मध्य प्रदेश में भी सर आंखों पर रहता था ठाकरे परिवार, आज अपने गढ़ में भी खो रहा समर्थन
एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है. बता दें कि एकनाथ शिंदे ने उस परिवार से बगावत करके सीएम बने हैं जिसके सदस्य देवास के राजा बन सकते थे.
Eknath Shinde: महाराष्ट्र की सियासत में आज एक नया इतिहास लिखा गया क्योंकि एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली है. बता दें कि एकनाथ शिंदे ने उस परिवार के साथ बगावत की है. जिसका महाराष्ट्र में एक समय राज चलता था. चाहे सरकार में रहे या न रहे शिवसेना संस्थापक बाल ठाकरे जो कहते थे. वो पूरा महाराष्ट्र मानता था.
गौरतलब है कि कल उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद और विधान परिषद की सीट से इस्तीफा दे दिया था. इस इस्तीफे का ऐलान उन्होंने फेसबुक लाइव के जरिए किया था. इस्तीफे से पहले उन्होंने कई लोगों को धन्यवाद कहा था. फेसबुक लाइव पर ऐलान करने के बाद उद्धव ठाकरे राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने राजभवन गए थे. ऐलान के दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि मुझे इस्तीफा देने का कोई अफसोस नहीं है.
ठाकरे परिवार का मध्यप्रदेश से रहा है नाता
बाल ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी. कार्टूनिस्ट के तौर पर अपना करियर शुरू करने वाले बाल ठाकरे के परिवार का कनेक्शन मध्यप्रदेश से भी है. बता दें कि बालासाहेब ठाकरे के परिवार का संबंध मध्य प्रदेश के इंदौर, देवास और धार जिले से है.
इंदौरियों का ठाकरे परिवार ने किया था शानदार स्वागत
बताया जाता है कि एक बार इंदौर के कुछ लोग बालासाहेब और उनके पिता से मिलने मुंबई गए. तब उन्होंने इंदौर के लोगों का बहुत अच्छी तरह से स्वागत किया और उन्हें भोजन कराने के लिए दादर के एक शेट्टी होटल में ले गए थे.
देवास के राजा बनने वाले थे बालासाहेब के पिता
किस्सों में बताया गया है कि देवास का राज परिवार बाल ठाकरे के पिता को अपना दत्तक पुत्र बनाना चाहता था, लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो सका. हालांकि इसके बावजूद ठाकरे परिवार उस समय इंदौर और देवास के लोगों के संपर्क में हमेशा बना रहता था.
देवास में बालासाहेब के पिता ने की थी पढ़ाई
बालासाहेब के पिता सीताराम केशव ठाकरे उर्फ प्रबोधनकर ठाकरे थोड़े समय के लिए देवास में रहे थे. वो 1901 और 1902 में देवास में थे. बता दें कि उन्होंने दो साल तक देवास के विक्टोरिया हाई स्कूल में पढ़ाई भी की थी. खास बात ये है कि बालासाहेब के पिता ने स्कूल के प्रिंसिपल गंगाधर नारायण शास्त्री को धन्यवाद दिया था और कहा था कि उनकी वजह से ही उनकी पढ़ाई में रुचि जाग्रत हुई थी.