Mahakal Mandir: 11 नदियों के जल से बाबा महाकाल को दी जाएगी शीतलता, गर्मी से मिलेगी राहत!
ज्येष्ठ और वैशाख के महीने में गर्मियों का ताप बढ़ जाता है. बाबा महाकाल (Mahakal) को गर्मी न लगे इसलिए मंदिर में विशेष इंतजाम कर दिये गए हैं.बाबा के ऊपर अब 11 पवित्र नदियों के ठंडे जल की धारा प्रवाहित की जा रही है.
राहुल सिंह राठौड़/उज्जैन: विश्व प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग बाबा महाकाल (baba mahakal) का धाम लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का खास केंद्र है. मंदिर में हर रोज बाबा महाकाल का अलग अलग क्रम में पूजन पाठ होता है. बाबा का आम व्यक्ति की तरह खास ख्याल पुजारियों द्वारा रखा जाता है. मंदिर के महेश पुजारी ने बताया कि शिव को शीतलता दी जा रही है. शिव एक मात्र ऐसे देवता हैं, जिन्होंने विष को पिया. विष में जलन ज्यादा है, इसलिए उनका वास भी (kailash) कैलाश में है. उसी बात को ध्यान में रखते हुए ये वैशाख (vaishakh) और ज्येष्ठ (jayeshth) माह ऐसे होते हैं, जिसमें अधिक गर्मी होती है. इस गर्मी से भगवान को शांत रखने के लिए महाकाल बाबा के मस्तक पर 11 मटकी की जलधारा अर्पित की जाती है. ये क्रम 2 माह तक रहेगा. शिव (shiva) को जलधारा प्रिय भी है वे इन दो माह में भक्तों को प्रसन्न रहकर वरदान भी देते हैं. यही शास्त्रोक्तम परंपरा है.
जानिए महत्व और 11 पवित्र नदियों के बारे में।
पुर्व में एक मटकी बांधी जाती थी अब 11 जिसका क्रम है-
गंगा, सिंधु, सरस्वती, यमुना, गौदावरी, नर्मदा, कावेरी, शरयू महेंद्रतनया शर्मण्वती वेदिका।
क्षिप्रा वेत्रवती महासुर नदी, ख्याता गया गंडकी पूर्णा पूर्ण जलैः समुद्र सरिता, कुर्यातसदा मंगलम।।
अर्थात सभी तीर्थों का जल भगवान को चढ़ाया जाए, जिससे सबका मंगल हो और भगवान को शीतलता मिले. वहीं पंचांगीय गणना के अनुसार शुक्रवार से वैशाख मास का आरंभ हो गया है. ज्योतिर्लिंग महाकाल मंदिर में गलंतिका बांधी गई. वैशाख मास में शिप्रा स्नान का विशेष महत्व है. श्रद्धालु वैशाख प्रतिपदा से पूर्णिमा तक एक माह शिप्रा स्नान करेंगे. वैशाख में कल्पवास का विशेष महत्व है. अनेक साधु-संत उज्जैन में शिप्रा तट पर कल्पवास करने के लिए उज्जैन पहुंच गए हैं. चैत्र पूर्णिमा से उन्होंने अग्नि स्नान अर्थात धूना तापना भी शुरू कर दिया है.
जानिए क्या कहा ज्योतिष ने!
विख्यात ज्योतिष ने पं. आनंदशंकर व्यास ने बताया कि उत्तर वाहिनी शिप्रा में स्नान करने से ज्वर रोग का शमन होता है. स्कंद पुराण के अवंतिखंड में इसका उल्लेख है. जो श्रद्धालु मासपर्यंत स्नान नहीं कर सकते हैं, वे वैशाख के आखिरी पांच दिन भी शिप्रा स्नान कर लें तो पूरे माह स्नान का पुण्य फल प्राप्त होता है.
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