नई दिल्ली: हमारे सामने रोज कोई न कोई खबर आती है जो रेप या शारीरिक शोषण से जुड़ी होती है. हमारे मन में भी तब यही सवाल आता है कि आखिर कोई ऐसी हैवानियत कैसे कर सकता है. ब्रिटेन की एंग्लिया रस्किन यूनिवर्सिटी में क्रिमिनोलॉजी की छात्रा मधुमिता पांडे ने इसी सवाल को लेकर तिहाड़ जेल में बंद 100 रेप के दोषियों से बात की. इंटरव्यू के बाद जो तथ्य सामने आए उसने मधुमिता को बलात्कारियों को लेकर दिमाग में बैठी घृणा भरी सोच को बदल दिया. 


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वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक, 2013 में हुए निर्भया कांड के बाद दिल्ली में पली-बढ़ी मधुमिता की अपने शहर को लेकर सोच बदल गई. उन्होंने बताया कि हम सभी के दिमाग में ये सवाल था कि जो इंसान ये सब करता है वो ऐसा क्यों करता है? हम उन्हें राक्षस समझते हैं. हमें लगता है कि कोई सामान्य शख्स ऐसा कभी नहीं कर सकता.


मधुमिता ने बताया कि मेरे मन में भी यही सवाल था कि आखिर क्यों कोई ऐसा बन जाता है? ऐसी कौन सी परिस्थितियां होती हैं जो किसी इंसान को ऐसा बना देती हैं? उन्होंने इन सवालों का जवाब जानने के लिए उसके स्त्रोत तक जाने की सोची. इसके लिए उन्होंने तिहाड़ जेल को चुना. जहां उन्होंने हफ्तों तक 100 रेपिस्ट से इंटरव्यू लिया. 


जेल में बंद जिन भी बलात्कारियों से उनकी मुलाकात हुई उनमें से ज्यादातर अनपढ़ थे. कुछ तीसरी या चौथी पास थे. ऐसे कैदी कम ही थे जिन्होंने ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की हो. अपना अनुभव साझा करते हुए मधुमिता ने बताया कि वो भी अपने दिमाग में यही छवि लेकर गईं थी कि ये सब राक्षस हैं. लेकिन इन अपराधियों से बात करें तो पता चलता है कि वो भी आम इंसान हैं. उन्होंने जो भी किया उसके पीछे उनकी परवरिश और सोच जिम्मेदार है.


भारत में आज भी महिलाएं पारंपरिक भूमिकाओं में बंधी हुई हैं. आज भी महिलाएं अपने पति को नाम लेकर नहीं बुलाती हैं. पुरुषों में पुरुषत्व को लेकर गलत धारणाएं बनी हुई हैं, तो महिलाएं भी अपनी भूमिका पुरुषों के अधीन मानती हैं. बलात्कारी भी हमारे समाज का ही हिस्सा हैं. ऐसे में उनकी सोच भी महिलाओं को लेकर ऐसी ही है. 


उन्होंने कहा, आप यदि इन बलात्कारियों से बात करें तो आपको उन पर दया आने लगती है. आप भूल जाते हैं कि ये दुष्कर्म के दोषी हैं. मैं भी एक महिला हूं ऐसे में मुझमें ये भाव नहीं आने चाहिए. मेरे सामने जो आया उससे एहसास हुआ कि इन दोषियों में से आधों को तो ये पता ही नहीं है कि उन्होंने रेप किया है, जो एक जुर्म है. उन्हें ये पता ही नहीं है कि महिला की स्वीकृति क्या होती है. फिर आपके मन में सवाल आता है कि क्या ये सोच सिर्फ इनकी है या फिर ज्यादातर मर्द यही सोचते हैं.


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मधुमिता का कहना है कि भारतीय समाज की प्रवृत्तियां बेहद संकीर्ण हैं. यौन शिक्षा को लेकर न स्कूल में पढ़ाया जाता है न परिवार में इस बारे में बताया जाता है. माता-पिता आज भी घर में सेक्स जैसे विषयों पर बात नहीं करते. यदि लड़कों को इस बारे में कहीं से सिखाया ही नहीं जाएगा तो वो कैसे अच्छाई-बुराई को समझेंगे.


इंटरव्यू के दौरान ज्यादातर ने अपनी गलती मानने से इनकार कर दिया. कुछ ने कहा कि उन्होंने रेप ही नहीं किया, तो वहीं कुछ ने अपनी हरकत को सही बताते हुए तर्क दिए. ऐसे भी कई कैदी थे जिन्होंने घटना के लिए पीड़िता को ही जिम्मेदार ठहराया. 100 में से बस तीन-चार ही ऐसे दुष्कर्मी थे जो अपने जुर्म के लिए पछता रहे थे. इन रिएक्शन ने मधुमिता को हिला कर रख दिया.


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मधुमिता ने इसका एक उदाहरण भी दिया. एक दुष्कर्मी ने पांच साल की बच्ची के साथ रेप किया था. उससे जब इस बारे में पूछा गया तो उसने माना कि उससे गलती हुई है और उसे इसका पछतावा है. उसने कहा कि अब वो बच्ची वर्जिन नहीं रही इसलिए कोई उससे शादी नहीं करेगा. लेकिन वह यह भी बोला कि रिहा होने पर वह उस लड़की को अपनाएगा और उससे शादी भी करेगा. जब मधुमिता ने पीड़िता के परिवार से इस बारे में बात की तो उन्होंने बताया कि इस मामले में बच्ची को पता भी नहीं है कि उसका रेपिस्ट जेल में बंद है.


मधुमिता पांडे को उम्मीद है कि वो अपनी इस रिसर्च को कुछ महीनों में पब्लिश कर देंगी. हालांकि, उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें अपने काम के कारण दूसरों का विरोध भी देखना पड़ा. लोग उन्हें जज करते हैं. कहते हैं लो आ गई एक और फेमिनिस्ट जो ऐसी रिसर्च में पुरुषों को गलत तरीके से पेश करेगी. वो कहती हैं कि अब ऐसी सोच का आप क्या कर सकते हैं.