प्रहलाद सेन/ग्वालियर:  इंसान में अगर कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कितनी भी परेशानी क्यों ना आ जाए, वह कड़ी मेहनत के दम पर सफलता हासिल करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ कोशिश करता है. ऐसी ही एक कहानी है ग्वालियर की मंजेश बघेल की. जिसे 6 वर्ष की उम्र में मंजेश को गंभीर बीमारी ने घेर लिया और उसके दोनों हाथ और एक पैर ने काम करना बंद कर दिया. मंजेश चलने में लाचार हाथों से काम करने लगी और लाचार मंजेश ने हिम्मत नहीं हारी और स्कूल गई स्कूलिंग पूरी की बाद में कॉलेज गई, बीए पूरा किया और अब B.ed प्रथम वर्ष की पढ़ाई कर रही है. उसके साथ साथ ग्वालियर के डबरा में कोचिंग भी जा रही है ताकि शासकीय सेवा में जाने का उसका सपना पूरा हो सके. सबसे बड़ी बात यह है कि मंजेश मुंह में पेन दबाकर लिखती है और स्पीड भी ऐसी जैसे एक स्वस्थ बालक अपने हाथों से लिखता है.


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दरअसल डबरा में किराया के मकान में रहने वाली होनहार छात्रा मंजेश बघेल अपने हाथ पैरों से लाचार है. लेकिन उसके अंदर कुछ कर गुजरने का जज्बा है यही कारण है कि उसने अपने मुंह से पैन दबाकर लिखा और अपनी बीए की पढ़ाई पूरी कंप्लीट की कंप्लीट करने के बाद बीएड की तैयारी शुरू कर दी है. लेकिन पीड़ित छात्रा का दर्द जब झलका जब उसे किसी ने नौकरी नहीं दी.


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छात्रा ने बताया कि वह घर में सबसे बड़ी है. उसके परिवार की स्थिति ठीक नहीं है. पिता जी मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करते हैं लेकिन अब वह भी बीमारी के चलते लाचार हो गए हैं. यही कारण है कि अब मुझ पर घर की पूरी जिम्मेदारी का भार है. इसलिए मैंने नौकरी के लिए कई बार एप्लाई किया लेकिन हाथ पैर लाचार होने के कारण मुझे नौकरी नहीं मिली.


सीएम के बंगले से भगाया
जब में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से दतिया मिली तो उन्होंने मुझे नौकरी का आश्वासन देकर भोपाल बुलाया. जब मैं भोपाल उनके बंगले पर पहुंची तो उनकी सिक्योरिटी ने मुझे नहीं मिलने दिया और बंगले के बाहर से ही भगा दिया. उसके बाद मैं मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा से मिली तो उन्होंने भी मुझे ग्रेजुएशन पूरी होने के बाद नौकरी का आश्वासन दिया था, लेकिन अब तक मुझे कोई मदद नहीं मिली. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जहां हर बेटा बेटी को अपना भांजा और भांजी कहते हैं. मगर जब आपकी भांजी लाचार है तो उसकी मदद करने कोई आगे नहीं आया अब मैं अपनी पीड़ा किसे सुनाऊ मुझे तो लगता है कि गरीब का कोई नहीं होता पर इतना ज़रूर एक ना एक दिन मुझे सफलता ज़रूर मिलेगी और शासकीय सेवा में जाने का अपना सपना पूरा करूंगी.


स्कूल के शिक्षक ने दी थी मुंह से लिखने की प्रेरणा
छह 6 वर्ष की उम्र में आकर मंजेश के हाथ पैरों ने काम करना बंद किया तो वह अपनी हिम्मत खो चुकी थी. उस समय विसंगपुरा निवासी शिक्षक प्रेम नारायण छपरा शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल हुआ करते थे. जिनका एक हाथ नहीं था. उन्होंने मंजेश से कहा कि बेटा हिम्मत नहीं हारना है. यदि प्रकृति ने अन्याय किया है तो हमें उससे लड़ना है. तभी उन्होंने मंजेश को प्रेरणा दी आप हाथों से नहीं मुंह से लिखने की कोशिश करो धीरे-धीरे लिखने लगोगे. प्रेम नारायण सर की बातों को मंजेश ने अपनी ताकत बनाया और मुंह से लिखना प्रारंभ किया और यह सिलसिला 15 वर्षों से लगातार जारी है और वह आज भी कंपटीशन एग्जाम की तैयारी कर रही है. मंजेश मूलतः दतिया ज़िले की निवासी है और डबरा में रहकर प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में जुटी है.


कोचिंग में भी छात्र करते हैं मदद तो शिक्षक दे रहे हैं पूर्ण रूप से ध्यान
मंजेश डबरा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कराने वाले रामनिवास सर की कोचिंग “आकार” में प्रतिदिन पढ़ने के लिए जा रही है. जहां इस तैयारी में जुटी है कि उसका शासकीय सेवा में जरूर चयन होगा. कोचिंग की तो छात्राएं भी उसकी मदद करती हैं. मंजेश बारीकी से सब की सुनती है तो पेज पलटने के लिए उसकी सहेलियां भी उसकी मदद करती हैं. सबसे बड़ी बात तो एक हैं कि मंजेश प्रतिदिन एक मंजिल ऊंचाई चढ़ती और उतरती है. गरीबी के हालात में प्रतिदिन जैसे तैसे पैदल चल कोचिंग पहुंच रही है. शिक्षक रामनिवास का कहना है कि हमारा काम पढ़ाना है, पर जब कोई ऐसा छात्र आ जाए जो परेशानियों से जूझ रहा हो. जब यह बच्ची मेरे पास आई तो देख कर लगा कि आज के समय जब युवा साधन संपन्न होने के बाद भी पढ़ाई नहीं कर पा रहे. ऐसे में हाथों से लाचार चलने में भी परेशानियों का सामना करने बाली मंजेश में कुछ करने का कुछ बनने का जज्बा है.