भी गठबंधन की सफलता का सूत्र बताते हुए कहा, 'यह अब भी शुरुआती चरण है. थोड़ी गड़बड़ी हो सकती है लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा और वे (दोनों पार्टियों के कार्यकता) तालमेल बैठा लेंगे'.