रजनी ठाकुर/रायपुरः छत्तीसगढ़ में आरक्षण की सीमा बढ़ाकर 76 प्रतिशत किए जाने पर राजभवन और सरकार में ठन गई है. दरअसल सरकार के विधेयक पर राज्यपाल ने अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जिससे विधेयक को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है. अब खबर आई है कि राज्यपाल अनुसुईया उइके ने सरकार से 10 बिंदुओं पर जवाब मांगा है. जिन बिंदुओं पर जवाब मांगा गया है, उनमें पूछा गया है कि-


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

 1. आरक्षण विधेयक पारित होने के पहले क्या एससी-एसटी को लेकर क्वांटिफायबल डाटा तैयार किया गया था?


2. आरक्षण का प्रतिशत 50 फीसदी से ज्यादा किए जाने के लिए विशेष और बाध्यकारी परिस्थितियों का विवरण दिया जाए.


3.  58 फीसदी आरक्षण रद्द किए जाने के हाईकोर्ट के फैसले के ढाई महीने बाद क्या आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाए जाने को लेकर कोई विशेष डाटा जुटाया गया है?


4. राज्य सेवाओं में एससी एसटी वर्ग का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है. राज्य सेवाओं में एससी एसटी वर्ग के लोग चयनित नहीं हो पाते. ऐसे में एससी एसटी वर्ग के लोग किस तरह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए हैं, इसका डाटा पेश किया जाए. 


5. एससी और एसटी वर्ग के पिछड़ेपन के अध्ययन के लिए क्या सरकार ने कोई कमेटी बनाई है?


6. मंत्री परिषद के सामने आरक्षण संशोधन विधेयक पेश करते समय जिस क्वांटिफायबल डाटा आयोग के गठन की बात कही गई थी, उस आयोग की रिपोर्ट राजभवन भेजी जाए. 
7. आरक्षण संशोधन विधेयक पर विधि विभाग की रिपोर्ट पेश की जाए. 


8. विधेयक में आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग का उल्लेख नहीं है. ऐसे में इस कानूनी सवाल का जवाब दिया जाए कि क्या शासन को ईडब्लूएस के लिए संविधान के अनुच्छेद 16(6) के तहत अलग से अधिनियम लाना चाहिए था?


9. विधेयक के लागू होने के बाद एसटी के लिए 32 फीसदी, एससी के लिए 13 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू करने से आरक्षण की कुल सीमा 72 फीसदी हो जाएगी. क्या इस आरक्षण को लागू करने के लिए प्रशासन की तैयारियों का ध्यान रखा गया है. क्या इस संबंध में कोई सर्वेक्षण किया गया था यदि हां तो उसकी रिपोर्ट राज्यपाल के भेजी जाए. 


10. सामान्य प्रशासन विभाग द्वारा मंत्री परिषद के सामने पेश की गई रिपोर्ट में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक राज्यों में आरक्षण के प्रतिशत का उल्लेख किया गया है. इन सभी राज्यों में आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा करने से पहले आयोग का गठन किया गया था. ऐसे में छत्तीसगढ़ में क्या ऐसी किसी कमेटी का गठन किया गया है? अगर हां तो रिपोर्ट पेश की जाए. 


जानिए क्या है पूरा विवाद
छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने हाल ही में एक बिल विधानसभा पेश किया, जिसमें आरक्षण में संशोधन किया गया था. संशोधन के तहत राज्य में अनुसूचित जनजाति के आरक्षण को बढ़ाकर 32 फीसदी, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी, ओबीसी के लिए 27 फीसदी और ईडब्लूएस के लिए 4 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की गई थी. 


विधानसभा से पास होने के बाद यह बिल मंजूरी के लिए राज्यपाल अनुसूईया उइके के पास भेजा गया लेकिन राज्यपाल ने अभी तक इस बिल पर साइन नहीं किए हैं. राज्यपाल का कहना है कि जब हाईकोर्ट ने हाल ही में 2012 के विधेयक में 58 फीसदी आरक्षण को अवैधानिक करार दिया था तो अब सरकार 76 फीसदी आरक्षण का बचाव कैसे करेगी? कल कोई कोर्ट चला गया तो क्या होगा?


बता दें कि साल 2012 में तत्कालीन रमन सिंह सरकार ने राज्य में आदिवासियों की ज्यादा आबादी को देखते हुए एससी वर्ग के आरक्षण को 16 फीसदी से घटाकर 12 फीसदी कर दिया था. वहीं एसटी वर्ग के आरक्षण को 20 फीसदी से बढ़ाकर 32 फीसदी और ओबीसी  को पहले की तरह 14 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था. हालांकि सरकार के इस फैसले का विरोध हुआ और इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई. एक दशक तक चले केस में हाईकोर्ट ने 19 सितंबर 2022 को रमन सरकार के फैसले को असंवैधानिक करार दिया. अब भूपेश बघेल सरकार ने एक बार फिर आरक्षण में संशोधन करने का फैसला किया है. जिस पर राज्यपाल और सरकार में ठनी हुई है.