दमोह: अगर अदालत में फरियादी ही मुकर जाए तो फिर क्या होगा? आप बोलेंगे कि कोर्ट आरोपी को तुरंत बरी कर देगी. लेकिन दमोह का एक फैसला इस बार चर्चा में बना हुआ है. जिसमें वारदात के फरियादी ने कोर्ट में अपने साथ किसी भी वारदात के न होने की गवाही दी लेकिन फिर भी कोर्ट आरोपी को 7 साल की सजा सुना दी. 


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दरअसल  मामला दमोह के कसाई मंडी इलाके का है. जहां बीते साल 5 फरवरी 2019 को सोनू नाम के युवक को सीने में चाकुओं से हमला कर गंभीर घायल किया गया था. गंभीर स्थिति में घायल सोनू को जिला अस्पताल में दाखिल कराया गया और सोनू कई दिनों के इलाज के बाद जिंदगी की जंग जीत गया. दमोह कोतवाली पुलिस ने इस मामले में धारा 307 का प्रकरण दर्ज किया और मामले में शोएब कुरैशी नाम के शख्स को आरोपी बनाया.


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पुलिस के सबूत ने सजा दिलाई
पुलिस ने आरोपी की गिरफ्तारी कर उसे जेल भेजा और मामला दमोह जिला न्यायालय में चल रहा था. इस मामले में फरियादी सोनू अपनी रिपोर्ट से मुकर गया और उसने अपने साथ शोएब द्वारा किसी भी तरह की घटना से इनकार कर दिया. अमूमन ऐसी स्थिति में वारदात के आरोपी या आरोपियो को लाभ मिलता है और कोर्ट सजा नहीं देता लेकिन इस मामले में पुलिस ने जो साक्ष्य जुटाए और विवेचना की उसे कोर्ट ने मानते हुए सजा का ऐलान किया है. 


7 साल की सजा सुनाई
जिला न्यायालय की फर्स्ट एडीजे महिमा कच्छवाह की अदालत ने इस मामले में शोएब को दोषी मानते हुए सात साल की सजा सुनाई है. इस बारे में लोक अभियोजक सूरज ताम्रकार के मुताबिक ये अपनी तरह का अलग मामला है. जब घटना के पीड़ित ने कोर्ट में घटना से इनकार किया लेकिन साक्ष्य और पुलिस विवेचना सजा का आधार बनी है.