Bastar Dussehra: विश्व प्रसिद्ध दशहरे में हुआ मावली देवी का परघाव, देखने के लिए आस्था का उमड़ा जनसैलाब
World Famous Bastar Dussehra: विश्व प्रसिद्धि बस्तर दशहरे में बीती रात मावली देवी के परघाव की रस्म संपन्न हुई. इस दौरान बस्तरवासी समेत आस-पास के इलाकों के लोग बड़ी संख्य में उपस्थित रहें.
अविनास प्रसाद/बस्तरः सबसे लंबे समय तक चलने वाले विश्व प्रसिद्ध बस्तर का दशहरा (World Famous Bastar Dussehra) अपनी रस्मों को लेकर पूरे विश्व में सबसे अनूठा और अलग दशहरा है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं. बस्तर दशहरे में 12 अनूठी रस्में होती है. इन रस्मों में एक महत्वपुर्ण रस्म मावली परघाव देर रात संपन्न हुई. इस विधान के अन्तर्ग दंतेवाड़ा शक्तिपीठ से जगदलपुर लायी गयी माता मावली की डोली और मां दंतेश्वरी के छत्र के स्वागत की रस्म अदा की गई.
राजपरिवार ने किया स्वागत
विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व की एक और महत्वपूर्ण मावली परघाव रस्म देर रात अदा की गई.इस विधान के अन्तर्ग दंतेवाड़ा शक्तिपीठ से जगदलपुर लायी गयी माता मावली की डोली और मां दंतेश्वरी के छत्र के स्वागत की रस्म अदा की गई.
रस्म के अनुसार माता मावली की डोली और मां दंतेश्वरी के छत्र स्वागत बस्तर के राजपरिवार सदस्य और बस्तरवासी करते है. इस रस्म को देखने हर साल बड़ी संख्या में लोगों का जनसैलाब उमड़ता है, दंतेवाड़ा से पहुंची डोली और छत्र का बस्तर राजपरिवार के सदस्यों ने भव्य स्वागत किया गया.
चालुक्य वंश के राजा ने किया था स्थापित
रियासतकाल में बस्तर के महाराजा रुद्र प्रताप देव डोली का भव्य स्वागत किया करते थे, यह परंपरा आज भी बस्तर में निभाई जाती है. मूलतः देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिन्दक नागवंशी राजा द्वारा उनके बस्तर के शासनकाल में लाई गई थी. छिंदक नागवंशी राजाओं ने 9वीं और 14वीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य वंश के राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया. तब उन्होंने देवी मावली को भी मुख्य देवी के रूप में मान्यता दी.
नवरात्रि के पांचवे दिन मां मावली को दिया जाता है न्यौता
मावली देवी का बस्तर दशहरा पर्व में यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. प्रतिवर्ष नवरात्रि के नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने बस्तर राजपरिवार के सदस्य, राजगुरु और पुजारी के अलावा स्थानीय जनप्रतिनिधि राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं. उनकी अगवानी और पूजा-अर्चना के बाद देवी की डोली को बस्तर राजपरिवार के सदस्य कंधों पर उठाकर राजमहल स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाकर रखते हैं. साथ ही दशहरे के समापन पर इसकी ससम्मान विदाई होती है. बस्तर राजकुमार कमलचंद भंजदेव ने बताया कि विश्व प्रसिद्ध दशहरा पर्व में मावली को शामिल होने के लिए नवरात्रि के पंचमी के दिन बकायदा बस्तर के राजा न्योता देने दंतेवाड़ा जाते हैं.
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