जानिए कैसे बिना फैमिली कोर्ट जाए पति-पत्नी लें सकेंगे तलाक, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला
भारत में शादियों से ज्यादा चर्चे तलाक के मामलों के अक्सर सुनने में आते हैं. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तलाक (Supreme Court on Divorce) को लेकर अहम फैसला सुनाया है.
Supreme Court on Divorce: भारत में शादियों से ज्यादा चर्चे तलाक के मामलों के अक्सर सुनने में आते हैं. इसी कड़ी में सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तलाक (Supreme Court on Divorce) को लेकर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते टूट चुके हों और उसके बचने की कोई गुंजाइश ही न बची हो, तो वह भारत के संविधान के आर्टिकल 142 के तहत बिना फैमिली कोर्ट भेजे ही तलाक को मंजूरी दे सकता है. इसके लिए 6 महीने का इंतजार करना भी जरूरी नहीं होगा.
बता दें कि जून 2016 में तलाक के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने यह मामला संविधान बेंच को भेज दिया था. इस मामले में सितंबर 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पूरी हो गई थी और फैसला सुरक्षित रख लिया गया था. अब ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संविधान पीठ ने सुनाया है.
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तलाक के लिए नहीं करना होगा इंतजार
गौरतलब है कि हिंदू विवाह अधिनियम के मुताबिक तलाक के पति-पत्नी की रजामंदी के बावजूद उन्हें फैमिली कोर्ट जाना होता था, जहां निर्धारित समय सीमा में दोनों पक्षों को अपने रिश्ते सुधारने और तलाक लेने के फैसले पर सोचने का समय दिया जाता था. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की इस नई व्यवस्था के मुताबिक पति-पत्नी शादी खत्म करने के लिए राजी है तो उन्होंने तलाक के लिए 6 से 18 महीने तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा.
सुप्रीम कोर्ट कर सकता है अनुच्छेद- 142 का इस्तेमाल
जस्टिस एसके कौल की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि अनुच्छेद- 142 के तहत पूर्ण न्याय करने का अधिकार हैं. पांच न्याधीशों की पीठ ने कहा कि हमने अपने निष्कर्षों के अनुरुप, व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है. ये बुनियादी सिद्धांतों का उल्लघंन नहीं होगा.
संविधान अनुच्छेद 142 क्या है?
संविधान के अनुच्छेद 142(1) के मुताबिक न्यायाधिकार का प्रयोग करते समय सुप्रीम कोर्ट ऐसे निर्णय या आदेश दे सकता है, जो इसके समक्ष लंबित पड़े किसी भी मामले में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिए अनिवार्य हो. इसके दिए निर्णय तब तक लागू रहेंगे जब तक इससे संबंधित कोई अन्य प्रावधान लागू नहीं कर दिया जाता.