महिलाओं ने किया कमाल, महुआ-सब्जियों से बना डाला हर्बल गुलाल, जानिए क्यों है खास
महिलाओं ने पहले महुआ से सेनेटाइजर बनाया, लड्डू बनाया, दीवाली पर गोबर के दिए बनाए.
जशपुर/नीलम पड़वार/हितेश शर्माः होली का त्योहार रंगों का त्योहार है लेकिन बीते सालों में होली के रंगों में केमिकल के इस्तेमाल ने रंगों की चमक फीकी कर दी है. ये केमिकल वाले रंग लोगों के लिए नुकसानदायक साबित हो रहे हैं और लोगों में बीमारियों का कारण बन रहे हैं. ऐसे में देश में हर्बल रंगों की मांग बढ़ी है. इस मांग को देखते हुए जशपुर जिले की महिलाओं के संगठन आगे आए हैं और उन्होंने होली को हर्बल बनाने का जिम्मा उठाया है.
महुआ से बनेंगे हर्बल रंग
जशपुर जिले की महिलाओं ने पहले महुआ से सेनेटाइजर बनाया, लड्डू बनाया, दीवाली पर गोबर के दिए बनाए. अब यहां के स्वयंसहायता समूह की महिलाएं हर्बल गुलाल बना रही हैं. बता दें कि जिला कलेक्टर महादेव कावरे के नेतृत्व में बटाईकेला गांव की महिलाओं ने चांद स्वयं सहायता समूह बनाकर हर्बल गुलाल का निर्माण किया है. इस स्वयंसहायता समूह द्वारा तैयार किया गया हर्बल गुलाल पूरी तरह से सुरक्षित है.
इसी तरह कोरबा जिले के कटघोरा विकासखंड के अंतर्गत अमरपुर और ढेलवाडीह गोठान में संचालित होने वाले स्वयंसहायता समहू द्वारा स्टार्च के बेस से प्राकृतिक गुलाल तैयार किया गया है. इसके रंग प्राकृतिक चीजों जैसे सब्जियों, फूलों की पंखुड़ियों, गुलाब जल, चंदन, खस के इत्र से तैयार किए गए हैं. इसमें किसी तरह का रसायनिक सामाग्री का उपयोग नहीं किया गया है.
गुलाल तैयार करने वाली महिलाओं ने बताया कि हरे रंग के लिए पालक या धनिया, पीले के लिए हल्दी, गुलाबी के लालभाजी, लाल के लिए चुकंदर को महीन पीस कर उसका रंग निकाला जाता है. रंग के साथ, तुलसी, चंदन, गुलाब आदि के अर्क को अरारोट या स्टार्च में डाल कर उसे सूखाया जाता है. सूखने के बाद उसे पीस कर महीन कर दिया जाता हैं. पिसाई के बाद तैयार गुलाल को बाजार में बिक्री के लिए पैक किया जाता हैं.
होली के सीजन में इन स्वयंसहायता समूह में काम करने वाली महिलाओं को 9-10 हजार रुपए की कमाई हो जाती है.
इसी तरह दुर्ग जिले के मतवारी गांव में भी गायत्री स्वयं सहायता महिला समूह भी हर्बल गुलाल तैयार कर रहा है. हर्बल गुलाल बनाने के लिए सबसे पहले अरारोट या मक्का के पाउडर में चुकंदर,पालक भाजी,पलाश, हल्दी इत्यादि का इतेमाल किया जाता है. जिसके बाद रंग-बिरंगे हर्बल गुलाल बनाया जाता है. इसमें किसी प्रकार का केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता. गायत्री स्व-सहायता समूह की सदस्य ने बताया कि हर्बल गुलाल बनाने का परीक्षण लिया गया है.
जिला पंचायत के सीईओ के मार्गदर्शन में हर्बल गुलाल तैयार कर रहे हैं यह हर्बल गुलाल लोगों के स्किन के लिए फायदेमंद है और बाजारों में मिलने वाले गुलाल से काफी अच्छा है. उन्होंने बताया कि इस साल हर्बल गुलाल की डिमांड बहुत अधिक है लेकिन समय के अभाव के कारण टारगेट पूरा नहीं कर पा रहे हैं.
गरियाबन्द जिले के मैनपुर ब्लॉक की महिलाएं भी होली में उपयोग करने के लिए हर्बल गुलाल तैयार कर रही हैं. जिला पंचायत अध्यक्ष स्मृति ठाकुर ने महिलाओ के काम की प्रशंसा करते हुए कहा कि फल फुल सब्जी भाजी से महिलाएं हर्बल गुलाल बना कर बहुत ही सराहनीय कार्य कर रही है जिसका आने वाले दिनों में अच्छा परिणाम सामने आएंगे.
समूह की महिलाएं पालक ,लालभाजी, हल्दी ,टमाटर काट कर हर्बल गुलाल बना रही है।रंगों के लिए केमिकल के बजाए प्रकतिक सब्जियों के कलर का इस्तेमाल कलर के लिए किया जा रहा है. समूह से जुड़ी 11 महिलाएं पिछले एक सप्ताह से रोजाना 5 घण्टे इसी काम मे लगी हुई है.