MP के इस जिले में है मां कालिका का 450 साल पुराना मंदिर, बेहद दिलचस्प हैं इसका इतिहास
रीवा जिले में लगभग 450 वर्ष से भी ज्यादा पुराना मां कालिका का प्राचीन मंदिर है.जिसका इतिहास बेहद रोचक है.इस मंदिर मे भक्तों की भीड़ सुबह से ही लग जाती है. देवी मां के दर्शन के लिए सुबह से ही भक्त आने शुरू हो जाते हैं.
संजय लोहानी/रीवा: शारदीय नवरात्रि के शुरू होते ही जहां देश भर में देवी के मंदिरों में नौ दिनों तक विशेष पूजा अर्चना होती है, लेकिन रीवा जिले में लगभग 450 वर्ष से भी ज्यादा पुराना मां कालिका का प्राचीन मंदिर है. जिसका इतिहास बेहद रोचक है. इस मंदिर मे भक्तों की भीड़ सुबह से ही लग जाती है. देवी मां के दर्शन के लिए सुबह से ही भक्त आने शुरू हो जाते हैं. फल,फूल माला, सिंदूर सहित पूरे मंदिर की रौनक यहां देखते ही बनती है. यह मंदिर रानी तालाब मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इसका अपना एक इतिहास है.
रानी तालाब मंदिर के प्रति लोगों की बड़ी आस्था है, इस प्राचीन मंदिर में स्थापित मां कालिका का अपना अलग महत्व है, पहले इसका संचालन राजघराने द्वारा किया जाता था. अब इसका संचालन भारत सरकार करती है. इस मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य भी हैं.
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रानी तालाब मंदिर का इतिहास
इस मंदिर को रानी तालाब मंदिर क्यों कहते हैं, इसके बारे में हम आपको बताते हैं. ऐसा कहा जाता है कि काई सालों पहले यहां पर लवाना जाति के लोगों ने तालाब खोदा था. उस वक्त यहां रीवा राजघराने की महारानी कुंदन कुंवरी रक्षा बंधन के दिन जब पूजा करने पहुंची, तो प्रसन्न होकर लवाना लोगों के हाथों में रक्षा सूत्र बांधा. तब लवाना लोगों ने महारानी को भेट स्वरूप यह तालाब दे दिया. तब से यह स्थान रानी तालाब के नाम से जाना जाता है.
मां कालिका की मूर्ति का रोचक इतिहास
मां कालिका की मूर्ति यहां स्थापित होने के पीछे एक वजह है, वह यह है कि कई सालों पहले राजा प्राज्ञ देव के समय इस मूर्ति को लवाना लोग अपने साथ लेकर आ रहे थे. ऐसा कहा जाता है की देवी मां की मूर्ति ने यह कह दिया था की जहां मुझे एक बार स्थापित कर दिया जाएगा, वहां से मैं उठूंगी नहीं और लवाना लोगों को यह बात ध्यान नहीं रही. वह लोग मूर्ति को बैलगाड़ी में लिए हुए थे और रास्ते में आराम करने की सोचकर यहां रुककर. उन्होंने खाना खाया और सो गए.जब सुबह जाने की तैयारी करने लगे और मूर्ति उठाने की कोशिश की वह मूर्ति को नहीं उठा सके. लाख कोशिशों के बाद जब मूर्ति नहीं उठी तो लवाना लोग यह मूर्ति यहीं छोड़कर चले गए. जिसके बाद राजघराने द्वारा यही पर मंदिर बनवाया गया और यही पर मूर्ति स्थापित कर दी गई.
रीवा राजघराने के द्वारा इस मंदिर में मां के स्वर्ण आभूषणों से संवारा गया है. नवरात्रि में अष्टमी व नवमी को मां का श्रृंगार स्वर्ण के आभूसरों से किया जाता है. माता के श्रृंगार के पीछे की कहानी यह है की राजा विश्वनाथ के वंशज में पुत्र की शादी हो रही थी तब माता उनके सपने में आई और कहा की बेटे की शादी करने जा रहे हो लेकिन हमारे लिए कुछ नहीं है. तब माता से पूछा गया की आपको क्या चाहिए तो माता ने कहा की पहले मेरा सोलह श्रृंगार करवाओ, उसके बाद शादी होगी. तब राजघराने द्वारा सुनारों को बुलाकर माता के जेवरात बनवाये गए.तब से आज तक राजघराने से विशेष पूजा अर्चना होती आ रही है. हालांकि इस बार कोरोना के प्रकोप के चलते भक्तों के लिए मंदिर के पट नहीं खोले गए और मेले का आयोजन नहीं किया गया. जिससे भक्तों में काफी निराशा है.
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