गणेश चतुर्थी: 10 दिन के उत्सव के बाद इसलिए किया जाता है मूर्ति विसर्जन
बॉलीवुड से लेकर आम लोगों तक सभी बप्पा की मूर्ति को बाजे-गाजे के साथ घर लाते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है.
नई दिल्ली: महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी के मौके पर खूब रौनक देखने को मिलती है. मुंबई शहर में गणेश चतुर्थी के उत्सव पर सजने वाले बप्पा के पंडाल पूरे देश में मशहूर हैं. बॉलीवुड से लेकर आम लोगों तक सभी बप्पा की मूर्ति को बाजे-गाजे के साथ घर लाते हैं और फिर अपनी यथाशक्ति के अनुसार गणपति को डेढ़ दिन से लेकर पांच, सात या फिर नौ दिन तक घर में रखने के बाद उनका विसर्जन करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान गणेश की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है.
गणेश प्रतिमा की विसर्जन कथा
धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार श्री वेद व्यास ने गणेश चतुर्थी से महाभारत कथा श्री गणेश को लगातार 10 दिन तक सुनाई थी जिसे श्री गणेश जी ने अक्षरश: लिखा था. 10 दिन बाद जब वेद व्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि 10 दिन की अथक मेहनत के बाद गणेश जी का तापमान बहुत बढ़ गया है. तुरंत वेद व्यास जी ने गणेश जी को निकट के सरोवर में ले जाकर ठंडे पानी से स्नान कराया था. इसलिए गणेश स्थापना कर चतुर्दशी को उनको शीतल किया जाता है.
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लगाया जाता है माटी का लेप
इसी कथा में यह भी वर्णित है कि श्री गणपति जी के शरीर का तापमान ना बढ़े इसलिए वेद व्यास जी ने उनके शरीर पर सुगंधित सौंधी माटी का लेप किया. यह लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई. माटी झरने भी लगी. तब उन्हें शीतल सरोवर में ले जाकर पानी में उतारा. इस बीच वेदव्यास जी ने 10 दिनों तक श्री गणेश को मनपसंद आहार अर्पित किए तभी से प्रतीकात्मक रूप से श्री गणेश प्रतिमा का स्थापन और विसर्जन किया जाता है और 10 दिनों तक उन्हें सुस्वादु आहार चढ़ाने की भी प्रथा है.
दूसरी मान्यता के अनुसार
मान्यता है कि गणपति उत्सव के दौरान लोग अपनी जिस इच्छा की पूर्ति करना चाहते हैं, वे भगवान गणपति के कानों में कह देते हैं. गणेश स्थापना के बाद से 10 दिनों तक भगवान गणपति लोगों की इच्छाएं सुन-सुनकर इतना गर्म हो जाते हैं कि चतुर्दशी को बहते जल में विसर्जित कर उन्हें शीतल किया जाता है.
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ध्ररा छह भुजाओं का अवतार
गणपति बप्पा से जुड़े मोरया नाम के पीछे गणपति जी का मयूरेश्वर स्वरूप माना जाता है. गणेश-पुराण के अनुसार सिंधु नामक दानव के अत्याचार से बचने के लिए देवगणों ने गणपति जी का आह्वान किया. सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मयूर को वाहन चुना और छह भुजाओं का अवतार धारण किया. इस अवतार की पूजा भक्त गणपति बप्पा मोरया के जयकारे के साथ करते हैं.