Chhattisgarh News: जहां एक तरफ छात्रों की क्लास को हाईटेक करने का सरकार प्रयास कर रही है वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के टेमरुगांव के नयापारा में दो आंगनबाड़ी का संचालन एक जर्जर मिट्टी की झोपड़ी में पिछले दो सालों से किया जा रहा है. ऐसे में बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा, इस पर सवाल खड़ा होता है, सबसे बड़ी दिक्कत बारिश के दिनों में होती है, यहां बारिश का पानी अंदर घुस जाता है और जर्जर झोपड़ी गिरने का डर बना रहता है, जानिए क्या है पूरा मामला. 


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क्या है मामला 
पूरा मामला नारायणपुर जिले के टेमरुगांव के नयापारा का है, मिली जानकारी के अनुसार पता चला है कि दो आंगनबाड़ी का संचालन एक जर्जर मिट्टी की झोपड़ी में पिछले दो सालों से किया जा रहा है, जहां पर छोटे - छोटे बच्चों को कुपोषण से बचाने के साथ ही उनके भविष्य गढ़ने का कार्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और सहायिका कर रहीं हैं. मिट्टी की झोपड़ी के छोटे से कमरे में आंगनबाड़ी का समान , बच्चो का भोजन और उन्हें खेल खेल में पढ़ाने का कार्य आंगनबाड़ी कार्यकर्ता कर रही हैं. सबसे बड़ी दिक्कत बारिश के दिनों में होती जहां बारिश का पानी अंदर घुस जाता है और जर्जर झोपड़ी गिरने का भय बना रहता है.


टेमरुगांव नयापारा में झोपडी में 2 आंगनबाड़ी केंद्र का संचालन एक छत के नीचे हो रहा है, इसमें नयापारा टेमरुगांव एवं पदनार आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चे जर्जर झोपड़ी में अपना भविष्य संवारने में लगे हैं, इस कमरे की झोपड़ी में 2 आंगनबाड़ी केंद्र के बच्चों की बैठक व्यवस्था के साथ ही कुपोषण मिटाने के लिए पौष्टिक आहार बनाने का कार्य भी किया जा रहा है.


झोपड़ी में आंगनबाड़ी केंद्र की राशन सामग्री के साथ ही बच्चों खेलने के खिलौने एक तरफ रखे हुए है, इस झोपड़ी में बच्चों के बैठने तक की व्यवस्था नहीं हो पाती है, इसके बावजूद अव्यवस्थाओं के बीच में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता परेशानियों का सामना करते हुए केंद्र का संचालन कर बच्चों को पोष्टिक आहार बनाकर खिलाने में लगी हुई हैं.


इस जर्जर झोपड़ी में बैठकर अध्यापन कार्य करने के दौरान बच्चों के साथ दुर्घटना होने का भी खतरा बना रहता है. कहा जा रहा है कि अधिकारी निरीक्षण के लिए आते है, फिर फोटो खींचकर चले जाते है, इस दौरान अधिकारियों को केंद्र संचालन के लिए होने वाली परेशानियों से अवगत करा देते हैं, लेकिन समस्या जस के तस बनी रहती है. ऐसे में अब देखने वाली बात होगी कि आखिर कब बच्चों को इससे निजात मिलती है. 


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