मध्य प्रदेश में मोहन सरकार ने एक और बड़ा फैसला लिया है. जिसे ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने के तौर पर देखा जा रहा है. इस फैसले के बाद अब मोहन कैबिनेट के मंत्रियों को पास ज्यादा ताकत होगी. जिसका असर कैबिनेट की बैठक में होने वाले फैसलों में भी नजर आएगा. दरअसल, मध्य प्रदेश की सरकार ने फैसला लिया है कि अब विभागीय मंत्री की अनुमति के बिना कोई भी फैसला कैबिनेट में नहीं आएगा, यानि जब तक मंत्री को किसी प्रस्ताव की जानकारी नहीं होगी या उनकी अनुमति नहीं मिलेगी तो विभाग के अधिकारी उस फैसले को कैबिनेट बैठक में नहीं रख सकेंगे. सरकार का यह फैसला मंत्रियों के लिहाज से अहम माना जा रहा है. 


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मोहन कैबिनेट में हुए थे फैसले 


दरअसल, हाल ही में हुई मोहन कैबिनेट की बैठक में दो ऐसे मामले आए थे, जिसमें मंत्रियों की बिना अनुमति के ही प्रस्ताव कैबिनेट बैठक में लाया गया था. क्योंकि बिना मंत्री की जानकारी के प्रस्ताव लाने की वजह से मंत्रियों की नाराजगी देखी जा रही थी. ऐसे में सरकार ने तुरंत यह फैसला लिया है. इसके अलावा अगर मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित होने वाली पांच अपर मुख्य सचिवों की सीनियर सेक्रेटरी वाली कमेटी अपने एजेंडे में कोई भी बदलाव करती है तो उस बात की जानकारी विभाग के मंत्री को देनी होगी और उन्हें उसके बारे में बताना भी होगा. यह फैसला मोहन सरकार ने लागू कर दिया है. 


बताया जा रहा है कि अधिकारी किसी भी प्रस्ताव को लेकर फिलहाल लापरवाही बरत रहे थे, वह मोखिक जानकारी विभाग के मंत्री को दे देते थे. लेकिन लिखित जानकारी नहीं देते थे. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक हाल ही में मोहन कैबिनेट ने नगर पालिका अधिनियम में बड़ा बदलाव किया था. इस फैसले में सीनियर सेक्रेटरी की कमेटी ने कुछ बदलाव किया, लेकिन इस बात की सतही जानकारी विभाग के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तक पहुंचाई गई. ऐसे में जब इस बात की जानकारी सामने आई तो फिर यह फैसला हुआ. 


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अब इस तरह से आएंगे प्रस्ताव 


दरअसल, पहले भी यही नियम था लेकिन अब इसे और सख्त कर दिया गया है. जिसके तहत विभाग के प्रस्ताव को मंत्री अनुमोदित करेंगे और फिर प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा जाएगा, इसके अलावा जीएडी, कानून और एजेंडे से जुड़े दूसरे विभागों को भी इसकी जानकारी दी जाएगी. जब वहां से राय मिल जाएगी तो फिर सीनियर सेक्रेटरी की कमेटी इसका परीक्षण करेगी. परीक्षण होने के बाद फैसला कैबिनेट की बैठक में रखा जाएगा. लेकिन इस दौरान पूरी प्रोसेस की जानकारी संबंधित विभाग के मंत्री के पास रहेगी. 


मध्य प्रदेश सरकार का यह फैसला ब्यूरोक्रेसी पर लगाम लगाने के तौर पर भी देखा जा रहा है. क्योंकि सरकार में कई सीनियर मंत्री भी हैं, ऐसे में अधिकारियों और सरकार के बीच तालमेल बना रहे. इसलिए इसी दिशा में काम किया जा रहा है. 


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