No confidence motion: मणिपुर हिंसा का हवाला देते हुए लोकसभा में कांग्रेस के असम से सांसद गौरव गोगोई द्वारा लाया गया अविश्वास प्रस्ताव सदन में पास हो गया है. सरकार के कार्यकाल में अभी करीब 1 वर्ष का समय बचा हुआ है. उसके पहले ये प्रस्ताव पारित होने की वजह से सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर अवश्य कर दिया है. 2023 मानसून सत्र के पहले दिन से ही हंगामे की भेंट चढ़ा हुआ था, उस पर ये अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है. हालांकि इस पर कब बात होगी सरकार की ओर से कोई तारीख तय नहीं की गई है, पर अगर नियमों की माने तो इस प्रस्ताव के पारित होने के 10 दिनों के भीतर सदन में सरकार के नेता को जवाब देना पड़ता है. 


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जानिए क्या है अविश्वास प्रस्ताव
भारत के संविधान के अनुच्छेद 75 में कहा गया है कि लोकसभा में केंद्र की मंत्री परिषद सदन के प्रति जवाबदेह है. सदन में बहुमत हासिल होने तक ही सरकार बनी रह सकती है. किसी भी सदस्य द्वारा  लोकसभा के नियम 184 के तहत अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है. सदन के अध्यक्ष इसकी अनुमति देते है. इसके पारित होने के बाद सदन में मतदान होता है, जिसके बाद पक्ष और विपक्ष में पड़े मतों की गिनती के बाद तय होता है कि सरकार गिर जाएगी या बनी रहेगी. बता दें कि राज्य सभा में इस प्रकार का प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है.


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अब तक कितनी बार आ चुका है NO CONFIDENCE MOTION  और क्यों 
- भारत में सबसे पहले साल 1963 में जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ जे बी कृपलानी द्वारा अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. इसमें सरकार ने आराम से इसके विपक्ष में मत हासिल किए थे. कृपलानी द्वारा ये प्रस्ताव 1962 में हुए भारत और चीन युद्ध में भारत की हार के कारण लाया गया था.
- लाल बहादुर शास्त्री के तीन वर्षों के कार्यकाल में उनके खिलाफ तीन बार अविश्वास प्रस्ताव लाए गए थे. पर तीनों ही बार वो असफल हो गया.
- इंदिरा गांधी को सबसे ज्यादा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा था. देश के इतिहास में सबसे ज्यादा उन्हें ही प्रधानमंत्री के तौर पर इसका सामना करना पड़ा था. उनके खिलाफ जितने भी प्रस्ताव आए वो सारे ही गिर गए. इंदिरा गांधी के खिलाफ सबसे ज्यादा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद ज्योति बसु द्वारा लाया गया था. अटल बिहारी वाजपेयी ने भी 1 बार इंदिरा गांधी के खिलाफ प्रस्ताव लाया था.
- मोरारजी देसाई के खिलाफ 1978  और 1979 में 2 बार अविश्वास प्रस्ताव आया था. जिसमें 1979  में उनकी सरकार गिर गई थी. उसके बाद पुनः इंदिरा गांधी की सरकार बनी थी.
- 1987 में राजीव गांधी के खिलाफ भी एक बार अविश्वास प्रस्ताव आया था. माधव रेड्डी द्वारा लाया गया ये प्रस्ताव वॉइस वोट से गिर गया था. 
- पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ 1992  में दो बार और 1993 एक बार कुल 3 बार लाया गया था. तीनों ही बार विपक्ष हार गया था.
- 2003 में अटल बिहारी बाजपेयी के खिलाफ सोनिया गांधी अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, पर विपक्ष इसमें भी हार गया था.
- 2008 मनमोहन सिंह के कार्यकाल में उनको भी एक बार इसका सामना करना पड़ा था. पर सरकार बहुत कम मतों के अंतर से जीत गई थी.
- नरेंद्र मोदी को अपने दोनों कार्यकाल में अविश्वास प्रस्ताव का सामना करना पड़ा है. पिछले कार्यकाल में सरकार पक्ष में पड़े भारी मतों से जीत गई थी.  इस बार भी यही होगा क्योंकि सरकार के पास सदन में पूर्ण बहुमत है.   


बता दें कि अविश्वास प्रस्ताव संसदीय सरकार की कार्यप्रणाली का एक अहम हिस्सा है. जब तक सरकार सदन में अपना विश्वास बनाये रखेगी तब तक वो देश के लिए कार्य करती रहेगी. पहले बहुमत की सरकारों के खिलाफ इस तरह के प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं रह जाता. अब ये देखने को मिलता है की विपक्ष द्वारा कई बार ऐसे प्रयास किए जाते है.