Lok Sabha Election: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुस्लिम समुदाय के संघर्षों की बात करके 2024 चुनाव का एजेंडा सेट कर दिया है. अब ये माने जाने लगा है कि आगामी लोकसभा चुनाव में पसमांदा मुस्लिम एक बड़ा मुद्दा बन सकता है. पीएम मोदी का बयान महत्वपूर्ण समय पर आया है क्योंकि बीजेपी ने पसमांदा मुस्लिम समुदाय के लिए अपने कार्यक्रम को तेज कर दिया है, एक ऐसा वर्ग जिसने वर्षों से भेदभाव और उपेक्षा का सामना किया है. अब ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या ये समुदाय मोदी सरकार के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है. 


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कौन हैं पसमांदा मुस्लिम? 


पसमांदा एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ है जो पीछे रह गए हैं. पसमांदा मुस्लिम का प्रयोग पिछड़े मुसलमानों के लिए किया जाता है. जनसांख्यिकी रूप से कहें तो भारत में पसमांदा मुसलमानों की संख्या कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 85-90% होने का अनुमान है. 


ऐसा कहा जाता है कि पसमांदा मुसलमानों का हिंदू आबादी के साथ एक अमिट संबंध है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि वे सदियों से इस्लाम में परिवर्तित हुए लोगों से आते हैं. कहा जाता है कि लगभग 40% पसमांदा मुसलमान उन जातियों से थे जो वर्तमान में ओबीसी हैं, जो कई राज्यों में बीजेपी का गढ़ है. 


बीजेपी ने 2022 में पसमांदा मुस्लिम को लेकर अपना अभियान शुरू किया, जिसमें कई समारोह आयोजित किए गए, जिनमें से सबसे उल्लेखनीय अक्टूबर में लखनऊ में हुआ, जहां उसने पसमांदा मुस्लिम समुदाय के प्रमुख सदस्यों और बुद्धिजीवियों के साथ एक सम्मेलन आयोजित किया. इसके बाद से हिंदी पट्टी खास कर बिहार और उत्तरप्रदेश में पसमांदा राजनीति पर गहन विचार-विमर्श होना शुरू हो गया.


बिहार में पसमांदा मुस्लिम मतों का 80 फीसदी वोटों का प्रतिनिधित्व करती है. पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की बीजेपी की कोशिश को महागठबंधन ने हल्के में नहीं लिया है. बीजेपी एमएलसी और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने 25 नवंबर को राजधानी पटना में पसमांदा मुद्दे पर एक परिचर्चा का आयोजन किया था, जिसमें आरएसएस नेता राम माधव और गुलाम गौस, साबिर अली और अख्तरी बेगम समेत कई मुस्लिम नेताओं ने हिस्सा लिया था.


बीजेपी की मनसा साफ है कि वह उनके करीब जाकर उनके भ्रम तोड़ेगी तभी वो महागठबंधन की धार को भी कुंद कर पाएगी. बीजेपी पसमांदा मुस्लिम के न केवल करीब जा रही है बल्कि उनकी भागीदारी की पंचायत, ब्लॉक और जिलों के स्तर के संगठन में जगह दी जा रही है. 


बीजेपी को पता है कि मुस्लिम मतों का सॉफ्ट कॉर्नर बन कर सीमांचल की चार लोकसभा सीट को प्रभावित किया जा सकता है. किशनगंज, पूर्णिया, अररिया, कटिहार में पसमांदा का 10 प्रतिशत वोट है, जो बीजेपी का चुनावी रंगत बदल सकती है.


JDU से अलग होते ही बीजेपी ने प्लान पी पर फोकस शुरू कर दिया था


2022 में जेडीयू से गठबंधन खत्म होने के बाद ही बीजेपी ने 'प्लान P' पर फोकस कर दिया था. बीजेपी के वरिष्ठ नेता संजय पासवान ने उस वक्त कहा था कि पिछले कई साल से पसमांदा मुस्लिमों को विकास से महरूम रखा गया है. इनके वोट बैंक को अपने पाले में कर कभी कांग्रेस तो कभी आरजेडी और जेडीयू ने बिहार में सरकार बनाई.  बीजेपी ने अब मुसलमानों को रिझाने के लिए खासकर पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग पर फोकस किया है. बीजेपी भी मानती है कि अभी तक पसमांदा समाज का समर्थन उसे नहीं मिला है, बावजूद इसके वो इन्हें अपने नजदीक लाना चाहती है. 


क्या अमित शाह उठाएंगे मुद्दा


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के दौरे पर जा रहे हैं. वह मोदी सरकार की 9 साल की उपल्बिधयों पर बात करेंगे. ऐसे में देखने वाली बात ये भी होगी कि क्या वह पसमांदा मुस्लिम पर बात करेंगे. वह अगर इसे संबोधन में शामिल करते हैं तो बिहार में बीजेपी और महागठबंधन के बीच लड़ाई और दिलचस्प हो जाएगी.