नई दिल्ली: भाद्र महीने में चतुर्थी को भगवान गणपति का जन्मोत्सव मनाया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार यह दिन अत्यंत शुभ होता है। इस दिन विधि पूर्वक किए गए पूजन से शुभ इच्छाएं पूर्ण होती हैं।


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पूजन के श्रेष्ठ मुहूर्त
गणेश पूजन का सही समय मध्याह्न काल को शुभ माना गया है, जो सुबह 11.08 से दोपहर बाद 1.34 तक रहेगा। इसमें सुबह 11.08 से दोपहर बाद 1.10 बजे तक वृश्चिक लग्न और भी श्रेष्ठ रहेगा। इसके अतिरिक्त प्रातः 6.16 से प्रातः 7.47 तक, शुभ का, सुबह 10.50 से दोपहर बाद 1.30 बजे तक चर व लाभ के तथा सायं 4.55 से सायं 6.26 तक शुभ के चौघड़िए भी शुभ हैं, जिनमें भी गणेश जी का पूजन किया जा सकता है।


गणेशजी के पूजन की सरल विधि
प्रातः स्नान आदि दैनिक कार्यों से निवृत्त होने के बाद गणपति को प्रणाम करें। उनकी प्रतिमा या चित्र के समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें। उन्हें पुष्प, रोली, अक्षत आदि अर्पित करें। भगवान को सिंदूर चढ़ाएं तथा दूर्वा दल भेंट करें। गणपति को भोग चढ़ाएं। उन्हें मूंग के लड्डू विशेष प्रिय हैं।


इसके पश्चात इन मंत्रों का 11 या 21 बार जाप करें- ऊं चतुराय नमः, ऊं गजाननाय नमः, ऊं विघ्नराजाय नमः, ऊं प्रसन्नात्मने नमः
इसके बाद गणेशजी की आरती करें और उन्हें नमन कर वर मांगें। उक्त विधि उन लोगों के लिए है जो समयाभाव के कारण पूर्ण विधि से गणपति का पूजन नहीं कर सकते। अगर आपके समय पूजन के लिए समय है तो इस विधि से भी गणपति का पूजन कर सकते हैं। इसे सामान्य पूजन विधि कहा जाता है। पूजन के लिए शुद्ध जल, सिंदूर, रोली, कपूर, घृत, दूब, चीनी, फूल, पान, सुपारी, रुई, प्रसाद (मोदक हो तो अतिउत्तम) आदि लें।


गणेशजी की प्रतिमा के समक्ष श्रद्धा धूप-दीप जलाएं और पूजन सामग्री अर्पित करें। अगर प्रतिमा अथवा चित्र न हो तो साबुत सुपारी पर मोली लपेटकर उसका पूजन कर सकते हैं। इसके पश्चात आह्वान मंत्र पढ़कर अक्षत डालें।


उक्त विधि को गणपति की साधारण पूजन विधि कहा जाता है। यह विधि गणेशजी की वृहद पूजन विधि कही जाती है। इसके लिए पूजन सामग्री के तौर पर शुद्ध जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, पंचामृत, वस्त्र, यज्ञोपवीत, सुगंध, लाल चंदन, रोली, सिंदूर, अक्षत, पुष्प, माला, दूब, शमीपत्र, गुलाल, आभूषण, धूपबत्ती, दीपक, प्रसाद, फल, गंगाजल, पान, सुपारी, रूई, कपूर आदि लें। यह सामग्री भगवान की प्रतिमा या चित्र के समक्ष रखें और मंत्र जाप करें-


भगवान का पूजन भक्त का उनके प्रति समर्पण का एक अंग है। पूजन का कभी समापन नहीं होता क्योंकि भक्त की हर सांस भगवान का स्मरण करती है। पूजन पूर्ण होता है आरती से। हर देवी-देवता के भजन-पूजन के बाद आरती की जाती है।