ग्वालियर: जिन अतिथि शिक्षकों के मुद्दे पर कमलनाथ सरकार की विदाई हो गई थी वो अतिथि शिक्षक एक बार फिर सूबे की सियासत के केंद्र में आ गए हैं. ग्वालियर में बीजेपी से जुड़े छात्र संगठन ABVP (Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad) ने अपने प्रांतीय सम्मेलन में बाकायदा प्रस्ताव पारित कर सरकार से मांग की है कि अतिथि शिक्षकों में प्रशिक्षण की कमी रहती है, इसलिए इनकी जगह नियमित भर्ती निकालकर शिक्षक प्रोफेसरों की नियुक्ति की जाए. एबीवीपी के इस प्रस्ताव का कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई (National Students Union of India) ने विरोध किया है.


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NSUI कार्यकर्ताओं का कहना है कि जो ज्योतिरादित्य सिंधिया अतिथि शिक्षकों को लेकर सड़क पर उतरने का दावा करते थे, अब वे बीजेपी में शामिल होते ही वहां की नीति-रीति में ढल गए हैं. अन्हें अब अतिथि शिक्षकों की चिंता नहीं है. एनएसयूआई कार्यकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि यदि अतिथि शिक्षकों को हटाया गया तो सड़कों पर उतरकर उग्र आंदोलन किया जाएगा.


अतिथि शिक्षकों ने क्या कहा
वहीं अपनी नियमितीकरण की मांग को लेकर अब तक खाली हाथ बैठे अतिथि शिक्षक अब निराश हो चुके हैं. उनका कहना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने हमारा राजनीतिक इस्तेमाल किया है, लेकिन हमारी समस्या का समाधान किसी ने नहीं किया. अपने प्रशिक्षण को लेकर अतिथि शिक्षकों का कहना है कि हम NEET और पीएचडी करने वाले लोग हैं और सालों से शिक्षण कार्य मे हैं. इसलिए जो लोग हमारे अनुभव पर सवाल उठा रहे हैं वो पहले जानकारी सही कर लें.


सिंधिया ने कहा था-सड़क पर उतर जाऊंगा


बता दें कि साल 2020 की शुरूआत से ही अतिथि शिक्षकों ने तत्कालीन कमलनाथ सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला था. लगातार प्रदर्शन के बाद उस वक्त कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया अतिथि विद्वानों के समर्थन में खड़े हुए थे और अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज बुलंद कर दी थी. सिंधिया ने अतिथि शिक्षकों से कहा था कि अगर आपकी नियमितिकरण की मांग पूरी नहीं होती तो मैं आपके साथ सड़क पर उतर जाऊंगा. इसके बाद हुआ भी ऐसा ही.


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अधर में लटका नियमितिकरण का मामला
अतिथि शिक्षकों की मांग पूरी नहीं होने के बाद सिंधिया ने अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वॉइन कर ली. इसके बाद अल्पमत में आई कमलनाथ सरकार गिर गई और राज्य में बीजेपी की सरकार बनी. अब सिंधिया भले ही बीजेपी में शामिल हो गए हों, लेकिन अतिथि शिक्षकों के नियमितिकरण का मामला अधर में लटका है और एक बार फिर अतिथि विद्वान सियासत के केंद्र में हैं.


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