नई दिल्ली: भारतीय सेना के कर्नल अशोक तारा (Col Ashok Tara) 1971 में सिर्फ 29 साल के थे, जब वो बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान (Sheikh Mujibur Rahman) के परिवार की जान बचाने के लिए दो जवानों के साथ गए थे. उस समय कर्नल तारा ने पाकिस्तानी सेना के चंगुल से शेख हसीना (Sheikh Hasina) और उनके नवजात बच्चे की जान बचाई. हसीना मौजूदा दौर में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री हैं. इस घटना के 50 साल बाद, हमारे सहयोगी चैनल WION के प्रिंसिपल डिप्लोमैटिक कॉरेस्पोंडेंट सिद्धांत सिब्बल ने कर्नल तारा से बात की. 


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कर्नल तारा की जुबानी 1971 की कहानी
बीतचीत में कर्नला तारा ने 1971 के बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम के दौरान दिसंबर के उस दिन के बारे में बताया जब उन्होंने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता शेख मुजीबुर रहमान के परिवार की खातिर जान की बाजी लगा दी. मुजीबुर रहमान के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए वीर चक्र पुरस्कार विजेता कर्नल अशोक तारा ने बताया, ढाका में धानमंडी नामक स्थान से मुजीबुर रहमान के परिवार को बचाया था. उम्मीद की जा रही है कि बांग्लादेश के 50वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर यहीं होने वाले कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) शामिल हो सकते हैं. कर्नल तारा ने कहा, 'बांग्लादेश के लोगों के लिए मेरा संदेश है, कि भारतीय और बांग्लादेशी भाई हैं .... हमें एक परिवार के रूप में एक साथ रहना चाहिए.'


शेख हसीना ने की थी सराहना 
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने दिसंबर 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के साथ हुई वर्चुअल समिट के दौरान भारत की सराहना करते हुए जिक्र किया था. उन्होंने कहा था, 'उस समय भारतीय सेना के प्रमुख अधिकारी कर्नल अशोक तारा ने 17 दिसंबर की सुबह मेरे परिवार को पाकिस्तान के चंगुल से मुक्त कराया था. मैं भारत के लोगों, भारतीय सेना और कर्नल तारा के प्रति आभार व्यक्त करती हूं.'


1971 का वो दिन
उस दिन को याद करते हुए कर्नल अशोक तारा बताते हैं, 1971 की लड़ाई में पाकिस्तानी सेना शेख हसीना के घर को घेरे हुए थी. पाकिस्तानी लगातार घर तक पहुंचने की कोशिश करने वालों पर गोलीबारी कर रहे थे. कर्नल तारा ने बताया, जब मैं घर के पास पहुंचा तो मुझे रोका गया और एक मीडियाकर्मी के शव की तरफ इशारा किया गया. मेरे पास केवल दो आदमी थे और घर पर हमला करने का कोई सवाल ही नहीं था क्योंकि अंदर लोग थे और उनकी जान खतरे में हो सकती थी. मैंने अपनी हिम्मत और समझदारी से पाकिस्तानियों का सामना करने का फैसला किया. मैंने अपने हथियार अपने दो जवान बाहर ही छोड़ दिए, बिना हथियार के अकेले घर की ओर बढ़ गया.


गोली मारने की दी थी धमकी
कर्नल तारा ने कहा, जब मैं घर के पास पहुंचा और पूछा, कोई है क्या? पाकिस्तानी सैनिकों ने मुझे पंजाबी में कहा और पंजाबी होने के नाते मैं भाषा समझ रहा था. उन्होंने मुझसे कहा कि रुक ​​जाओ वरना गोली चला देंगे. उन्होंने मुझे गाली दी, लेकिन मैं चुप रहा क्योंकि मुझे पता था कि मेरा काम क्या है, मेरा उद्देश्य क्या है. मैंने बाद में उन्हें फिर से स्थिति को समझाने की कोशिश की. संयोग से, एक भारतीय हेलीकॉप्टर ने घर पर उड़ान भरी. मैंने तुरंत उन्हें हेलीकॉप्टर को देखने के लिए कहा और पूछा क्या आपने कभी अपने सिर पर भारतीय हेलीकॉप्टर देखा है? इसके बाद वे बात करने को तैयार हुए.


जब आत्मसमर्पण के लिए तैयार हुए पाकिस्तानी 
25 मिनट तक चली बातचीत के बाद भी पाकिस्तानी सेना के कमांडर ने बंदूकें लोड करने का आदेश दिया और दूसरे घरों में लोगों पर गोलीबारी शुरू कर दी. मैंने उनसे कहा कि मैं इन तरीकों से डरने वाला नहीं क्योंकि यह आपको मुझसे अधिक नुकसान पहुंचाएगा. आप 12 लोग हैं, आप सभी मारे जाएंगे और कभी अपने घर नहीं पहुंचेंगे. यदि आप आत्मसमर्पण करते हैं तो मैं आपसे वादा करता हूं कि आपको घर तक पहुंचाया जाएगा. किसी तरह, वे सहमत हुए और आत्मसमर्पण कर दिया.


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जब मुजीबुर रहमान की पत्नी ने लगाया गले
मैंने फिर घर का दरवाजा खोला, सबसे पहले शेख मुजीबुर रहमान की पत्नी दिखीं. उन्होंने मुझे गले लगा लिया और कहा तुम मेरे बेटे हो और भगवान ने तुम्हें हमें बचाने के लिए भेजा है. उस दौरान, शेख मुजीबुर रहमान के चचेरे भाई कोखा ने मुझे बांग्लादेशी राष्ट्रीय ध्वज दिया और इस ध्वज की मेजबानी करने और पाकिस्तानी ध्वज को जमीन पर फेंकने की जिम्मेदारी दी. मैंने बांग्लादेशी झंडा फहराया और पाकिस्तानी झंडे को जमीन पर फेंक दिया.


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