Maa Mahagauri Puja on Navratri Eighth Day Mahashtami: शारदीय नवरात्रि के 9 दिनों में माता के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा की जाती है. इसे तरह आठवें दिन यानी महाअष्टमी को माता के माहागौरी रूप में पूजा का विधान है. पौराणिक मान्यता है कि इस रूप में मां की पूजा करने से वैवाहिक जीवन सफल होता है. इसके साथ ही माता महागौरी के पूजन से शादी विवाह होने में आ रही बाधा भी दूर होती है.


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माता महागौरी की पूजन विधी
- चौकी पर माता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें, इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें
- चौकी पर चांदी तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें
- उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, सात सिंदूर की बिंदी लगाएं की स्थापना भी करें
- व्रत पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा माता महागौरी सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें
- इसके बाद नवरात्र पूजा विधी से माता को भोग चढ़ा कर खुद प्रसाद वितरण करें
- पूजा के बाद कन्याओं को भोजन भी करा सकते हैं, ये शुभ फल देने वाला माना गया है


माता का मंत्र
श्वेते वृषे समरूढ़ा श्वेताम्बराधरा शुचिरू।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
या देवी सर्वभूतेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यैए नमस्तस्यैए नमस्तस्यै नमो नमरू।।
ओम देवी महागौर्यै नमरू।।
बीज मंत्र - श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नम:
प्रार्थना मंत्र - श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥


महा अष्टमी मुहूर्त
अष्टमी तिथि शुरू- 2 अक्टूबर 2022, शाम 06:47
अष्टमी तिथि समाप्त - 3 अक्टूबर 2022, शाम 04:37
सन्धि पूजा मुहूर्त - शाम 04:13 - शाम 05:01
ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04:43 - सुबह 04:43
अभिजित मुहूर्त - सुबह 11:52 - दोपहर 12:39
गोधूलि मुहूर्त - शाम 05:59 - शाम 06:23
अमृत काल - शाम 07:54 - रात 09:25
शोभन योग - 02 अक्टूबर शाम 05:14 से 3 अक्टूबर दोपहर 02:22


माता का प्रिय भोग और रंग
मां महागौरी को नारियल का भोग अति प्रिय है. इन्हें फूलों में मोगरा चढ़ाया जाता है.
महाअष्टमी पर मां महागौरी की पूजा में श्वेत या जामुनी रंग का वस्त्र धारण कर करना चाहिए


महागौरी की महिमा
महागौरी का रंग बेहद गोरा है. इसी कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है. मान्यताओं के कठोर तप से उन्होंने गौर वर्ण प्राप्त किया था. माता के इस रूप को करुणामयी, स्नेहमयी, शांत तथा मृदुल माना जाता है. चार भुजाओं में से दो में माता रानी त्रिशूल और डमरू धारण करती हैं और दो भुजाएं अभय और वरद मुद्रा होती है. इन्हें धन ऐश्वर्य देने और शारीरिक, मानसिक, सांसारिक ताप का हरण करने वाली देवी कहा जाता है.