जान हथेली पर रख फर्ज को अंजाम देते हैं ये कमांडो, 2016 सर्जिकल स्ट्राइक से इनका नाता
PARA SF Commando: जब कभी 2016 सर्जिकल स्ट्राइक की बात सामने आती है कि मरून टोपी वाले कमांडों जेहन में आने लगते हैं. यहां हम बताएंगे कि इन्हें किस नाम से पुकारा जाता है और कितनी कठिन प्रक्रिया के बाद ये कमांडो तैयार किए जाते हैं.
PARA SF Commando History: यूं ही भारतीय फौज को दुनिया में पेशेवर फौज के तौर पर नहीं जाना जाता. चाहे लड़ाई 1965, 1971 या 1999 की हो. तीनों जंग में बहादुरी की कहानियां देश ही नहीं दुनिया में भी सुनाई जाती हैं. यही नहीं भारतीय फौज के जांबाज जवानों में से ही कुछ जवानों को स्पेशल ट्रेनिंग देकर खतरनाक ऑपरेशन में लगाया जाता है जिन्हें कमांडो कहते हैं. आपने एनएसजी, एसपीजी, गरुण कमांडो का नाम सुना होगा. लेकिन यहां पर हम पैरा एसएफ की जिक्र करेंगे जिनके बारे में कहा जाता है कि पलक झपकते ही अपने टारगेट को यह मौत की नींद सुला देते हैं. इनके होने का अर्थ है कि आप को चिंता करने की जरूरत नहीं है,
पैरा एसएफ का इतिहास
यहां हम बताएंगे कि इस खास फोर्स का गठन कब किया गया था और इसके पीछे मकसद क्या था. पैरा एसफ के जवान तब चर्चा में आए थे जब इन्होंने 2016 सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान पैरा एसएफ के कमांडो ने डोगरा रेजीमेंट के जवानों के साथ हिस्सा लिया था.
पैरा एसएफ को पैराशूट कमांडो भी कहते हैं.
1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय इसका गठन किया गया था.
इन कमांडो को करीब 9 महीने की ट्रेनिंग दी जाती है.
65 किग्रा वजन के साथ दौड़ में शामिल होना पड़ता है.
खतरनाक और जोखिम वाली ट्रेनिंग की सफल कामयाबी के बाद मरून कलर की टोपी मिलती है.
इस टोपी से पैरा एसएफ जवानों की पहचान होती है क्योंकि इनमें कैमोफ्लॉज होता है.
ये 30 से 35 हजार फुट की ऊंचाई से छलांग लगाने की प्रैक्टिस करते हैं.
देश में पैरा एसएफ की कुल 9 बटालियन हैं.