कर्ण मिश्रा/जबलपुर: मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरुस्त करने के चाहे कितने भी दावे किए जाएं. लेकिन, हर बार जो तस्वीरें आती हैं, वह वास्तविकता को बयान करती हैं. कई तस्वीरें तो ऐसी हैं, जो बार-बार सामने आती हैं. उसके बावजूद भी स्वास्थ्य महकमा इनको बदलने की कोशिश नहीं कर पा रहा है. जबलपुर में भी स्वास्थ्य सुविधाओं को तार-तार करने वाली कुछ ऐसे ही तस्वीरें सामने आई हैं. जहां जनसंख्या नियंत्रण के लिहाज से ग्रामीण अंचलों में आयोजित होने वाले नसबंदी शिविर किस ढर्रे में चल रहे हैं. इसकी बानगी तस्वीरों में आसानी से देखी जा सकती है.


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जबलपुर के बरगी विधानसभा के चरगवां स्वास्थ्य केंद्र में नसबंदी का आंकड़ा पूरा करने के लिए नसबंदी शिविरों का आयोजन हो रहा है. हर बार कोई न कोई अव्यवस्था आसानी से देखी जा रही है. लेकिन, उसको सुधारने की जगह हर बार तस्वीरें बद से बदतर नजर आ रही हैं. इस बार तो हद ही पार हो गई. चरगवां स्वास्थ्य केंद्र में टारगेट के चक्कर में 40 महिलाओं की नसबंदी की तैयारी की गई. जबकि एक समय मे स्वास्थ्य केंद्र में 6 महिलाओं को बिस्तर नसीब हो सकता है. 



एक ही समय मे सभी महिलाओं की नसबंदी करने के चलते हालात यह हुई कि बाकी की 34 महिलाएं एक वैकल्पिक इंतजाम को नसीब कर सकी. यह वैकल्पिक इंतजाम मानवीय दृष्टिकोण से बिल्कुल भी स्वीकार करने लायक नही है. महिलाओं को जमीन में बिस्तर पर लिटाया गया. एक के बाद एक महिलाओं को इस कदर लिटा दिया गया, जैसे इनमें जान ही न बची हो. एक तो बिस्तर नहीं ऊपर से स्ट्रेचर भी स्वास्थ्य केंद्रों से नदारद रहे. दर्द से कराहती महिलाओं को परिजन खुद स्ट्रेचर बनकर ढोते देखे जा सकते है.


जिम्मेदार का बेतुका बयान
इन बदइंतजामी की तस्वीरों पर मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी मनीष मिश्रा ने खुद स्वीकारा कि स्वास्थ्य केंद्र 6 बिस्तरों वाला है. ऐसे में 40 मरीजो को कहां से बिस्तर नसीब होगा. इस बयान के बाद ये सवाल भी खड़ा होता है कि क्या टारगेट के चक्कर मे मानवीय संवेदनाओं को भी दर किनार कर दिया जाता है. अगर स्वास्थ्य केंद्र में बिस्तर उपलब्ध नही है तो, फिर इन्हें जबलपुर के जिला चिकित्सालय में रेफर क्यों नही किया गया.