प्रमोद शर्मा/भोपाल: ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) को लेकर शिवराज सरकार (Shivraj Government) के द्वारा सुप्रीम कोर्ट में लगाई याचिका पर आज सुनवाई है. बता दें ओबीसी आरक्षण को लेकर दाखिल की गई सभी याचिकाओं पर आज एक साथ सुनवाई होनी है. इस समय मध्य प्रदेश का ये सबसे अहम मुद्दा है, जिसे लेकर कई महीनों से असमंजस की स्थिति बनी हुई है. 


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सर्वे का आंकड़ा पेश करेगी सरकार
ओबीसी आरक्षण को लेकर एक याचिका शिवराज सरकार ने दायर की थी. याचिका में मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर शिवराज सरकार ने भी ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर गुहार लगाई है. पेंच ओबीसी वर्ग को पंचायत चुनाव में 27 फीसदी आरक्षण दिया जाने को लेकर फंसा है. आज सरकार के वकील एमपी में ओबीसी को लेकर आरक्षण के चलते ओबीसी वर्ग का आर्थिक और सामाजिक सर्वे का आंकड़ा रख सकते हैं.  पिछले दिनों ओबीसी का आर्थिक सर्वे कराया गया था, जिसे आज कोर्ट में रखा जाएगा. 


OBC आरक्षण पर समझिए पूरा गणित
मध्य प्रदेश में पंचायत चुनाव ओबीसी आरक्षण की वजह से ही रद्द हुए हैं. एमपी में ओबीसी वर्ग की आबादी 50 फीसदी से अधिक है. जाहिर है इतने बड़े वर्ग को कोई भी दल नाराज करना नहीं चाहता. मौजूदा स्थिति में देशभर में आरक्षण का प्रावधान 50 फीसद है, जो कि एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग को मिलाकर है. बाकी की 50 फीसदी जनरल वर्ग के लोगों के लिए है. अगर मध्यप्रदेश के लिहाज से बात करें तो एमपी में 16 प्रतिशत एससी वर्ग के लिए, 14 फीसद ओबीसी वर्ग के लिए और एसटी वर्ग के लिए 20 फीसद आरक्षित है, जो कि संविधान के दायरे में आता है.


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कहां फंसा है मामला
मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग की बड़ी आबादी को देखते हुए 27 फीसद आरक्षण की मांग होती रही है. कमलनाथ सरकार ने इसके लिए कदम भी उठाया लेकिन कानूनी दांव पेंच में वो असफल रहे. अब शिवराज सरकार की कोशिश है कि ओबीसी वर्ग को 27 फीसद आरक्षण मिलें, लेकिन अगर ऐसा होता है तो 50 फीसद कुल आरक्षण के प्रावधान का उल्लंघन होगा. यही वजह है कि प्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर पेंच फंसा हुआ है. खास बात यह है कि दोनों ही दल ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने का समर्थन कर रहे हैं और एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति भी कर रहे हैं. 


2020 में ही पूरा हो चुका है कार्यकाल
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में मार्च 2020 में ही 22 हजार से ज्यादा पंचायतों के सरपंचों और पंचों का कार्यकाल पूरा हो चुका है. साथ ही 841 जिला और 6774 जनपद पंचायतों का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है लेकिन विभिन्न कारणों से पंचायत चुनाव टलते रहे. आखिरकार दिसंबर में निर्वाचन आयोग ने पंचायत चुनाव की तारीखों का ऐलान किया, जिनके मुताबिक जनवरी में पंचायत चुनाव होने थे लेकिन अब ओबीसी आरक्षण को लेकर पेंच फंस गया, जिसके बाद सरकार ने पंचायत चुनाव का अध्यादेश वापस लेकर चुनाव रद्द कर दिए.


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