हेमंत संचेती/नारायणपुर: ( Chherchera Parv ) आज पूरे छत्तीसगढ़ में में छेरछरा लोकपर्व की धूम देखने को मिली. इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि इस दिन बच्चे घर-घर जाकर अन्न की मांग करते हैं. आज छत्तीसगढ़ में इस पर्व को लेकर नारायणपुर में खासा उत्साह देखने को मिला. खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बच्चों की टोलियां उत्साह के साथ छेरछेरा पर्व को मनाते हुए घर-घर पहुंचकर अन्न दान लेने पंहुचे. ऐसा कहा जाता है कि जो भी दान किया जाता है वह महादान (mahadan) होता है. इसका सुखद फल भी प्राप्त होता है. यह पर्व हिंदी महीने के पौष माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है.


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जानिए ऐतिहासिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि कौशल प्रदेश के राजा कल्याण साय मुगल सम्राट ने जहांगीर की सल्तनत में युद्ध कला के प्रशिक्षण के लिए गए थे. इस दौरान 8 साल तक महारानी ने राज-काज का काम संभाला. जब वे वापस लौटे तो महाराी ने सोने-चांदी के सिक्के बंटवाए. उसकी दिन से इस दान देने के परंपरा की शुरुआत हुई. जो अब छत्तीसगढ़ की संस्कृति का हिस्सा बन चुकी है. इस दिन बच्चे घर-घर जाकर 'अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन... छेरछेरा, माई कोठी के धान ले हेरते हेरा...' बोलकर दान मांगते हैं. इस दिन धान के दान का विशेष महत्व है. 


पर्व पर बनाए जाते हैं ये पकवान 
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन सभी घरों में नया चावल का चिला, चौसेला, फरा, दूधफरा, भजिया आदि छत्तीसगढ़ी और अन्य व्यंजन बनाया जाता है. इसके अलावा छेर-छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं. जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं. इस दिन अन्नपूर्णा देवी की पूजा की जाती है. मान्यता है कि जो भी लोग इस दिन बच्चों को अन्न का दान करते हैं. वे मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं. इस दौरान मुर्रा, लाई और तिल के लड्डू आदि का वितरण भी किया जाता है.


पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है पर्व
नारायणपुर के गली मोहल्ले के घरों के सामने गोल घेरा बनाकर छेरछेरा गीत गाते हुए नृत्य करते बच्चों का कहना है कि हमें घर वालों द्वारा जो भी दान मिलता है. उसे हम आपस में बांटते है. इसके अलावा बताया कि जो पैसे मिलते हैं, उससे सामान इकट्ठा कर भोजन बनाकर खाते है और प्रसाद के रूप में एक-दूसरे के घर बांटते भी हैं. साथ ही साथ आपको बता दें कि छेर-छेरा नृत्य के बाद मिले धान की कुटाई कर चावल बनाते है. इसके बाद दान मिली राशि से भोजन बनाने की सामाग्री खरीदी जाती है और सभी ग्रामीणों के साथ मिलकर सामूहिक भोजन का आयोजन किया जाता है. इससे गांव में सामूहिक एकता, परम्परा, मेल मिलाप और भाई चारे की भावना का विकास होता है. बता दें कि इस त्योहार को लेकर बच्चों में काफी उत्साह रहता है.


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