मध्य प्रदेश में 15 अगस्त से पहले ही मना लिया गया स्वतंत्रता दिवस, रोचक है इस जगह की परंपरा
आजादी का अमृत महोत्सव के तहत देशभर में आजादी की 75वीं वर्षगांठ यानी स्वतंत्रता दिवस ( 15 अगस्त ) को जोरशोर से मनाने की तैयारी है, लेकिन मध्य प्रदेश के मंदसौर के पशुपतिनाथ मंदिर में स्वतंत्रता दिवस 19 दिन पहले ही मना लिया गया.
मनीष पुरोहित/मंदसौर: आजादी की 75वीं वर्षगांठ यानी स्वतंत्रता दिवस ( 15 अगस्त ) को आजादी के अमृत महोत्सव के तहत देशभर में जोरशोर से मनाने की तैयारी है. साल 1947 में 15 अगस्त को ही देश अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ और इसी दिन से हर साल पूरे देश 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है, लेकिन मध्य प्रदेश में एक जगह ऐसी भी है, जहां इस दिन स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाया जाता. बल्की कुछ दिनों पहले ही मना लिया जाता है. ये जगह है मंदसौर की पशुपतिनाथ मंदिर, जहां तारीख नहीं बल्कि तिथि के हिसाब से स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है.
19 दिन पहले ही मनाया गया स्वतंत्रता दिवस
पशुपतिनाथ मंदिर में दुर्वा अभिषेक कर परंपरा अनुसार 19 दिन पहले ही स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. मंदिर के पंडित कैलाश भट्ट का कहना है कि भारत सावन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी पर आजाद हुआ था. तिथि के अनुसार इस साल भारत का स्वतंत्रता दिवस आज, यानी 27 जुलाई 2022 को पड़ रहा है. इसीलिए पुरानी मान्यता के अनुसार भगवान पशुपतिनाथ का दुर्वा अभिषेक करके तिथि के अनुसार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया.
उत्सव की तरह होता है माहौल
भक्तों के अनुसार पिछले 37 सालों से इस दिन मंदिर में खुशी का माहौल होता है. बड़े पर्व की तरह यहां स्वतंत्रता दिवस को मनाया जाता है. पिछले साल कोविड-19 को देखते हुए केवल पांच पुरोहितों की मौजूदगी में ही स्वतंत्रता दिवस मनाया गया था. हालांकि इस साल पहले की तुलना में ज्यादा भक्त जुड़े और बाबा भोलेनाथ के साथ स्वतंत्रता दिवस मनाया. पिछले साल ये तिथी 15 अगस्त से 8 दिन पहले यानी 7 अगस्त को पड़ी थी.
दो साल से सीमित स्वरूप में हो रहा था कार्यक्रम
मंदिर समिति से जुड़े लोगों ने बताया कि पिछले दो साल से कोविड-19 के प्रकोप के कारण पशुपतिनाथ मंदिर में स्वतंत्रता दिवस सीमित स्वरूप में मनाया जा रहा था, लेकिन इस बार इसके आयोजन में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. मंदिर प्रबंधन के अनुसार, मंदसौर के इस प्राचीन मंदिर में श्रावण कृष्ण चतुर्दशी को स्वतंत्रता दिवस मनाने की परंपरा वर्ष 1985 से जारी है.