चंद्रशेखर सोलंकी/ झाबुआ: मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले से एक दिल दहला देनी वाली खबर सामने आई है. बता दें कि आधुनिक युग मे जहां चांद पर दुनिया बसाने की कवायद तक विज्ञान पहुंच गया है. कोरोना जैसी महामारी से निपटने में आज विज्ञान ने दुनिया को मौत के मुंह में जाने से बचाया है. ऐसी आधुनिकता के युग मे भी अंधविश्वास ने आज भी मासूमों के लिए जोखिम खड़ा कर रखा है. इलाज के नाम पर बच्चों को लोहे के गर्म सरियों से जलाया जाता है. जिसे डाम का नाम दिया गया है. आदिवासी बाहुल्य इलाको में आज भी इस अंधविश्वास के कारण बच्चों की जिंदगी खतरे में डाली जा रही है.


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बच्चों का इलाज जारी
झाबुआ में ऐसा ही मामला सामने आया है. यहां एक साथ 4 बच्चों को अंधविश्वास के चक्कर में पड़कर उनके अपनों ने ही लोहे के गर्म सरिए से जलाया है, सभी बच्चों का इलाज जारी है. झाबुआ शासकीय अस्पताल के चिकित्सक ने बताया कि, अलीराजपुर, झांबुआ, और गुजरात से लगे गांव से अक्सर इस अंधविश्वास में डाम लगाए गए बच्चे झाबुआ इलाज के लिए लाए जाते हैं. फिलहाल 4 बच्चे झाबुआ अस्पताल में इलाजरत हैं. डॉक्टर ने बताया कि, यह एक अंधविश्वास है जिसे ज्यादातर मासूमों में निमोनिया की शिकायत के बाद सांस तेज चलने पर ग्रामीण ऐसा करते हैं. लेकिन बीमारी की हालत में डाम लगाए जाने से कई बार हालात गंभीर हो जाती है. लेकिन आदिवासी बाहुल्य इलाक़ो में इस अंधविश्वास में लगातार बच्चों की जान जोखिम में डाली जा रही है.


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कई जिलों में फैला है अंधविश्वास का डर्टी गेम
बता दें कि यह अंधविश्वास का जाल सिर्फ अलीराजपुर झाबुआ में ही नहीं बल्कि रतलाम के बाजना रावटी सैलाना जैसे इलको में भी फैला हुआ है. रतलाम में भी इस तरह के मामले बीते सालों में सामने आए है. डाम लगाए जाने के बाद जिन बच्चों की हालत गंभीर हो जाती है सिर्फ वही अस्पताल तक पहुंचते हैं. बताया जाता है कि 6 माह से लेकर 3 साल तक के मासूमों को ज्यादातर इस अन्धविश्वा मे डाम लगाया जाता है. ऐसे में ठीक से बोल भी नही पा रहे बच्चे इस अंधविश्वास के कारण जलन की बड़ी पीड़ा सहने को मजबूर हो जाते हैं.


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आज भी पुरानी मान्यताओं को मानते हैं ग्रामीण
ग्रामीण इलाकों के लोगो का कहना है कि, यह पुरानी मान्यता है. कहीं बुजुर्गों के कहने पर तो कहीं बाबाओं के बातों में आकर इस अंधविश्वास में अपने ही कलेजे के टुकड़े की जान ग्रामीण जोखिम में डाल देते हैं. ज्यादातर उन इलाकों से यह अंधविश्वास की तस्वीर सामने आती है जो शहरी छेत्र से दुरस्त इलाके हैं और जहां स्वास्थ्य सुविधाओ की जहां कमी है. वहीं इन इलाकों में जागरूकता की भी कमी होने के कारण अंधविश्वास का यह साया आज भी अपने पैर पसारे हुए है.