Battle of Hydaspes: सिकंदर को विश्व विजेता बताया जाता है, हालांकि इतिहासकारों में मतभेद है. इतिहासकार मानते हैं कि ग्रीस के अगल बगल के इलाकों का जीत जाना या आधुनिक ईरान पर कब्जा कर लेने मात्र से वो विश्वविजेता नहीं बन जाता. ईरान को फतह करने के बाद उसके दिल और दिमाग में भारत फतह करने का विचार आया और उसकी सेना ने कूच किया. जब वो भारत की तरफ कूच किया उस वक्त मगध में धनानंद का शासन था. अगर सिकंदर के भारत अभियान की बात करें तो उसे बीच में लौटना पड़ा और उस क्रम में एक और राजा से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा जिसे पौरस के नाम से जानते हैं. 


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327 बीसी में भारत की तरफ कूच


327 बीसी यानी ईसापूर्व सिंकदर अपनी बड़ी सेना के साथ भारत की  तरफ कूच किया. उसकी डर की वजह से कुछ छोटे छोटे कबीलों में आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन व्यास नदी के तट पर राजा पौरस के प्रतिरोध को देखकर उसकी सेना ने आगे बढ़ने से मना कर दिया. पौरस की सेना सिकंदर की सेना के मुकाबले कम अनुभवी थी लेकिन हाथियों की मदद से पौरस ने सिकंदर को उलझा कर रख दिया. यह बात सच है कि पौरस की हार हुई लेकिन सिकंदर और उसकी सेना को यह अनुभव हो चुका था कि मगध के राजा से लड़ाई लड़ना आसान न होगा. ब्यास नदी के तट पर पौरस के सैनिकों ने बहादुरी की जो मिसाल पेश की उसकी चर्चा आज भी होती है, अलेक्जेंडर का विजय रथ रुक चुका था. इतिहासकारों के मुताबिक सिकंदर की फौज उसे और कुछ खास सिपहसालारों की राय बनी कि एक छोटे से राज्य का राजा जब इतना विरोध कर सकता है तो धनानंद के खिलाफ लड़ाई आसान नहीं रहने वाली है. वैसी सूरत में वापस लौटना ही बेहतर विकल्प है.


प्रिय घोड़ा भी खो बैठा


ब्यास नदी के तट पर हुई लड़ाई में सिकंदर ने अपने प्रिय घोड़े बुकाफेलो को खो बैठा. बुकाफेलो की मौत युद्ध में घावों की वजह से हुई थी या अधिक उम्र की वजह से हुई इसे लेकर तरह तरह के विचार हैं. हालांकि सिकंदर ने अपने प्रिय घोड़े की याद में बुकाफेला नगर की स्थापना की. पौरस के खिलाफ मिली जीत के बाद उत्साहित सिकंदर आगे बढ़ना चाहता था. लेकिन उसके सैनिकों का उत्साह कम हो गया था और वो आगे नहीं बढ़ना चाहते थे. अपने सैनिकों के रुख को देखकर सिकंदर ने सिंध नदी के रास्ते वापस लौटने का फैसला किया हालांकि उसे माली की लड़ाई में व्यक्तिगत तौर पर नुकसान हुआ था. माली की लड़ाई में मिली चोट के बाद उसने अपनी सेना को दो हिस्सों में बांटा. एक हिस्सा ईरान की तरफ तो दूसरा हिस्सा गेडरोसिया की तरफ रवाना हुई. बता दें कि 323 बीसी में बेबोलोन में सिकंदर का निधन हो गया.