Madan Mohan Malviya News: मदन मोहन मालवीय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा, समाज सुधारक और शिक्षा क्षेत्र के प्रखर विचारक थे. उन्हें महात्मा गांधी ने 'महामना' की उपाधि दी थी. 12 नवंबर को उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर हम उनके जीवन के कुछ दिलचस्प पहलुओं पर नजर डालेंगे. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) की स्थापना, 'सत्यमेव जयते' का प्रचलन, और निजाम की जूती नीलाम करने जैसी घटनाएं उनके साहस और दूरदर्शिता की मिसाल हैं.


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संस्कृत में गहरी रुचि


मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को संस्कृत के एक विद्वान परिवार में हुआ था. पांच वर्ष की आयु से ही उन्होंने संस्कृत पढ़ना शुरू कर दिया था. उनके पूर्वज मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र से थे. इसलिए उन्हें 'मालवीय' कहा जाने लगा. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की और समाज सेवा की ओर कदम बढ़ाया.


शिक्षक और वकील के रूप में करियर की शुरुआत


मालवीय जी ने अपने करियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की. कुछ समय बाद उन्होंने वकालत का पेशा अपनाया और पत्रकारिता में भी कदम रखा. वे एक प्रमुख समाचार पत्र के संपादक भी रहे. जहां से उनकी समाज सेवा और देशभक्ति का सफर शुरू हुआ.


बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना


मदन मोहन मालवीय ने 1915 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना की. उनका सपना था कि भारत में एक ऐसा विश्वविद्यालय हो जो भारतीय संस्कृति और मूल्यों को बढ़ावा दे. BHU की स्थापना के लिए उन्होंने देशभर में चंदा इकट्ठा किया और शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया.


महात्मा गांधी से संबंध और 'महामना' की उपाधि


महात्मा गांधी ने उन्हें 'महामना' का सम्मान दिया था और बापू उन्हें अपना बड़ा भाई मानते थे. गांधी जी के साथ उनके विचारों की समानता ने स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें एक प्रमुख भूमिका निभाने के लिए प्रेरित किया. 'सत्यमेव जयते' का प्रचलन भी उन्हीं की देन है, जो बाद में भारत का राष्ट्रीय आदर्श वाक्य बना.


कांग्रेस अधिवेशनों में महत्वपूर्ण भूमिका


मालवीय जी ने 1909, 1913, 1919, और 1932 में कांग्रेस के विभिन्न अधिवेशनों की अध्यक्षता की. उन्होंने महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए सविनय अवज्ञा आंदोलन और असहयोग आंदोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई. उनकी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता ने कई लोगों को प्रेरित किया.


स्वतंत्रता के प्रति उनके विचार और उम्मीदें


भारत की आजादी के प्रति मालवीय जी का गहरा विश्वास था. उन्होंने कहा था कि भले ही वे स्वतंत्र भारत न देख पाएं, लेकिन उनकी आत्मा हमेशा स्वतंत्रता के सपने को जीवित रखेगी. अफसोस, आजादी मिलने के एक साल पहले ही उनका निधन हो गया.


निजाम की जूती का किस्सा


BHU निर्माण के लिए चंदा जुटाने के दौरान एक रोचक घटना घटी. मालवीय जी ने हैदराबाद के निजाम से आर्थिक सहायता मांगी. लेकिन निजाम ने अभद्रता से मना कर दिया और दान में देने के लिए अपनी जूती दी. मालवीय जी ने वह जूती उठाई और नीलामी के लिए बाजार में पहुंच गए.


बाजार में नीलामी और निजाम की प्रतिक्रिया


जब निजाम को पता चला कि उनकी जूती नीलाम हो रही है. तो उसने मालवीय जी को भारी धनराशि देकर जूती वापस ले ली. यह घटना मालवीय जी के साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक बन गई और आज भी प्रेरणादायक है.


BHU के लिए विशाल चंदा


मालवीय जी ने BHU निर्माण के लिए देशभर से 1 करोड़ 64 लाख रुपए चंदा इकट्ठा किया. उन्हें 1360 एकड़ जमीन, 11 गांव, 70 हजार पेड़ और अन्य संपत्तियां भी दान में मिलीं. यह विश्वविद्यालय निर्माण में उनके योगदान का प्रतीक है.


भारत रत्न और शिक्षा में योगदान की अमिट छाप


मालवीय जी का सपना था कि शिमला में भी BHU की तरह एक विश्वविद्यालय बने, हालांकि यह सपना अधूरा रह गया. 2014 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया. जो उनके शिक्षा और समाज सुधार के क्षेत्र में योगदान की पुष्टि करता है.