भोपाल : मध्य प्रदेश में कांग्रेस सत्ता के बहुत नजदीक है. 230 सीटों में से कांग्रेस ने 114 पर जीत हासिल की है, जबकि सरकार बनाने के लिए यहां 116 सीटों की दरकार है. बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली हैं, जबकि अन्य के खाते में 5 सीटें आई हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी 109 सीटों पर सिमट कर रह गई. हालांकि यहां किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, लेकिन समीकरण कांग्रेस के पक्ष में बन रहे हैं. इसलिए कांग्रेस खेमें में सरकार बनाने की तैयारियां भी शुरू हो गई हैं, लेकिन चुनावी समर के बाद पार्टी को एक और समर से गुजरना पड़ा है, और वह है कि सत्ता की डोर किसे सौंपी जाए. वरिष्ठ नेता कमलनाथ को या फिर युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया?


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राजनीतिक गलियारे में दोनों के ही नाम तेजी से उछल रहे हैं. 15 साल बाद सत्ता के नजदीक पहुंची कांग्रेस के सामने मुख्यमंत्री का चेहरा चुनने की चुनौती आ रही है. खास बात ये है कि इन चुनावों में दोनों ही चेहरों की बदौलत कांग्रेस एक मजबूत पार्टी के तौर पर सामने आई है. दोनों ही अपने-अपने हुनर के माहिर हैं.


BJP के कमल को शिकस्त दी कमलनाथ ने
कमलनाथ की बात करें तो फिलहाल वे मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. छिंदवाड़ा उनका गढ़ रहा है और 9 बार से लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. राजनीति में उनकी छवि बेहद साफ-सुथरी रही है. केंद्र में कांग्रेस के शासनकाल में वह केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. वह इंदिरा गांधी के सबसे करीबी नेता भी रहे हैं. इंदिरा उन्हें तीसरा बेटा भी मानती थीं. विधानसभा चुनावों में बीजेपी के कमल को टक्कर देने में कमलनाथ का बड़ा हाथ रहा है. जानकार यह भी बताते हैं कि 71 वर्षीय कमलनाथ के पास मुख्यमंत्री बनने का यह आखिरी मौका है, जबकि सिंधिया युवा और उनके पास अभी बहुत से अवसर आएंगे. 


ग्वालियर की घुसपैठ
उधर, इन चुनावों में युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी एक बड़े नेता के रूप में उभरे हैं. सिंधिया युवा हैं और भीड़ जुटाने के आकर्षक चेहरा हैं. मध्य प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर घराने की अहम भूमिका है. सिंधिया समर्थकों ने कांग्रेस कार्यालय को सिंधिया के बड़े-बड़े पोस्टरों से पाट भी दिया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस की युवा ब्रिगेड का हिस्सा हैं और राहुल गांधी के करीबी भी. 


चुनाव प्रचार के दौरान ही उन्हें सीएम फेस मानकर चला जा रहा था. गुना सीट से वह लोकसभा का प्रतिनिधित्व करते हैं. और मनमोहन सिंह सरकार में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं. 30 सितंबर, 2001 को विमान हादसे में उनके पिता माधवराव सिंधिया की मौत के बाद वह अपने पिता की विरासत को संभाल रहे हैं. वह लगातार 4 बार से गुना सीट से सांसद हैं. सिंधिया की छवि एक सौम्य नेता के रूप में है. केंद्रीय मंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी गाड़ी पर लाल बत्ती भी नहीं लगाई. अगर वह मुख्यमंत्री बनते हैं तो राजशाही खत्म होने के बाद पहली बार सिंधिया परिवार सूबे की सत्ता में होगा.