शैलेंद्र भदौरिया/इंदौर: शादी के 40 दिन बाद शहीद हुए लेफ्निेंट की पत्नी करुणा सिंह अब थल सेना में कर्नल बनने जा रही हैं. इसके लिए उनकी ट्रेनिंग भी शुरू हो गई है. वह 7 जनवरी 2021 को 11 महीने के सैन्य ट्रेनिंग के लिए चेन्नई ओटीए में शामिल होंगी. करुणा रतलाम की रहने वाली हैं. M.Teck की डिग्री पूरी करने के बाद वह आगरा कॉलेज में प्रोफेसर की नौकरी कर रही थी. उनके पति लेफ्टिनेंट धर्मेंद्र सिंह युद्धपोत विक्रमादित्य में हुए हादसे में शहीद हो गए थे. 


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बेटे के बाद बहू के सेना में जाने से खुश है परिवार
शहीद धर्मेंद्र सिंह की मां टीना कुंवर चौहान रतलाम में ही रहती हैं, बहू करुणा के भारतीय सेना में ऑफिसर बनने की खबर मिलने के बाद टीना कुंवर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उनका कहना है कि बेटे के बाद अब बहू देश की सेवा करने जा रही है उन्हें गर्व और खुशी है कि अब उनके दो बेटे भारतीय सेना के अधिकारी हैं.


एक समय लगा सबकुछ बिखर गया
करुणा ने बताया कि शादी के 40 दिन बाद पति के शहीद होने की खबर ने पूरी तरह झकझोर दिया था. एक समय ऐसा लगा कि सबकुछ खत्म हो गया है. जिस वक्त यह घटना हुई, उस समय मैं अपने ससुराल रतलाम में थी. लेकिन सास टीना कुंवर चौहान और मां कृष्णा सिंह के शब्दों ने मेरी भावना को फिर से जगा दिया और मैं तैयारियों में जुट गई.


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कैप्टन इरफान खान ने सेना में आने के लिए प्रेरित किया
करुणा ने कहा कि ग्रुप कैप्टन इरफान खान ने मुझे सेना में शामिल होने के लिए सबसे पहले प्रेरित किया. वह रतलाम में जिला सैनिक कल्याण संगठन के प्रमुख हैं. उनसे प्रेरित होकर इंदौर में करीबी पारिवारिक मित्र रिटायर्ड कर्नल निखिल दीवान के पास गई, जिनके मार्गदर्शन में एसएसबी इंटरव्यू के लिए तैयारी शुरू की. 


दूसरे प्रयास में मिली सफलता
करुणा चौहान ने बताया कि सशस्त्र बलों में प्रावधान है कि वीर नारी (शहीदों की विधवा) को लिखित परीक्षा नहीं देनी होती. उन्हें सीधे इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है. मैंने दिसंबर 20219 में इंडियन आर्मी के लिए आवेदन किया था. लेकिन उस वक्त सफालत नहीं मिली. इसके बाद दोबारा प्रयास किया, जिसमें उनका चयन हो गया. 


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ऐसे शहीद हुए थे लेफ्टिनेंट धर्मेंद्र 
शादी के एक महीने पद लेफ्टिनेंट धर्मेंद्र ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली थी. उनकी तैनाती साउथ इंडिया में थी. उनका पोत कर्नाटक के कारवाड़ बंदरगाह पर पहुंच रहा था. तभी अचानक उसमें आग लग गई. पोत को कोई नुकसान न हो, इसलिए धर्मेंद्र प्रधान ने अपनी जिंदगी खुद दाव पर लगा दी और आग बुझाने के दौरान वह शहीद हो गए.


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