Holika Dahan 2023: होलिका दहन में भूलकर भी न जलाएं इन पेड़ों की लकड़ियां, वरना पड़ेगा भारी
Holika Dahan kab hai: होलिका दहने के बाद से हिंदू धर्म के पवित्र त्यौहार होली की शुरुआत होती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कुछ ऐसी लकड़ियां होती हैं, जिनका इस्तेमाल यदि हम गलती से भी होलिका दहन में करते हैं तो हमें पूरे साल परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. आइए जानते हैं इसके बारे में...
Holika Dahan 2023 Kab Hai: अब से कुछ ही दिन बाद हिंदू धर्म के बड़े त्यौहार में से एक होली (holi) का त्यौहार आने वाला है. होली के त्यौहार की शुरुआत फाल्गुन माह के पूर्णिमा तिथि के दिन (holika dahan) होलिका दहन से शुरू होता है और चैत्र माह के प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता है. इस साल होली का त्यौहार 08 मार्च को मनाया जाएगा. होलिका दहन के लिए कुछ दिन पहले से ही लोग लकड़ियों का इंतजाम करना शुरू कर लेते हैं. लेकिन धार्मिक मान्यतानुसार कुछ पेड़ ऐसे होते हैं, जिनकी लकड़ियों का प्रयोग यदि हम गलती से भी करते हैं तो हमको उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. आइए जानते हैं होलिका दहन में कौन-कौन से पेड़ की लकड़ियां नहीं जलानी चाहिए?
भूलकर भी न जलाएं इन पेड़ों की लकड़ियां
हिंदू धर्म में पीपल, बरगद, शमी, आंवला, अशोक, नीम, आम, केला और बेल की लकड़ियों काफी पवित्र और पूज्यनीय माना गया है. इनकी पूजा की जाती है और इनकी लकड़ियों का प्रयोग यज्ञ, अनुष्ठान आदि शुभ कार्यों के लिए किया जाता है. ऐसे में होलिका दहन के दौरान इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. साथ ही किसी भी हरे पेड़ पौधों को काटकर होलिका में नहीं डालना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से सौभाग्य छिन जाता है और पूरे साल संकट का सामना करना पड़ता है.
इन लकड़ियों का करें इस्तेमाल
होलिका दहन के दौरान आप गूलर और अरंडी के पेड़ की लकड़ी का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा आप होलिका दहन में गाय के गोबर के कंडों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके इस्तेमाल से पर्यावरण शुद्ध रहता है.
होलिका दहन के पीछे धार्मिक मान्यता
होलिका दहन के पीछे भगवान के भक्त प्रहलाद की कहानी है. धार्मिक ग्रथों के अनुसार फाल्गुन माह के पूर्णिमा के दिन हिरण्कश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को होलिका को सौंप दिया और उसे अग्नि में जलाने का आदेश दिया था. होलिका को यह वरदान था की अग्ननि उसे जला नहीं सकती है. इसलिए होलिका प्रहलाद की हत्या करने के उद्देश्य से होलिका उसे गोद में लेकर आग में बैठ गई. लेकिन भगवान की महिमा के कारण प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई. इसलिए हर साल इस दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में होलिका दहन किया जाता है.
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(disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और विभिन्न जानकारियों पर आधारित है. zee media इसकी पुष्टि नहीं करता है)