निकाय चुनाव में आरक्षण पर रोक के बाद सुप्रीम कोर्ट जाएगी सरकार, बताई ये वजह
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर विचार कर रही है. सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी है.
सागरः प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव से पहले हाईकोर्ट ने सरकार को झटका देते हुए महापौर और अध्यक्ष पद के आरक्षण पर रोक लगा दी है. अब हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पर विचार कर रही है. सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने यह जानकारी दी है.
क्या बोले मंत्री
मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि सरकार हाईकोर्ट की ग्वालियर पीठ के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी. इसके लिए सरकार सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी (विशेष अनुमति याचिका) दायर करेगी. बता दें कि शनिवार को हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने निकाय चुनाव के लिए जारी नोटिफिकेशन में आरक्षण में रोटेशन प्रणाली नहीं अपनाने के कारण महापौर और अध्यक्ष पद के आरक्षण पर रोक लगा दी थी.
आरक्षण के खिलाफ दायर की गई थी जनहित याचिका
बीते दिनों अधिवक्ता मनवर्धन सिंह तोमर ने हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की थी. इस याचिका में कहा गया था कि 10 दिसंबर में निकाय चुनाव के लिए जारी किए गए नोटिफिकेशन में आरक्षण में रोटेशन प्रणाली लागू नहीं की गई है. उदाहरण के लिए मुरैना व उज्जैन नगर निगम के महापौर का पद 2014 में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित था लेकिन 2020 में भी इन सीटों को अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दिया गया है. नगर पालिका और नगर पंचायतों में ऐसा ही किया गया है.
याचिकाकर्ता के अनुसार, रोटेशन प्रणाली के लागू ना होने के चलते अन्य वर्ग के लोग चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं, जो कि संवैधानिक अधिकारों का हनन है. इस पर हाईकोर्ट ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था. सरकार का जवाब मिलने के बाद हाईकोर्ट ने शनिवार को दिए अपने फैसले में मेयर और अध्यक्ष पद के आरक्षण पर रोक लगा दी.