संजोए जाएंगे 14वीं सदी के मंदिर के अवशेष, बरतुंगा शिव मंदिर में बनेगा संग्रहालय
CG NEWS: चिरमिरी में 14वीं शताब्दी के सती मंदिर का पुरातत्व विभाग की देखरेख में विस्थापन का काम शुरू हो गया है. हाई कोर्ट के निर्देश पर विस्थापन का कार्य चल रहा है. मंदिर की प्राचीन मूर्तियों और कलाकृतियों को बरतुंगा शिव मंदिर परिसर में अस्थाई संग्रहालय में सहेजकर रखा जाएगा.
Chhattisgarh News/सरवर अली: चिरमिरी में 14वीं शताब्दी के सती मंदिर के अवशेषों को सहेजने की प्रक्रिया शुरू हो गई है. अब इन अवशेषों को बरतुंगा शिव मंदिर परिसर में अस्थाई संग्रहालय में रखा जाएगा. हाई कोर्ट के निर्देश के बाद जिला प्रशासन और पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में विस्थापन का काम किया जा रहा है. मंदिर विस्थापन से पहले प्रशासन ने विधि विधान से पूजा की. इस दौरान मंदिर समिति के लोगों ने मंदिर विस्थापन का विरोध किया, लेकिन बड़ी संख्या में पुलिस बल भी मौजूद रहा.
तहसीलदार शशि शेखर मिश्रा ने बताया कि हाईकोर्ट के निर्देश हैं कि सती मंदिर और कलाकृतियां के जो अवशेष बचे हैं उन्हें धार्मिक रीति रिवाज से जन भावनाओं का ध्यान में रखते हुए स्थापित किया जाए. जिला प्रशासन के निर्देश पर लगभग 4 महीने तक स्थानीय लोगों से चर्चा की है. ज्यादा से ज्यादा लोग हमारे इस कदम से सहमत हैं. जिला प्रशासन के पांच अधिकारी और रायपुर से आए पुरातत्व विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में विस्थापन का काम किया जा रहा है.
500-600 साल पुराने हैं मंदिर के अवशेष
मिश्रा ने बताया कि सती मंदिर लगभग 500 से 600 वर्षों पुराना है. सती मंदिर के कलाकृतियां और अवशेषों को लेकर माननीय उच्च न्यायालय का यह कहना था कि जहां वर्तमान में सती मंदिर स्थित है. नीचे धसान क्षेत्र है. आग और पानी है जिससे जनहानि को खतरा है. यह मंदिर संरक्षित नहीं रह पाएगा. इसके बाद बरतुंगा शिव मंदिर परिसर में अस्थाई संग्रहालय में मंदिर के अवशेषों को रखा जा रहा है. सती मंदिर के लिए इसी तरह का स्ट्रक्चर भी बनाया गया. मंदिर के जो बिखरे पड़े हुए अवशेष हैं, उसके लिए पुरातत्व विभाग ने 33 लाख रुपए की लागत से फिर से सेट किया जाएगा. इसके लिए जगह भी चयन कर लिया गया है. दो-तीन महीने में कार्य पूर्ण कर लिया जाएगा.
क्या बोले मंदिल के व्यवस्तापक?
पुरातत्व विभाग के टीम के डिप्टी डायरेक्टर जे आर भगत ने कहा कि वर्तमान में अभी मंदिर किस देवता का है या कहा पाना मुश्किल है. जब हम एक-एक करके नंबरिंग करके डिस्मेंटल करना चालू करेंगे तब पता चल पाएगा कि यह शिव मंदिर था या अन्य देवी देवताओं का मंदिर था. दूसरी ओर मंदिर के व्यवस्थापक हरभजन सिंह ने कहा कि उन्हें आपत्ति नहीं है. हाई कोर्ट के परिपालन में जो स्थल है, उसे उठा लिया जाए, लेकिन देवगढ़ी के अवशेषों के साथ छेड़छाड़ ना करें. यह हमारी संस्कृति और आस्था के साथ बहुत बड़ा खिलवाड़ हो रहा है.
क्या है इतिहास?
1. अर्जुन देव का चिरमिरी में प्राप्त 14वीं शताब्दी का शीलालेख मिला है. सन् 2015 में एक कोसल नामक बुक में भी इसका इतिहास उल्लेख किया गया है.
2. चिरमिरी के बरतुगा में सती मंदिर में हजारों साल पुरानी मूर्तियां आज भी यहां देवालय के रूप में पूजा की जा रही हैं. यहां आज भी जमीन की मिट्टी को हटाते हैं तो प्राचीन अवशेष निकलते हैं. आज भी लोग इन मूर्तियों को देखने के लिए आते हैं.
3. कोयला उद्योग लगने के बाद जब लोगों ने यहां मंदिर को देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ. यहां टूटा फूटा पुराना मंदिर है, जिसमें कुछ पुरानी मूर्तियां व पत्थर व मिट्टी के बर्तन रखे हुए हैं. लोगों की आस्था इससे जुड़ गई और इससे सती मंदिर का नाम दे दिया.
4. लगभग 5 साल पहले आर्कोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया की टीम दिल्ली से यहां आई थी. उस समय कुछ अवशेषों को वह अपने साथ भी ले गई थी. सर्वे में बताया गया था कि यह 14 वीं शताब्दी के प्राचीन अवशेष हैं. मगर टीम दोबारा लौट कर नहीं आई.
5. रायपुर से आई पुरातत्व विभाग की टीम ने 2015 के शोध में पाठ स्पष्ट किया है कि स्थल पर सर्वेक्षण में लगभग 30 सती प्रस्ताव योद्धा स्तंभ प्राप्त हुए हैं जो लेख विहीन है. संख्या के आधार उन्होंने यह अनुमान लगाया है कि यहां विशाल युद्ध रक्तपात अथवा जातीय संघर्ष हुआ होगा.