कोलकाता: साल 1933 में कोलकाता (Kolkata) में एक ऐसे हत्याकांड को अंजाम दिया गया, जिसने देश ही नहीं पूरी दुनिया को हिला दिया. विदेशी मीडिया में इस हत्याकांड की खबरें कई दिनों तक चलती रहीं. 26 नवंबर, 1933 को साजिश को अंजाम दिया गया और अगले कुछ दिनों में हत्यारा अपने मंसूबों में सफल हो गया. साजिश का शिकार होने वाले शख्स थे युवा जमींदार अमरेंद्र चंद्र पांडेय (Amarendra Chandra Pandey) . जब वह हावड़ा रेलवे स्टेशन पर खड़े थे तभी एक व्यक्ति उनके हाथ में कुछ चुभोकर आगे निकल गया.  


सौतेले भाई ने मामूली घटना बताया


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बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, 20 वर्षीय अमरेंद्र चंद्र पांडेय (Amarendra Chandra Pandey) दर्द से चिल्लाए, लेकिन तब तक वो शख्स भीड़ में गायब हो चुका था. अमरेंद्र अपने कुछ रिश्तेदारों के साथ पाकुड़ (वर्तमान में झारखंड में स्थित) जा रहे थे. इस घटना के बाद भी उन्होंने अपना सफर जारी रखने का फैसला किया. हालांकि, रिश्तेदार चाहते थे कि वह कोलकाता में रुककर अपने खून की जांच कराएं, लेकिन तभी अचानक बिन बताए स्टेशन पहुंचे अमरेंद्र से दस साल बड़े उनके सौतेले भाई बेनोयेंद्र (Benoyendra) ने इसे एक मामूली घटना बताते हुए उन्हें आगे बढ़ने के लिए कहा और वह तैयार हो गए.


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बुखार बढ़ा और हो गई मौत


तीन दिन बाद बुखार की वजह से अमरेंद्र वापस कोलकाता लौट आए. अगले कुछ दिनों में बुखार बढ़ गया और उनकी बगलों में सूजन आ गयी और फेंफड़ों की बीमारी के संकेत दिखने लगे. इसके बाद 3 दिसंबर की रात अमरेंद्र कोमा में चले गए और अगली सुबह उनकी मौत हो गई. डॉक्टरों का कहना था कि अमरेंद्र की मौत निमोनिया से हुई है. लेकिन उनकी मौत के बाद आई लैब रिपोर्ट्स में पता चला कि उनके खून में यरसिनिया पेस्टिस नामक जानलेवा बैक्टीरिया मौजूद था, जिससे प्लेग होता है.


टाइम मैगजीन ने कहा, 'जर्म मर्डर'


अमरेंद्र की मौत से पहले तीन सालों तक कोलकाता में प्लेग का एक भी मामला सामने नहीं आया था. यह खबर जंगल में आग की तरह फैल गई. टाइम मैग़जीन ने इसे 'जर्म मर्डर' यानी रोगाणु से हुई हत्या करार दिया. वहीं, सिंगापुर के स्ट्रेट्स टाइम्स ने इसे 'पंक्चर्ड आर्म मिस्ट्री' करार दिया. पुलिस ने जब इस मामले में जांच की तो उसे खतरनाक साजिश का पता चला. इस साजिश में कोलकाता से 1900 किलोमीटर दूर बॉम्बे (वर्तमान में मुंबई) के अस्पताल से जानलेवा बैक्टीरिया निकालना शामिल था. इस साजिश की वजह थी पारिवारिक संपत्ति को लेकर भाइयों के बीच झगड़ा. पांडेय भाइयों के बीच दो साल से उनके पिता की मौत के बाद से कोयला और पत्थर की खानों के लिए चर्चित पाकुड़ रिसायत को लेकर संघर्ष चल रहा था.


इस तरह रची गई साजिश


अदालती दस्तावेजों के मुताबिक, अमरेंद्र को मारने की साजिश संभवत: 1932 में रची गयी जब बेनोयेंद्र के करीबी मित्र डॉ तारानाथ भट्टाचार्य ने मेडिकल लैब से प्लेग के बैक्टीरिया के कल्चर को निकालने की कोशिश की. लेकिन वे इस कोशिश में असफल रहे. 1933 में बेनोयेंद्र बॉम्बे पहुंचे जहां उन्होंने भट्टाचार्य के साथ मिलकर दो पशुओं के डॉक्टरों को रिश्वत दी ताकि वे हेफ़किन इंस्टीट्यूट से प्लेग बैक्टीरिया के कल्चर को निकालकर उन्हें दें. बेनोयेंद्र बाज़ार जाकर चूहे खरीदकर लाए ताकि उन्हें गंभीर वैज्ञानिक के रूप में देखा जा सके. इसके बाद दोनों लोग ऑर्थर रोड इन्फेक्शियस डिसीज़ हॉस्पिटल पहुंचे जहां पर कल्चर रखे जाते थे.


हत्याकांड के 3 महीने बाद गिरफ्तारी


अदालती दस्तावेज़ों में बताया गया है कि बेनोयेंद्र ने यहां मौजूद अधिकारियों से अपने डॉक्टर मित्र को कथित इलाज के लिए लैब में काम करने देने की अनुमति मांगी. हालांकि, इस बात के प्रमाण नहीं हैं कि भट्टाचार्य ने लैब में किसी तरह का परिक्षण किया. लैब में काम करने की इजाजत मिलने के पांच दिन बाद 12 जुलाई को भट्टाचार्य अचानक अपना काम खत्म करके बेनोयेंद्र के साथ कोलकाता चले गए. पुलिस ने हत्या के तीन महीने बाद साल 1934 के फरवरी महीने में इन दोनों लोगों को गिरफ्तार कर लिया. जांच अधिकारियों ने बेनोयेंद्र की यात्राओं से जुड़े दस्तावेज़ों, बॉम्बे स्थित होटलों के बिल, होटल के रजिस्टर में उनकी हेंडराइटिंग, लैब को भेजे गए संदेशों और चूहे ख़रीदने वाली दुकानों की रसीदों को ट्रैक किया.



 


नौ महीनों तक चली मामले सुनवाई


इस मामले की सुनवाई नौ महीनों तक चली. अदालत ने कहा कि सबूतों से स्पष्ट होता है कि अभियुक्तों ने बॉम्बे स्थित अस्पताल से प्लेग बैक्टीरिया चोरी किया था और उन्हें कोलकाता तक लाया जा सका और 26 नवंबर 1933 तक ज़िंदा रखा जा सका. कोर्ट ने कहा कि बेनोयेंद्र और भट्टाचार्य ने अमरेंद्र की हत्या के लिए पैसे लेकर हत्या करने वाले एक व्यक्ति की मदद ली. इस मामले में दोनों को मृत्युदंड की सजा दी गई. हालांकि, हाई कोर्ट ने साल 1936 में इस मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए सजा को उम्र कैद में बदल दिया. इस मामले में गिरफ्तार दो अन्य डॉक्टरों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया. मामले की सुनवाई करने वाले जज ने टिप्पणी की थी कि 'आपराधिक इतिहास में ये एक संभवत: एक खास केस' है.