विदिशा का बीजा मंडल: खुलेगा ताला तो निकलेंगे राज, निर्माण से लेकर इतिहास तक जानिए पूरी कहानी
History of Bijamandal: नई संसद भवन की डिजाईन से मिलते- जुलते बीजामंडल को लेकर विवाद शुरू हो गया है. दरअसल यहां पर हिंदू संगठन के लोगों ने नागपंचमी पर इसका ताला खोले जाने की अनुमति मांगी थी, जिस पर कलेक्टर ने लेटर जारी करते हुए इसे मस्जिद बताया था और अनुमति नहीं दी. ऐसे में तमाम बातें लोगों के दिमाग में आ रही है तो आइए जानते हैं कि क्या है बीजा मंडल.
Bijamandal Temple or mosque know Inside Story: मध्य प्रदेश के धार भोजशाला का विवाद अभी खत्म नहीं हुआ था कि इसी बीच प्रदेश के विदिशा जिले में स्थित नई संसद भवन की डिजाईन से मिलते जुलते बीजा मंडल को लेकर नया विवाद शुरू हो गया है. बता दें कि हिंदू संगठन के लोग हर बार नागपंचमी के अवसर पर यहां पूजा- अर्चना करने आते हैं, इस बार संगठन के लोगों ने बीजा मंडल के अंदर पूजा करने के लिए अनुमति मांगी थी, लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली और एएसआई की टीम ने एक लेटर जारी करते हुए कहा कि ये मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद है, ऐसे में अब लोगों के मन में तरह- तरह के सवाल आ रहे हैं कि क्या सचमुच बीजा मंडल मस्जिद है या फिर मंदिर, अगर आपके मन भी ऐसा सवाल आ रहा है तो आइए जानते हैं कि इसका इतिहास क्या है.
क्या है विजय सूर्य मंदिर
इतिहासकारों की मानें तो आज का बीजामंडल प्राचीन समय में विजय सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता था. 11वीं सदी में परमार काल के शासक राजा कृष्ण के प्रधानमंत्री चालुक्य वंशी वाचस्पति ने इसका निर्माण कराया था. इस मंदिर के विशाल पत्थरों पर परमारकालीन राजाओं की गाथाएं उकेरी गई थी, साथ ही साथ बता दें कि इस मंदिर की ऊंचाई करीब डेढ़ सौ गज थी. हालांकि समय बदलता गया और इस मंदिर पर मुगल शासकों ने कई बार हमला किया.
मंदिर पर हुए हमले
साल 1233- 24 में मुगल शासक इल्तुतमिश ने यहां पर पहली बार हमला किया.
इसके बाद 1290 में अलाउद्दीन खिलजी के मंत्री मलिक काफूर ने यहां पर हमला किया.
इस मंदिर पर तीसरा हमला 1459- 60 में महमूद खिलजी ने किया.
चौथा हमला 1532 में मुगल शासक बहादुर शाह ने किया.
इसके बाद इस मंदिर पर 17वीं शताब्दी में औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला किया और इसे मस्जिद का आकार दे दिया.
औरंगजेब ने इस मंदिर पर 11 तोपों से हमला किया था. इसके बाद इसके ऊपर मस्जिद का निर्माण कराया. जिसके बाद से यहां पर नमाज पढ़ी जाने लगी, हालांकि मुगल शासन कमजोर होने के बाद इस पर मराठा शासकों का अधिकार हो गया था जिन्होंने यहां पर नमाज पढ़ने पर रोक लगा दी थी.
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डूब गया था मंदिर
इतिहासकारों के मुताबिक मराठा शासकों ने इसकी देख- रेख नहीं की जिसकी वजह से ये जगह वीरान हो गई थी. ऐसे में 20 वीं शताब्दी में यहां पर बाढ़ आई और यह पूरी तरह से पानी में डूब गया. बाढ़ के बाद यह मंदिर मैदान के जैसे नजर आने लगा, हालांकि 1934 में इसकी खुदाई की गई. जिसके बाद यहां पर मंदिर के अवशेष मिले. अवशेष मिलने के बाद पूरी तरह से जब इस जगह की खुदाई की गई तो यहां पर भव्य मंदिर मिला और 1934 में हिंदू महासभा के लोगों ने इस मंदिर के उद्धार के लिए आंदोलन चलाया जो कि आजादी के समय तक चलता रहा.
ऐसे चला मंदिर का पता
साल 1947 में हिंदू महासभा ने इस मंदिर के अधिकार को लेकर सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया जो कि 1964 तक चला. इसके बाद यहां पर साल 1965 में तत्कालीन सीएम द्वारका प्रसाद मिश्र ने यहां नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया. जिसके बाद प्रशासन ने भोपाल रोड पर मुस्लिम समुदाय को ईदगाह के लिए जगह दी, जिसके बाद मुस्लिमों ने यहां पर नमाज पढ़ना बंद कर दी. इतिहासकारों की मानें तो 1991 में यहां पर भारी बारिश हुई जिसकी वजह से मंदिर की दीवार ढह गई और सौ से ज्यादा मूर्तियां बह गई. इसके बाद सरकार ने पुरातत्व विभाग को मंदिर के खुदाई के आदेश दिए तीन साल तक चली एएसआई की खुदाई में मंदिर होने के कई सारे सबूत मिले, साथ ही साथ यह मंदिर पुरातत्व विभाग ने अपने कब्जे में ले लिया और यहां पर ताला लगा दिया.
ये कहते हैं लोग
इस मंदिर को लेकर हिंदू संगठन के लोगों का दावा है कि यहां पर 1972 में पूजा करने की शुरूआत हुई थी. साथ ही साथ संगठन के लोग कहते हैं हर साल नागपंचमी के अवसर पर हम बाहर से पूजा - अर्चना करते हैं, इस बार भी हमने इसे खोलने की अनुमति मांगी थी. जिसके बाद एएसआई ने कलेक्टर को एक लेटर लिखा जिसमें उन्होंने इसे मस्जिद बता दिया और कहा कि यहां पर किसी भी तरह की पूजा नहीं हो सकती है. हालांकि यहां पर हिंदू मुस्लिम के विवाद जैसी स्थिति नहीं है. हिंदू संगठनों का कहना है कि इसका ताला खोला जाए और चाहे 5 ही लोग जाएं लेकिन मंदिर के अंदर जाकर पूजा करेंगे. बता दें कि साल में एक बार नाग पंचमी पर यहां हिंदू समुदाय के लोग पूजा अर्चना करते हैं.
मुस्लिम पक्ष की बात
बीजा मंडल को लेकर मुस्लिम समुदाय के लोगों का कहना है कि पहले बीजा मंडल ईदगाह थी और यहां पर नमाज पढ़ी जाती थी. लेकिन 1965 में विवाद की स्थिति बनने के बाद सरकार ने इसे पुरातत्व विभाग को सौंप दिया. उसके बाद ईदगाह के लिए अलग जमीन दे दी, तभी से बीजामंडल को लेकर कोई विवाद नहीं है.
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