छतरपुर: बुंदेलखंड की शान, बुंदेली लोकगीतों के सम्राट देशराज पटेरिया का आज सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. वे 67 वर्ष के थे. उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार भैंसासुर मुक्तिधाम में हुआ. लोकगायकी के क्षेत्र में उनकी पहचान लोकगीत सम्राट के रूप थी. उनके आकस्मिक निधन से देश आज शोक में डूब गया है. देशराज पटेरिया ने अनेक बुंदेली लोकगीतों के जरिये मध्य प्रदेश के घर-घर में पहचान बनाई थी. प्रसिद्ध लोकगायक मध्य प्रदेश में ही नहीं विदेशों में अपनी गायकी का लोहा मनवा चुके थे.


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देशराज पटेरिया के निधन पर सीएम शिवराज ने शोक जताया है. उन्होंने कहा कि देशराज पटेरिया के रूप में आज संगीत जगत ने अपना एक सितारा खो दिया. उनके निधन पर प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने भी दुख व्यक्त किया है. उन्होंने कहा कि बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध लोकगीत गायक व भजन सम्राट श्री देशराज पटेरिया जी के आकस्मिक निधन का समाचार सुन अत्यन्त दुःख हुआ.


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जीवन के 45 वर्ष लोकगायन को समर्पित
बुंदेलखंड के लोकगीत सम्राट कहे जाने वाले पंडित देशराज पटेरिया का जन्म 25 जुलाई 1953 को छतरपुर जिले के तिंदनी गांव में हुआ था. पटेरिया 6 भाई-बहनों में सबसे छोटे थे. हायर सेकेंडरी पास करके प्रयाग संगीत समिति से संगीत में प्रभाकर की डिग्री हासिल की. इसी बीच पंडित पटेरिया की नौकरी स्वास्थ्य विभाग में लग गई थी. उनका मन लोकगीत गायन में ज्यादा रहता था. इसी कारण वह दिन में नौकरी करते थे और रात में बुंदेली लोकगीतों में भाग लेते थे. 


आकाशवाणी ने दी घर-घर पहचान
लोकगायक के रूप में पटेरिया को असली पहचान साल 1976 में छतरपुर आकाशवाणी से मिली. जब आकाशवाणी से उनके लोकगीत प्रसारित होने लगे, ऐसे उनकी पहचान धीरे-धीरे बढ़ने लगी. उन्होंने 10 हजार से भी अधिक लोकगीत गाए. उन्होंने बुंदेलखंड के आल्हा हरदौल ओरछा इतिहास के साथ-साथ रामायण से जुड़े हास्य, श्रृंगार संवाद से जुड़े संवाद और कई बुंदेली लोकगीत के एलबम भी गाए हैं. बुंदेलखंड में आज सबसे ज्यादा उनके नाम ही लोकगीत गाने का रिकॉर्ड है. बुंदेली लोकगायक पंडित पटेरिया गायक मुकेश को अपना आदर्श मानते थे. पटेरिया लोकगीत की गायन शैली में अमरदान को अपना गुरू मानते थे. जीवन के 45 वर्ष लोकगायन को समर्पित कर आज दुनिया को अलविदा कह गए हैं.


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